साहेब सायराना - 8 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

साहेब सायराना - 8

उन्नीस सौ छियासठ।

दिलीप कुमार की उम्र चालीस पार कर चुकी थी किंतु उनका विवाह नहीं हुआ था। इसके कई कारण थे।


पहली बात तो यह थी कि दिलीप कुमार पाकिस्तान में जन्म लेकर बाद में यहां आए थे। उनका खानदान, संपर्क, रिश्ते नाते ज़्यादातर वहीं थे।


दूसरे, दिलीप ने फ़िल्मों में काम करने के लिए अपना असली नाम यूसुफ खान छोड़ कर दिलीप कुमार रख लिया था। ये नाम उन्हें फ़िल्म अभिनेत्री और स्टूडियो की मालकिन देविका रानी ने दिया था। नाम बदलने का कारण यह था कि वो अब पाकिस्तान छोड़ कर देश के हिंदू बहुल इलाके में आ गए थे और फ़िल्म जगत ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की पसंद से चलने वाला उद्योग ही था। एक मुस्लिम अभिनेता का हिंदू नाम रखना जहां उसके धार्मिक रूप से उदारवादी होने का संकेत था वहीं हिंदू मुस्लिम एकता का पक्षधर होना भी माना गया था।


लेकिन इस परिवर्तन से उनकी पारिवारिक स्थिति थोड़ी विचित्र हो गई थी। मुस्लिम समाज को लगने लगा था कि यूसुफ दूसरे धर्म को अपनाना चाहते हैं इसलिए उनके अपने समाज के लोगों की रुचि उनमें सीमित हो गई थी। उधर हिंदू समाज का मानना तो ये था ही कि केवल नाम बदलने से क्या होता है। संस्कार, तौर तरीके तो अपने असली धर्म के ही होते हैं।


अतः उनके जीवनसाथी के रूप में ऐसी लड़की की कल्पना ही की जाती थी जो ख़ुद उन्हीं की तरह हो। जिसे धर्म- जाति से अधिक आपसी संबंधों और सद्भाव पूर्ण आदर-प्यार की दरकार हो।


दिलीप एक बेहतरीन कलाकार होने के साथ- साथ एक संवेदनशील इंसान भी थे। उन्हें लड़कियों के पीछे भागने और घर बसाने की कोई जल्दी नहीं थी। उनके लिए सही और संवेदनशील जीवनसाथी का मिलना ही महत्वपूर्ण था।


दिलीप कुमार के अभिन्न मित्र और फिल्मोद्योग के प्रतिस्पर्धी राजकपूर की कहानी भी उनके सामने थी जहां नरगिस और राजकपूर के बीच उत्कट प्रेम के बावजूद उन्हें विवाह करके साथ में घर बसाने की अनुमति नहीं मिली थी।


इन सब बातों ने एक तरह से दिलीप कुमार को गृहस्थी बसाने से उदासीन सा कर रखा था। वे पूरी तन्मयता और संजीदगी से अपने शानदार फिल्मी कैरियर को संवारने में ही दत्तचित्त थे। एक से बढ़कर एक शानदार फ़िल्में उन्हें मिल भी रही थीं और कामयाब भी हो रही थी।


स्वभाव से शर्मीले दिलीप कुमार आसानी से सभी महिलाओं के साथ खुलते नहीं थे। बेहद संकोची होने के चलते उनकी अधिकांश नायिकाएं मधुबाला, मीना कुमारी, निम्मी, वहीदा रहमान आदि मुस्लिम परिवार से ही आती थीं।


ऐसे में कई बातों का जवाब बन कर एक ही नाम उभरा- सायरा बानो! और यही सायरा बानो उनकी जीवन संगिनी बन गईं। धूमधाम से दशक की एक बड़ी खबर की तरह दोनों परिणय सूत्र बंधन में बंध गए।


एक विचित्र किंतु प्यारी सी बात भी इन्हीं दिनों हुई जिसे अधिकांश दर्शक बहुत कम जानते हैं क्योंकि यह किसी गॉसिप कॉलम में तो आई नहीं। हां, उन दोनों के बेहद करीबी लोग इस बात को ज़रूर जानते हैं।


शादी के बाद दिलीप कुमार ने जब सायरा बानो से प्यार से पूछा कि उन्हें इस मुबारक मौके पर तोहफ़े के रूप में क्या चाहिए, तो बेगम सायरा बानो ने बहुत ही ख़ूबसूरत जवाब दिया। वो बोलीं- बस ये वादा कीजिए कि ज़िन्दगी भर उन्हें अपने से दूर नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें अपने शौहर की दूसरी बेगम बनने से बेहद डर लगता है। दुआ कीजिए कि ऐसा दिन उनके जीवन में कभी न आए!


और दिलीप साहब ने भी शायद मन ही मन कह दिया-


"तुम्हारे हुस्न की तारीफ़ आइना भी करे,


तो मैं खुदा की कसम है कि तोड़ दूं उसको!"