चार लघुकथाएं Ranjana Jaiswal द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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चार लघुकथाएं

अच्छे पापा
दिन भर दफ्तर में खटकर मैं जल्दी-जल्दी घर लौट रहा था |बार-बार बेटे का चेहरा आँखों के सामने डोल जाता |आठ साल का गोलू-मोलू सा बेटा पप्पू ...इधर नाराज होना सीख गया है |जब से पड़ोस में एक इंजीनियर साहब रहने को आए हैं ,मैं परेशान हो गया हूँ |पप्पू की उम्र का उनका एक बेटा है गोल्डी|
इंजीनियर साहब के पास सुख-साधनों का अंबार है |पप्पू का मन उधर खिंचता है |मैं अदना सा क्लर्क प्यार से उसकी कमी पूरी करने में लगा रहता हूँ |
घर पहुँचते ही मैंने आवाज लगाई –पप्पू बेटा कहाँ हो ?इधर आओ |पर पप्पू नहीं आया |मुझे आश्चर्य हुआ |पत्नी ने बताया –‘आज फिर रूठा हुआ है |’ मैं उसके पास गया तो मुझे देखकर उसने अपना मुंह घुमा लिया |
-क्या बात है ?मैंने उसे गोद में उठाने की कोशिश की ,पर वह दूर छिटक गया |ज़ोर से बोला—मुझे मत छुइए....आप गंदे पापा हैं |
‘क्यों ?क्या किया है मैंने ?’
-आप मुझे वीडियो गेम लाकर नहीं देते |नयी साइकिल भी नहीं खरीद रहे ...आप गंदे हैं ....|
‘लेकिन हम प्यार भी तो करते हैं आपसे ...आपके साथ खेलते भी हैं |’
-हमें नहीं चाहिए झूठ-मूठ का प्यार ...|गोल्डी के पापा कितने अच्छे पापा हैं ,उसे हमेशा नयी चीजें दिलाते रहते हैं |आप गंदे पापा हैं ....|
मैं हतप्रभ था |

आम और खास
वह भी आम था और कभी उसकी आम टोली में शामिल था,पर एक दिन वह दिल्ली गया और खास हो गया |खास बनने के लिए उसने क्या-क्या किया ,यह वही जाने |उसका रास्ता शार्टकट था |युवा था ...सुंदर था ...कोमल था ...लिखना-पढ़ना भी जानता था |अब वह कोई स्त्री होता तो तुरत उसके चरित्र पर प्रश्न उठता पर पुरूष का चरित्र कहाँ खराब होता है ?
कुछ दिन बाद लंबा रास्ता तय कर वह भी दिल्ली पहुंची और उसकी खास टोली में शामिल हुई ,जिसे वह गंवारा नहीं कर पाया |उसने जाने क्या-क्या किया ?पर इतना तो कर ही दिया कि एक दिन सारे प्रकाशक ,संपादक और बड़े लेखक उसके खिलाफ हो गए |बाद में पता चल गया कि सबके पास एक स्पीड लेटर पहुंचा था कि लेखिका का चरित्र अच्छा नहीं है |वह एक दिन के लिए भी उसे खास स्वीकार नहीं कर सका था |

आका
बकरीद करीब होने से मंडी में बकरों की भरमार थी|कई तरह के बकरे थे |दुबले,भरे और तगड़े |कद में भी सबके कुछ अंतर था |लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार बकरों का मोल-भाव कर रहे थे |गरीब मुसलमानों की नजर तगड़े बकरों पर पड़ती थी ,पर मन मसोस कर रह जाते थे |कुछ बकरे तो बकरों के राजा से थे |अलग ही दीखते थे |उनके मालिक बता रहे थे कि किस तरह उनकों विशेष देखभाल कर पाला था |खाने के लिए महँगी चींजे दी थीं|सारे बकरे मिमियाँ रहे थे |किंग बकरों की आवाज सबसे तेज थी |मैं उनका चीत्कार साफ़ सुन रही थी |वे इसलिए दुखी थे कि जिन्हें वे अपने आका समझ रहे थे ,वे उन्हें मंडी बेचने के लिए लाए थे |

समलिंगी
दो सहेलियां थीं|साथ पढ़ी-लिखीं,खेलीं-कूदीं |काफी समानताएँ थीं दोनों में,पर बाद में दोनों में काफी अंतर आ गया |एक की शादी हो गई,दूसरी की नहीं हुई |जिसकी नहीं हुई ,वह दुखी थी,उदास थी |समाज की तिरछी निगाहें उस पर पड़ रही थीं,पर उसे नींद खूब आती और जाहिर है कि नींद आएगी,तो उसमें सपने भी होंगे |सपनों में एक राजकुमार होता,जो उसे प्यार करता,पर यथार्थ में यह सच नहीं था,इसलिए वह परेशान थी |परेशान शादीशुदा लड़की भी थी|उसके राजकुमार ने उसे धोखा दे दिया था |वह बड़े बंधन में थी और सारे बंधन उसके राजकुमार की वजह से थे |उसे लड़की राजकुमारी नहीं लगती थी,और नौकरानी की तरफ काम नहीं करती थी |वह नौकरी तो करती ,पर वेतन राजकुमार को देते समय रूक-रूक जाती थी |राजकुमार की सबसे बड़ी शिकायत यह थी कि वह सोचती भी थी और उसे सोचने वाली स्त्री पसंद नहीं थी |दोनों सहेलियां एक दिन मिलीं और एक-दूसरे के दुःख-तकलीफ से परिचित हुईं |वे समझ नहीं पा रहीं थीं कि किसकी दशा को अच्छा कहें ?एक के पास नींद थीं,सपने थे,पर रात भर के,दिन जानलेवा था |दूसरी को ना नींद आती थी,ना सपने|दोनों ने कुछ फैसला किया और बिना किसी को खबर किए एक अनजान शहर में जा बसीं |दूसरे दिन उनके शहर में प्रचार था कि वे समलिंगी थीं,कहीं भाग गईं |