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तू मेरी जिंदगी हैं - भाग - 6

"तू मेरी ज़िन्दगी है" के सभी पाठको का एक बार फिर स्वागत है।आप सभी इसे इतना पसंद कर रहे है,इसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।

तू मेरी ज़िन्दगी है
भाग -6

"प्रिंसिपल साहब,आप खुशी की ह वाले दिन खुशी से मिले थे"...इंस्पेक्टर ने प्रिंसिपल से सीधा सवाल किया और अपनी अनुभवी नजरे प्रिंसिपल के चेहरे पर जमा दी।

जी ,उसने समर को ऑडिटोरियम में मिलने के लिए बुलाया था।समर की शिकायत थी कि खुशी उस पर बेबुनियाद इल्ज़ाम लगाकर उसे परेशान कर रही है।इसलिए वो चाहता था कि मै भी उसके साथ
जाऊं।समर ने बहुत रिक्वेस्ट की तो मुझे उसके साथ ऑडिटोरियम जाना पड़ा।...प्रिंसिपल ने जवाब दिया।

वहां क्या बात हुई?... इंस्पेक्टर ने पूछा

वहां खुशी ने इल्ज़ाम लगाया कि समर कॉलेज में ड्रग्स सप्लाई करता है।समर ने इसका विरोध किया।उन दोनों में इस बात को लेकर तीखी नोक झोंक हुई।मैंने बीच बचाव करते हुए खुशी से कहा कि उसके पास कोई सबूत हो तो दिखाएं।इस बात पर वो उल्टा मुझ पर इल्ज़ाम लगाने लगी कि मेरी शह पर ही वो कॉलेज में ड्रग्स का धंधा चला रहा है।इस बात पर मुझे भी गुस्सा आ गया।इतने में समर की कॉल आ गई और वो ऑडिटोरियम से बाहर आ गया।मैंने खुशी को कहा कि वो पहले सबूत इकट्ठे करे फिर किसी पर इल्ज़ाम लगाए।अगर वो समर्वकी खिलाफ कोई सबूत लाती है तो मै फ़ौरन समर को कॉलेज से निकाल दूंगा और पुलिस ने भी कंप्लेन करूंगा।पर जब तक उसके पास सबूत ना हो वो समर को तंग ना करे।ये कहकर मै ऑडिटोरियम से बाहर आ गया।समर भी वही से अपनी क्लास के लिए चला गया।थोड़ी देर बाद समर ने शोर मचाया की ख़ुशी का क़त्ल हो गया है। ... प्रिंसिपल ने बताया

क्या आप लोगो के बाद कोई और भ खुशी से मिला था...इंस्पेक्टर ने कुछ सोचते हुए पूछा

पता नह

अपने किसी और को ऑडिटोरियम के आस पास देखा?

नहीं

मुझे लगता है समर और आप एक दूसरे को फेवर कर रहे हैं।

ऐसा कुछ नहीं है.. प्रिंसिपल ने विरोध किया

अच्छी बात है...पर अगर आपकी बाते गलत निकाली तो आप बहुत परेशानी में आ जाएंगे...कहकर इंस्पेक्टर बाहर निकाल गया।

प्रिंसिपल ने उसके जाने के बाद पसीना पोंछा और मोबाइल निकालकर एक नंबर डायल किया।

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समर ने बेल बजाई।दरवाजा सावित्रीदेवी ने खोला।
आओ बेटा,सावित्रीदेवी ने अपनेपन से बुलाया और ड्राइंग रूम में ले गई।

आजकल मायरा बहुत उदास रहती है ,इसलिए तुम्हे बुलाया है। मै जानती हूं खुशी तुम दोनो की बहुत अच्छी दोस्त थी।पर दुनिया तो किसी के लिए नहीं रुकती।समय के साथ आगे बढ़ना पड़ता है। तुम मायरा के साथ थोड़ा वक्त बिताओ,कहीं घूम आओ,तो तुम दोनो को अच्छा लगेगा...सावित्री देवी के चेहरे पर चिंता कि लकीरें थी।

जी मम्मी,कहा है मायरा...राहुल ने पूछा

अपने कमरे में है,जाओ उसे मनाकर थोड़ी देर बाहर घूम आओ...सावित्री देवी ने गंभीर स्वर में कहा।

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राहुल और मायरा एक रेस्तरां में बैठे थे।
मायरा,तुमने कभी अपने पापा के बारे में नहीं बताया....राहुल ने बातचीत शुरू करने के लिए पूछा।

अच्छा हुआ,तुमने पूछ लिया।मै भी तुम्हे बताना चाहती थी।पापा की कुछ साल पहले बीमारी से मौत हो गई थी।उनके जाने से कुछ साल पहले मम्मी को पता चला कि पापा ने लखनऊ में एक और शादी की हुई थी और उस से उन्हे 1 बेटी भी थी।जब मम्मी को ये सब पता चला तो उन दोनों में तनाव रहने लगा।मम्मी उन्हे छोड़कर जाना चाहती थी,पर पापा की तबीयत खराब हो गई।पापा को अफसोस था कि उन्होंने मम्मी को धोखा दिया है,इसी गम में उनकी कुछ समय बाद ही मृत्यु हो गई...बताते हुए मायरा की आंखो में आंसू थे।

ओह, आई एम सॉरी...राहुल ने मायरा का हाथ थपथपा कर उसे तसल्ली दी।

सुबह तुम कुछ बताना चाह रहे थे....मायरा ने विषय बदलते हुए पूछा।

मै वो..वो...कुछ खास नहीं।मै तो बस थोड़ी देर तुम्हारे साथ बात करना चाहता था....राहुल ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया।

राहुल के चेहरे पे एक साथ कई भाव आए और गए।जैसे वो किसी विषय पर निर्णय नहीं कर पा रहा हो।

अच्छा जी,ये बात है।इसके लिए बहाने बनाने की क्या जरूरत है...मायरा ने प्यार से कहा।

कभी कभी बहाने भी बनाने चाहिए....राहुल ने मायरा की आंखो में झांकते हुए कहा

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राहुल घर लौटा तो मन पर एक बोझ सा था।वो जो बात मायरा को बताने के लिए गया था,वो बात उसे बता ही नहीं पाया।मायरा ने अपने पापा कि जो कहानी सुनाई, उसे सुनने के बाद उसे फ़िलहाल चुप रहना ही ठीक लगा। पर अंदर ही अंदर उसका मन उसे धिक्कार रहा था।

उसे मायरा से सच और नहीं छुपाना चाहिए था।शादी से पहले मायरा को सब सच बता देना चाहिए।पर क्या मायरा उसे समझ पाएगी।
अगर उसने नाराज़ होकर सगाई तोड़ दी तो?
और अगर अभी नहीं बताया और मायरा को बाद में पता चला तो वो क्या सोचेगी?

राहुल के मन में भारी उथल पुथल मची हुई थी।वो मायरा को सच बताना चाहता था पर अंजाम से डरता था।वो सोच रहा था...
मै कैसे मायरा को बता दू कि .... कि मायरा नहीं बल्कि खुशी उसका पहला प्यार थी ।
कैसे बताऊं...कैसे?

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लेखक - मनीष सिडाना
m.sidana39@gmail.com

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