आशिक़ी....। Kumar Kishan Kirti द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आशिक़ी....।

"मैं राजन के बिना जिंदा नहीं रह सकती हूँ,क्योंकि मैं उससे प्यार करती हूँ।और यह मेरी आखिरी फैसला है।"इतना कहने के साथ ही रजनी की आँखें नम हो गई।

मगर उसके पिता सोहनलाल अपने जिद पर अड़े हुए थे।रजनी की तरफ क्रोध भरी आँख से देखते हुए बोलेे"तब तुम इतना जान लो की तुम्हारी शादी वही होगी जहा मैं चाहता हूँ।राजन जैसे भिखारी के घर तुम्हारी शादी करके मैं समाज में अपनी नाक कटवाना नहीं चाहता हूँ।"

इतना कहने के साथ ही वह बाहर निकल पड़े।रजनी नम आँख से अपनी पिता की तरफ देखती रह गई।आज उसे यह महसूस हुआ की उसके पिता उसकी मोहब्बत से ज्यादा महत्व इज्जत को देते है।

तभी उसकी माँ गायत्री देवी आई।उसे समझाती हुई बोली"सुन रजनी,हम लोग तुम्हारे दुश्मन थोड़े ही है।जो तुम्हारी खुशी को देखकर जलेंगे।राजन बेरोजगार और गरीब लड़का है।इसके अलावा उसका चरित्र भी सही नहीं है।हमलोग जिस लड़के के लिए तुम्हारी बात कर रहे है,वह सरकारी प्रशासनिक अधिकारी है और इसी जिले में पोस्टेड भी है।"मगर,रजनी की कानों में जूं तक ना रेंगी।वह उलटे ही अपनी माँ को समझाते हुए बोली"माँ,मुझे नहीं करनी है किसी अफसर से शादी।राजन जैसा भी है।मैं उसके साथ रह लूंगी।"इतना कहकर वह कमरे से बाहर निकल गई।

खैर,बात आई और चली गई।बीच में रजनी की शादी की चर्चा नहीं की गई।मगर.... एक सप्ताह बाद,एक ऐसी काम हुआ,जिसकी कल्पना किसी ने नहीं किया था।रविवार की सुबह थी।गायत्री देवी रजनी की कमरे की तरफ गई।देखी तो कमरा खुला हुआ था।मगर,रजनी दिखायी नहीं दे रही थी।वह आवाज देती हुई प्रत्येक कमरे में गई,मगर रजनी कही भी दिखाई नहीं दे रही थी।

यह देखकर वह बरामदे बैठे हुए अपने पति सोहनलाल के पास जाकर थोड़ा घबराहट के साथ बोली"सुनिए जी,अपनी रजनी दिखाई नहीं दे रही है।क्या आप जानते है,वह कहाँ गई हुई है।"यह सुनकर सोहनलाल निश्चिंत होकर बोले"अरे भाई!आप इतना परेशान क्यों हो रही है।कही गई होगी,थोड़ी देर में आ जाएगी।"मगर गायत्री देवी का मन नहीं मान रहा था।

यह सुनकर अपनी मन को शांत करते हुए वह जैसे ही बरामदे से होती हुई कमरे में प्रवेश कर रही थी, तभी उनकी नजर सामने टेबल पर रखी गई एक चिट्ठी पर गई।यह देखकर गायत्री देवी का हृदय जोर से एकाएक धड़का।वह पत्र को पढ़ने लगी।उनकी आँखें नम हो गई।वह रोते हुए अपने पति को बुलायी।आवाज सुनकर सोहनलाल घबराहट के साथ आए।उनको देखकर गायत्री देवी रोती हुई वह पत्र उनकी तरफ बढ़ा दी।

पत्र पढ़कर सोहनलाल की आँखें क्रोध से लाल हो गई।इसके साथ ही उनकी आँखें नम हो गई।उनकी इकलौती बेटी आज उनकी इज्जत को मिट्टी में मिलाकर चली गई है।
अब वह किस मुँह से लड़के वालों को जवाब देंगे।समाज को क्या जवाब देंगे।वह कैसे कहेंगे की उनकी लाडली बेटी रजनी उनकी इज्जत को मिट्टी में मिलाकर एक गरीब,बेरोजगार लड़के के साथ भाग गई है।

खैर, उन्होंने अपनी पत्नी की तरफ देखकर बोले"अब रोने से क्या फायदा?जो होना था,वह हो चुका है।अब यही समझ लो रजनी हमलोगों के लिए मर चुकी है।"इतना कहकर वह गुस्से से बाहर निकल गए।

दिन गुजरते गए।बात चारों तरफ फैल गई थी।मगर,सोहनलाल से कोई कुछ नहीं कहता।लड़केवाले ने रिश्ता तोड़ दिया।मजे लेने वाले मजा लेते थे,और जो सोहनलाल की मजबूरी समझते थे।उन्होंने उनका साथ दिया।अभी यह जख्म भरा ही नहीं था की एक दिन दोपहर के वक्त किसी ने दरवाजा खटखटाया।

गायत्री देवी दरवाजा खोली।यह क्या!उनकी आँखें फ़टी की फटी रह गई।उनको विश्वास नहीं हो रहा था।सामने उनकी बेटी रजनी खड़ी थी।उदास और नम आँखें,दुबला और थका हुआ शरीर।बेढंग कपड़ें।लगता ही नहीं था की वह हँसती-खिलखिलाती हुई रजनी का शरीर है।रजनी अंदर आकर अपनी माँ के गले लगकर जोर-जोर से रोने लगी।
गायत्री देवी की आँखें नम हो गई।वह भी रोने लगी।

तभी सोहनलाल वहाँ आ गए।रजनी को देखकर उनकी आँखें क्रोध से भर गई।वह चीखकर बोले"निकल जाओ,मेरे घर से।तुम मेरे लिए मर चुकी हो।हमारी इज्जत को मिट्टी में मिलाने वाली तुम कौन हो?"रजनी और उसकी माँ जैसी ही यह सुनी गायत्री देवी बोली"अब जो हो चुका है।उसे भूल जाइए।इसे अपनी करनी पर पछतावा है।"मगर सोहनलाल का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था। रजनी नम आंखों से रोती हुई बोली"राजन,की मीठी बातों में मैं बहक गई थी।मगर,वह एक शराबी और चरित्रहीन लड़का है।जैसे ही हमलोग मंदिर में भागकर शादी किए।उसी रात को राजन अपने दोस्तों के बीच में मुझे जलील कर रहा था और मुझे बेचने जा रहा है।तब मैं वहाँ से भागकर अपनी सहेली नीलू के घर पर आकर रहने लगी।अगर आपको विश्वास नहीं है तो आप नीलू के घर जाकर पूछ सकते है।"

इतना कहकर वह रोने लगी।सोहनलाल बोले"तुम्हारी जैसी लड़की ही आशिक़ी के चक्कर मे इज्जत का नाश करती है।प्यार करना गलत नहीं है, मगर प्यार के काबिल कौन है, इसकी परख होनी चाहिए।"
:कुमार किशन कीर्ति,युवा लेखक।