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गांधारी

लघुकथा ✍🏻( गांधारी )
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प्रीति = नीलम तुमने मुझे अचानक से ऐसे मिलने क्यों बुलाया, सब ठीक है न ?

नीलम = मन बेचैन था, सोचा तुमसे बात करुँ। अच्छा हुआ तुम आ गयी, यहाँ बैठो मेरे पास मुझे तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है ।

प्रीति = क्यों क्या हुआ ऐसा ?

नीलम = प्रीति, जैसा कि मैंने तुमसे पहले भी बताया हुआ है कि मैंने और अजीत ने दो बच्चें करने का निर्णय लिया था लेकिन अब मैं फिर से गर्भवती हूँ और अजीत चाहते हैं कि हम इस बच्चे को गिरा दें ।

प्रीति = क्या ।

नीलम = हाँ प्रीति, मुझे समझ नहीं आ रहा कि मुझे क्या करना चाहिए ।

प्रीति = इसमें ना समझने वाली क्या बात है तुम्हें उसे अब दुनिया में लाना ही चाहिए। उसे ख़त्म करना क्या सही होगा ? ये तो हत्या हुई न ।

नीलम = लेकिन मैं अजीत के ख़िलाफ नहीं जा सकती।

प्रीति = क्या वाकई, क्या ऐसा कभी नहीं हुआ कि तुम कभी भी अजीत के ख़िलाफ गयी ही नहीं हो ? या फिर ऐसा है कि तुम ख़ुद इस बच्चे को दुनिया में लाना नहीं चाहती ?

नीलम = हाँ प्रीति, मैं ख़ुद भी उसे दुनिया में नहीं लाना चाहती ।

प्रीति = लेकिन यह बात पहले सोचनी चाहिए थी, अब तो बहुत देर हो चुकी है , वह आ चुका है ।नीलम, हमारी ही रज़ामंदी से बेटों के लिए बेटियाँ कोख़ में ही मार दी जाती हैं और अगर हमें जितने बच्चे करने होते हैं उससे ज्यादा बार गर्भधारण हो जाए तो उनका क़त्ल करने को बेझिझक तैयार रहती हैं और तुर्रा ये होता है कि हम तो बेचारी हैं, हमसे ऐसा करवा दिया गया ।ये कैसी ममता और मातृत्व है ?
जब हम सब बातों में बोल सकते हैं तो इन बातों में क्यों नहीं, क्योंकि हम ख़ुद ही ऐसा चाहते है और चुपचाप तैयार रहते हैं , इसे गुनाह और अपराध की क्षेणी में नहीं रखतीं।
तुम समझाओ तो अजीत शायद मान भी जाए लेकिन तुम्हें कौन समझाए ।

पता है नीलम, दुर्योधन और दुशासन इतने बुरे भी नहीं होते जितने कि वो थे ।उनकी बुराई के पीछे जो अंधकार था वह गांधारी थी । धृतराष्ट्र तो प्रकृति तौर पर अंधे थे लेकिन समाज की बड़ाई पाने के लिए गांधारी ने भी आँखों पर पट्टी बांध ली कि पति दुनिया नहीं देख सकता तो मैं क्यूँ देखूँ ।वह चाहती तो अपनी आँखों से पति को दुनिया दिखा सकती थी लेकिन बड़ाई पाने का मोह तो प्रेम और ममता के मोह से ऊपर का था और नतीजा दुर्योधन, दुशासन जैसी अनेकानेक अंधकारग्रसित संतान ।

हम सबके अंदर भी एक गांधारी बैठी हुई है ।पट्टी खोलकर प्रकाश पाना या संपूर्ण जीवन अंधकारमय जीना दोनों विकल्प हैं हमारे पास, चुनाव तो हमें ही करना होगा ।

नीलम = कर लिया

प्रीति = क्या

नीलम = यही चुनाव कि अब तक जैसा भी जीवन जिया हो लेकिन आगे का जीवन ये गांधारी पट्टी खोलकर ही जियेगी ।
शुक्रिया प्रीति इस अज्ञानता की पट्टी को हटाने के लिए।

पुष्प सैनी 'पुष्प'

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