साहेब सायराना - 12 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साहेब सायराना - 12

दिलीप कुमार अपनी सेहत को लेकर हमेशा बहुत सजग रहते थे। कैरियर के आरंभिक दौर में उनकी कई चुनौतीपूर्ण फ़िल्मों के चलते उनके मन में हमेशा कोई भय बना रहता था। वे अपने किरदार के ढांचे- खांचे में उतरना ज़रूरी समझते थे। उन्हें लगता था कि जब वो अपने कैरेक्टर के जिस्म में परकाया प्रवेश करेंगे तभी फ़िल्म सफ़ल होगी। वे पर्याप्त तैयारी करते थे।
इस आदत के चलते ऐसा हुआ कि दुखद भूमिकाओं में ढलते- ढलते उनके व्यक्तित्व में एक धीर गंभीरता घर कर गई। वो अपने पात्र के दुख को महसूस करते हुए उसे व्यक्तिगत तौर पर जीते थे।
यहां तक कि उन्हें ये डॉक्टरी सलाह भी मिलने लगी कि वो अपने दिमाग़ को अनावश्यक जटिलता से बचाएं।
दूसरी तरफ शादी के समय उनकी पत्नी सायरा बानो उनसे आधी उम्र की थीं। इस सच ने भी उन्हें सचेत किया हुआ था और वो लगातार अपनी सेहत को लेकर फिक्रमंद रहते थे। उनके पारिवारिक डॉक्टर लगातार उनके संपर्क में रहते थे और उनकी नियमित जांच होती रहती थी।
यही कारण था कि सायरा बानो की फिल्मी इमेज को देखते - जानते हुए भी उन्होंने सायरा बानो के साथ फ़िल्में करने के लिए हामी भरी। उनकी कई फ़िल्में साथ - साथ आईं।
मीडिया में लगातार ऐसी ख़बरें आती ही रहती थीं कि दिलीप कुमार फ़िल्म में अपनी भूमिका को लेकर तो चौकन्ने रहते ही हैं, वो अन्य दमदार अभिनय करने वाले सहअभिनेताओं के रोल्स पर भी ध्यान देते हैं। उन्हें किसी भी फ़्रेम में किसी अन्य अभिनेता का अपने पर हावी होना कतई बर्दाश्त नहीं था। कई बार दबे- छिपे ढंग से ऐसी ख़बरें आती थीं कि दिलीप कुमार अपने संवादों को बदलवा लेने से लेकर दूसरों के रोल्स में काट- छांट करवा देने के लिए भी प्रयास करते हैं। उनकी सफ़लता व वरिष्ठता को देखते हुए कोई उन्हें इससे रोकने की जुर्रत भी नहीं कर पाता था।
कई पटकथाकारों व संवाद लेखकों ने तो इस बात के भी मज़े लिए। लगभग यही बात राजकुमार के साथ भी कही जाती थी। तो राजकुमार और दिलीप कुमार को लेकर कुछ फ़िल्मों में दमदार संवाद युद्ध ही रच दिया गया। दर्शकों को भी इस मुकाबले में असीम आनन्द आया।
दिलीप कुमार की बादशाहत को अमिताभ बच्चन की भीमकाय सफ़लता के साथ भी भुनाया गया।
इस तरह युसूफ साहब की उड़ती जुल्फें देख कर केवल कुंवारियों के दिल ही नहीं मचले बल्कि कई सूरमाओं की पेशानियां भी फड़कीं!
दिलीप कुमार और सायरा बानो के परिवार की एक और खासियत अक्सर लोगों का ध्यान खींचती रही है। उनका लंबा चौड़ा परिवार है जिसमें कई भाईबहन और उनके अपने परिवार शामिल हैं। लेकिन दिलीप कुमार की फिल्मी बादशाहत का फ़ायदा उनके लंबे चौड़े परिवार में कभी किसी ने नहीं उठाया। शायद इसका एक प्रमुख कारण यही है कि दिलीप कुमार उर्फ़ यूसुफ खान का परिवार एक प्रतिष्ठित कारोबारी जमींदार परिवार है जहां लोग अपने - अपने तरीके से खाने कमाने में यकीन रखते हैं। जबकि इसके ठीक उलट उनके मित्र राजकपूर के परिवार में लगभग सभी लोग कैमरे और लाइट की चकाचौंध में रहे हैं।
इतने दशकों के लंबे चौड़े फिल्मी जीवन में एक बार सायरा की भतीजी शाहीन ने, और एक बार दिलीप कुमार के भतीजे अयूब खान ने फ़िल्मों का रुख किया लेकिन ये दोनों ही जल्दी ही फ़िल्मों को अलविदा भी कह गए।
फ़िल्मों के जानकार कहते रहे हैं कि फिल्मी दुनिया केवल काबिलियत की दुनिया ही नहीं है बल्कि ये नसीब और सिफारिशों की दुनिया भी है। यहां यदि आपकी सूरत कैमरे को न भाए तो आप तत्काल नकार दिए जा सकते हैं जबकि पारिवारिक सपोर्ट वाले लोग बरसों बरस नाकामयाब होकर भी बने रह सकते हैं और सफ़लता के लिए लंबी बाट जोहते रह सकते हैं।