Life Cycle ( दस्तूर जिंदगी का ) Bhumesh Kamdi द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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Life Cycle ( दस्तूर जिंदगी का )

बचपन खो चूका है कही, किसी पुराने मोड़ पर

जवानी भी हे जा रही अपने लड़कपन के छाप छोड़ कर

आएगा बहोत जल्द वो मंजर भी ,लोग जिससे अकसर डर जाते है

इन तिन हिस्सों में सिमट जाती है जिंदगी और बाद में लोग मर जाते है

क्या यही है वो जिंदगी जिसके लिए तुम आतुर थे

क्या लगता है तुम्हे, जिंदगी के बस इतने ही दस्तूर है...

जब अस्पताल से तुम अपने घर किसी रेशम के कपडे में लिपटकर आते हो

जब थोड़े बड़े होकर नर्सरी के यूनिफार्म में सिमटकर जाते हो

तब सपनो को देखने की शुरवात होती है

क्या करना है से क्या नहीं तक की सारी बात होती है

तुम्हे लगेगी नादानी सारी, लगेगा सब आसन है

कभी जब चहरा दिखेगा तो सवाल भी होगा की इतना क्यों परेशां है

तुम उससे पूछोगे उसकी बेबसी की वजह

कुछ दिनों तक देखता रहेगा वो चहेरा हर जगह

फिर भी लाख कोशिशे के बाद तुम उसको समझ नहीं पाओगे

कोशिश करना चाहोगे फिर भी पकड़ तुम उसकी दुखती नस नहीं पाओगे

तब आखिर कार वह कह देगा की,

बेटा तुम अभी बच्चे हो उम्र पड़ी सारी अभी

यह दुनियादारी समझने में तुम अभी कच्चे हो

तब लगेगा तुम्हे ये क्या नशा है

जिसका किए बगेर ही इतना फितूर है

पर अभी बच्चे हो ना, नहीं समझोगे जिंदगी के क्या दस्तूर है

उसके बाद जब तुम अपना कदम रखोगे उस लड़कपन वाली जवानी में

तब रुख बदलेगा सारा, तब मोड़ आएगा कहानी में

जब तुम्हारे सपने तुम्हे तुम्हारी आँखों के सामने टूटते नजर आएंगे

जब तुम्हारे अपने तुम्हारी अपनों की रूठने की खबर लायेंगे

और कुछ वक़्त के बाद दिलो का टूटना भी होगा

सोचा नहीं होगा ना वैसे भी लोगो का साथ छुटना भी होगा

बाद में बदलते वक़्त का बहाना लेके तुम भी बदल जाओगे

रोना, धोना, जिद , उम्मीद सब छोड़ कर तुम भी संभल जाओगे

तब तुम ठान लोगे, चाहे जो भी हो जाये मुझे कोई फरक ही नहीं पड़ेगा

मुझे किसीकी परवा नहीं

सही तो बोहोत दूर की बात, मुजे तो कुछ गलत भी नहीं लगेगा

लाजमी हे ऐसा लगना

क्या करे जिंदगी की कहानी का दौर है

रुको क्या मेने आपको बताया की दुनिया में 7.7 Billion लोग और है

फिर आएगा नया चहेरा , फिर तुम पिघल जाओगे

दर्द सारे महसूस है ना तुम्हे ,फिर भी उसी राह निकल जाओगे

पर कहानी इस बार नयी होगी

प्यार, प्यार के साथ जिम्मेदारिया भी कई होगी

क्यूंकि पिछली नकाबियों से हार कर सारे ख्वाइशो को मार कर

तुम कुछ कर दिखाने के जिद पर जो अड़े थे

लाजमी है जिम्मेदारियों का होना ,

क्योंकी अब तुम पापा के कंधे पर नहीं अपने पैरो पर खड़े थे

जब लगेगा की फ़िलहाल जी लेते है ना जिम्मेदारियों की तहेत

आखिर अपनों का क्या कसूर है,

हो सकता है इसी का नाम हो जिंदगी और इसका ये भी एक दस्तूर है

उसके बाद जब तुम दोनों Phase पार कर जाओगे

जिंदगी की नाव को जिंदगी के किनार पर तुम लाओगे

तब तुम्हे महसूस भी नहीं होगा की कब तुम्हारा गम आधा हो जाएगा

देखते ही देखते किसीके साथ जिंदगी गुजारने का वादा हो जायेगा

एक दो साल में जब अपने जीवन साथी के आँखों का ख्वाब हो जाओगे

एक दो साल और गिनलो ना जब तुम अपने वारिस के बाप हो जाओगे

फिर उसके ढाचे में कही खुद का बिता कल देखोगे

चाहोगे की जो भी हो उसे अपने आखो के सामने हर पल देखोगे

फिर यकीन मानो ऐसा कुछ नहीं होगा

जो तुमने सोचा है वो तुम्हे कभी महसूस नहीं होगा

क्यों की उसके किसी दिल के कोने में कही

छोटा ही सही कोई तो अरमान जगा होगा ना

वो अपनी लाइफ के दुसरे Phase में है

तो वो भी दिल लगाने कही लगा होगा ना

अब तुम एक सवाल पूछोगे की

नयी ये नसल आखिर कर क्या रही है ..?

जिंदगी पड़ी है जीने को एक ठोकर लगने पर मर क्या रही है

पर जरा सोचो , क्या जरुरी है ऐसा कुछ सोचना

जवाब तो जानते हो तुम , तो क्या लाजमी हे ऐसा कुछ भी पूछना

की जो वो कर रहे वो कभी ना कभी तुम भी तो किया करते थे

और संस्कारो का हवाला तुम्हारे बुजुर्ग तुम्हे भी दिया करते थे

और तुम जानते हो की बड़े बुजुर्ग बात हमेशा कह कर जाते है

हमारे पास जो होता है ना हम वही अपने बच्चो को देकर जाते है

अब आगे खुश किस्मत रहे तो बच्चों की आँखों से आसू बनकर बरसोगे

अगर किस्मत ख़राब रही तो यकीन मानो उनकी एक झलक के लिए भी तुम तरसोगे

अब ऐसी गलत फ़हमी अपनी दिल को तुम दे जाना

चिल्ला तो नहीं पाओगे बस खामोश रह कर बस खुदसे यह कह जाना

की जिंदगी बड़ी अजीब है, हम सब इसके सामने मजबूर है

अपने हाथ में कुछ नहीं जनाब इसका यह भी एक दस्तूर है

अब पोहोचोगे तुम मौत के करीब, समा सारा कुछ और होगा

देखोगे तुम धीरे-धीरे जब शुरू जिंदगी का Phase 4 होगा

तब एक मंजर जितना नाजुक उतना ही वक़्त भी आएगा

वो दिन भी देखोगे ना जब तुम्हारा आखरी वक़्त भी आएगा

जब तूम्हारी जिंदगी तुम्हारे आँखों के सामने फ्लैशबैक मूवी की तरह रिलीज़ होने वाली होगी

जब तुम्हारी सांसे रुक-रुक के चलेगी और बादमे हमेशा के लिए फ्रीज होनी वाली आँखे होगी

जब आँखों के साथ-साथ उससे बहते आंसू भी छोटे होंगे

जब सुनाने को कहानिया और गोदमे सुनने वाले नाती-नातिन और पोते होंगे

तब तुम उन्हें समझाओगे जो समझ पाए, न समझ पाए सारी बात बताओगे

और वो भी फिर इसी जिंदगी की आदत डाल देंगे

एक कान से सुनेगे, दुसरे कान से निकाल देगे

इससे अच्छा हे की तुम उन्हें कामयाबी के नहीं तो नाकामयाबी के किस्से सुनाओ

जो तुम करना चाहते थे पर कर नहीं पाए ना वो सारी बात बताओ

अपनी जिंदगी की कहानी को कुछ अलग नजरिये से दिखाओ

सिर्फ जिन्दा रहना नहीं , उन्हें जीना भी सिखाओ

ताकि कल को जब वो तुम्हारे गोद से निकलकर अपने पैरो पे खड़े हो

तब जिम्मेदारिया छोटी लगे, पर हौसला बड़ा हो

तब अपनी हार को हराने को बिन हतियार लड़ा हो

जब अपनी सपनो के पीछे वो जी जान लगाकर पड़ा हो

तब अपने आप को अपने अन्दर कही मार ना दे

अपनी आप को अपनी जिम्मेदारियों के ढाचे में उतार ना दे

की कुछ कर जाने का जज्बा उसमे फिर ना जगे

तुम भी नहीं चाहोगे ना की कुछ समय बाद उसे भी ऐसा लगने लगे

हम सब कुछ और नहीं बस कुछ बेमतलब के मजदूर है

उस जॉब के जिसका नाम हे जिंदगी, और उसके अलग ही दस्तूर है