तू मेरी जिंदगी हैं - भाग - 5 Manish Sidana द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तू मेरी जिंदगी हैं - भाग - 5

तू मेरी ज़िन्दगी हैं
भाग 5

"बताइए खुशी के बारे में आप क्या बताना चाहती है?"... इंस्पेक्टर ने पूछा

"इंस्पेक्टर साहब ,खुशी को पता चला था कि समर कॉलेज में ड्रग्स का धंधा करता हैं।2 महीने पहले खुशी ने समर को कॉलेज में ड्रग्स का धंधा बंद करने को कहा था।खुशी ने समर को वार्निंग दी थी कि अगर उसने ड्रग्स सप्लाई करना बंद नहीं किया तो वो पुलिस को शिकायत कर देगी।समर ने उसके बाद अपना ड्रग का धंधा बंद कर दिया था।पर पिछले 15-20दिन से वो फिर कॉलज में ड्रग्स सप्लाई कर रहा था।खुशी ने समर को फिर धमकाया था और उनकी इस विषय पर तकरार भी हुई थी।समर ने खुशी को धमकी दी थी कि वो इस सब में ना पड़े,नहीं तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे"...मायरा ने विस्तार से बताया।

"खुशी ने पुलिस या कॉलेज मैनेजमेंट को शिकायत क्यों नहीं की?"...इंस्पेक्टर ने पूछा

"खुशी ने प्रिंसिपल को बताया था।पर उन्होंने उल्टा खुशी को इस सब से दूर रहने को कहा।समर को सत्ताधारी राजनैतिक दल से समर्थन है,इसलिए शायद प्रिंसिपल सर भी उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करना चाहते"....मायरा बोली।

"और कुछ खास?"

"जी नहीं"

"आप भी कुछ बताना चाह रहे थे"... इंस्पेक्टर ने राहुल को पूछा

"वो...वो कुछ खास नहीं।मै इसे खुशी की इंसूरेंस पॉलिसी के बारे में बता रहा था।"...राहुल ने जवाब दिया।

"ठीक है...उम्मीद करता हूं आप पुलिस से कुछ नहीं छिपाएंगे"....इंस्पेक्टर ने सख्त लहजे में कहा और चला गया।

"मै तुम्हे कुछ बताना चाहता हूं"....राहुल ने मायरा से कहा।

"अभी मेरे पीरियड का टाइम हो गया है।तुम शाम को घर आ जाओ।मम्मी भी तुम से कुछ बात करना चाहतीं है।बाय,शाम को मिलते है"...मायरा ने कहा और राहुल के जवाब का इंतजार किए बिना स्टाफ रूम से बाहर चली गई।

राहुल के चेहरे पर गंभीर भाव थे,वो गंभीरता से कुछ सोच रहा था।

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"समर , तुमने बताया था कि जब तुम ऑडिटोरियम में आए तो खुशी की हत्या हो चुकी थी।पर हमे पता चला है कि तुम उसकी हत्या से कुछ देर पहले उस से मिले थे और तुम दोनो का झगड़ा भी हुआ था".... इंस्पेक्टर ने सख्त लहजे में पूछा और अपनी निगाहें समर के चेहरे पर टिका दी।

"वो...वो" ...समर हड़बड़ाया और सोचने लगा कि क्या उत्तर दे।

"मुझे तुम्हारे ड्रग्स के धंधे के बारे में भी पता है।तुम सब कुछ सच सच बता दो।तुम्हारे लिए यही अच्छा रहेगा।".... इंस्पेक्टर ने कठोरता से कहा

"मेरा ऐसा कोई धंधा नहीं है।खुशी मेम को भी यही गलतफहमी थी। उस दिन खुशी मेम ने ही मुझे और प्रिंसिपल सर को ऑडिटोरियम में बुलाया था । वो चाहती थी कि मैं ड्रग्स के धंधे को बंद कर दू।मै उन्हे समझा रहा था कि उन्हें किसी ने गलत खबर दी है।पर वो मानने को तैयार नहीं थी।जब प्रिंसिपल सर ने उन्हे समझाने का प्रयास किया तो उन्होंने प्रिंसिपल सर पर ही इल्ज़ाम लगा दिया कि उनके सरंक्षण में ही मै कॉलेज में ड्रग्स का धंधा चला रहा हूं।इसी बात पर प्रिंसिपल सर और उनके बीच तीखी बहस हुई।तभी मेरी एक जरूरी कॉल आ गई और मैं बात करने के लिए ऑडिटोरियम से बाहर आ गया।5-7 मिनट बाद प्रिंसिपल सर भी बाहर आ गए।तब तक मेरी कॉल भी ख़त्म हो गई थी।प्रिंसिपल सर ने मुझे कहा कि अभी खुशी मेम गुस्से में है।इसलिए इस समय बात करना ठीक नहीं।मै अभी अपने क्लास में जाऊं।मैंने उनकी बात मान ली और उनके साथ ही अपनी क्लास की और चल दिया"...समर बता रहा था

"फिर क्या हुआ?"... इंस्पेक्टर ने उत्सुकता से पूछा

"मेरा मूड खराब हो गया था ,इसलिए मै कैंटीन में आ गया। 10-15मिनट बाद मुझे ध्यान आया कि मेरी नोट बुक्स तो ऑडिटोरियम में ही रह गई है।इसलिए मै वापिस ऑडिटोरियम गया। वहां मैंने देखा कि खुशी मेम की हत्या हो चुकी थी।मैंने ऑडिटोरियम से बाहर आकर शोर मचाया और सब इकट्ठे हो गए।"...समर ने बात ख़तम की

"तो तुमने खून होते नहीं देखा?"

"नहीं सर"

"ये खून तुमने या प्रिंसिपल ने या दोनो ने मिलकर तो नहीं किया?"...इंस्पेक्टर ने पूछा

"नहीं सर,मै बिल्कुल सच बता रहा हूं।"

"अब कुछ छिपाया तो तुम्हे बहुत महंगा पड़ेगा"...इंस्पेक्टर ने चेतावनी दी।

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लेखक - मनीष सिडाना
m.sidana39@gmail.com