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तू मेरी जिंदगी हैं - भाग - 8

तू मेरी ज़िन्दगी हैं

भाग 8

विशाल ने डोर बैल बजाई।दरवाजा सावित्री देवी ने खोला।विशाल को देखकर सावित्री देवी को कुछ हैरानी हुई पर संभलकर बोली -
"आओ बेटा।"

विशाल अंदर आकर सोफे पर बैठ गया।

"मुझे खुशी के जाने का बेहद अफ़सोस है।मुझे हैरानी है कि उस मासूम सी लड़की की किसी से क्या दुश्मनी हो सकती है,को किसी ने उसकी हत्या क दी।"

"आंटी ,यही तो मैं भी जानना चाहता हूं।इसलिए आपके पास मदद मांगने आया हूं।"

"बोलो बेटा,मै क्या मदद कर सकती हूं?"

"आंटी,मै खुशी के पिछले जीवन के बारे मेकुछ जानकारी हासिल करना चाहता हूं।पर मुझे इस तरह के काम का कोई अनुभव नहीं है।आप पुलिस विभाग में है।इसलिए आपकी मदद चाहता हूं।"

"ये तो तुम उस पुलिस अफसर को भी का सकते हो, जो इस केस पर काम कर रहा है।"

"आंटी ,बात कुछ ऐसी है... कि.....विशाल बोलते बोलते रुक गया।"

"बेहिचक कहो बेटा।तुम मेरे परिवार के सदस्य जैसे हो।खुलकर बताओ...तुम क्या कहना चाहते हो?"

"आंटी...वो......वो खुशी जब लखनऊ में पढ़ती थी तो कॉलेज में उसका एक बॉयफ्रेंड था।मुझे शक है....ये काम उसने ना किया हो...विशाल ने सकुचाते हुए कहा।"

सुनकर सावित्री देवी के चेहरे पर एकसाथ कई भाव उभरे।वो कुछ बैचैन सी हो गई।पर कुछ सेकंड्स में ही उसने अपने भावों पर नियंत्रण पा लिया और संयत स्वर में पूछा -
"तुम्हे ऐसा क्यों लगता है?क्या खुशी का अब भी उस लड़के से मिलना जुलना था?"

"नहीं,मुझे नहीं लगता।खुशी बिंदास स्वभाव की थी।उसने शादी से पहले खुद मुझे उस लड़के के बारे में बताया था।उसने कहा था कि वो लखनऊ छोड़ने के बाद उस से कभी नहीं मिली।वो नहीं जानती की वो कहां है?अगर वो उस लड़के को दोबारा मिलती तो मुझे जरूर बताती।"

"क्या नाम था उस लड़के का?सावित्री देवी ने अपनी अनुभवी निगाहें विशाल के चेहरे पर जमा रखी थी।"

"मुझे नहीं पता।खुशी ने उसका नाम बताया नहीं और मैंने पूछा नहीं।"

सावित्री देवी थोड़ी देर चुप रही।फिर बोली।

"जब तुम उस लड़के को जानते नहीं हो।खुशी उस लड़के के संपर्क में नहीं थी। फिर तुम्हे उस लड़के पर शक क्यों है?"

"क्योंकि और किसी के पास खुशी का क़त्ल करने की कोई वजह नहीं है।वो लड़का हो सकता है अब भी खुशी से प्यार करता हो।उसे जब पता चला कि खुशी ने किसी और से शादी कर ली तो उसने गुस्से में आकर खुशी की हत्या कर दी हो"....विशाल ने अपनी थ्योरी बताई।

सावित्री देवी कुछ देर शांत रही फिर कुछ सोचकर बोली-
"आपने ये बात पुलिस ऑफिसर को बताई है?"

"नहीं"

"ठीक किया।बताना भी मत।हो सकता है तुम्हारा अंदाजा गलत हो।पुलिस ऑफिसर को बताने से खामखां खुशी की बदनामी होगी।मै अपने स्तर पर उस लड़के को ढूंढती हूं और पता लगाती हूं कि सच क्या है?"सावित्री देवी ने तसल्ली दी।

"क्या बाते हो रही है?"...राहुल ने पूछा तो उनका ध्यान दरवाजे की तरफ गया और उन्होंने देखा कि राहुल और मायरा अंदर आ रहे थे ।

"कुछ नहीं।बस मै खुशी की मौत का अफसोस कर रही थी।"...सावित्री देवी ने उत्तर दिया।
"मै यही पास से निकल रहा था तो सोचा कि मायरा तुम से मिलता हूं।शायद तुम्हे कोई ऐसी बात याद आई हो जिस से खुशी का कातिल ढूंढने में मदद मिल सके।"....विशाल ने बात को संभालते हुए कहा।

"विशाल,अगर मुझे ऐसा कुछ भी याद आया तो मै फौरन तुम्हे फोन करूंगी।"....मायरा ने जवाब दिया।

"वैसे तुमने अच्छा किया कि यहां आ गए।दोस्तो से मिलते रहोगे तो मन थोड़ा हल्का रहेगा।"...राहुल ने विशाल के कंधे पर हाथ रखकर कहा।

"तुम तीनो बाते करो,मै चाय लेकर आती हूं"...सावित्री देवी ने कहा और उठकर अंदर चली गई।

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अगले दिन शाम को राहुल घर पहुंचा।वो अभी कपड़े बदल ही रहा था कि पुलिस इंसपेक्टर का फोन आया।
"जी सर,कैसे याद किया।"....राहुल ने पूछा?
"एक बुरी खबर देनी है?"
"क्या..या हुआ?"राहुल का दिल किसी अनहोनी की आशंका से बुरी तरह धड़कने लगा।
"विशाल का एक्सिडेंट हो गया है।"... इंस्पेक्टर ने बताया।
राहुल के हाथ से मोबाइल छूट गया।

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लेखक -
मनीष सिडाना
m.sidana39@gmail.com


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