साहेब सायराना - 6 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साहेब सायराना - 6

दिलीप कुमार ने अपनी कई फ़िल्मों में इतनी गंभीर और दुखभरी भूमिकाएं निभाईं कि लोग उन्हें फ़िल्म जगत का ट्रेजेडी किंग ही कहने लगे। दीदार फ़िल्म में उन्होंने नेत्रहीन व्यक्ति का चरित्र भी जिया। दिल दिया दर्द लिया और आदमी जैसी फ़िल्मों ने उनकी छवि को भुनाया।
लोग ऐसी ही संजीदा भूमिकाएं निभाने के लिए मीना कुमारी को भी ट्रेजेडी क्वीन कहते थे। कहा जाता है ये इने गिने एक्टर्स फिल्मी पर्दे पर आंसू बहाने के लिए कभी ग्लिसरीन जैसे नकली द्रव्यों का प्रयोग भी अपने मेकअप मैन को नहीं करने देते थे। दिलीप कुमार की फिल्मी जोड़ी भी मधुबाला, मीना कुमारी या वहीदा रहमान जैसी ऐसी ही नायिकाओं के साथ जमती थी जो फिल्मी पर्दे पर दुःख भरे किरदारों को जीवंत करती थीं।
लेकिन इस सबके बावजूद दिलीप कुमार को वो कच्ची उमर की गुड़िया सी लड़की सायरा बानो भी भूली नहीं थी जो अपनी स्कूली परीक्षा के बाद उनकी शूटिंग देखने की चाहत लेकर अपनी मां के साथ आई थी और देखते ही देखते अब ख़ुद एक कामयाब हीरोइन बन चुकी थी। दोनों की फिल्मों का व्यावसायिक मिजाज़ इतना जुदा - जुदा था कि कभी किसी निर्माता ने उन्हें किसी फ़िल्म में एक साथ अनुबंधित करने की बात सोची ही नहीं। दोनों की आयु में बहुत बड़ा अंतर भी तो था।
लेकिन इश्क चाहे इकतरफा ही हो, गुल खिला कर ही रहता है। सायरा बानो को दिलीप कुमार से मिलना अच्छा लगता था और वो किसी न किसी बहाने उनके सामने पड़ने की कोशिश अपनी ओर से किया ही करती थीं।
इन दोनों को गाहे - बगाहे मिलवाने का काम ख़ुद सायरा बानो की मां नसीम बानो भी करती थीं क्योंकि दिलीप कुमार उनकी बहुत इज्ज़त किया करते थे। नसीम के कई दूरदराज़ के पारिवारिक मित्र दिलीप कुमार के परिवार के भी निकट थे। ऐसे में निजी व पारिवारिक समारोहों में उनके मिल पाने के मौक़े भी जब तब निकलते ही रहते थे। दोनों के ही परिवारों का पुश्तैनी रिश्ता पाकिस्तान से रहा था।
एक बहुत बड़ा कारण यह भी था कि नसीम बानो ने अभिनय से संन्यास ले लेने के बावजूद फिल्मी दुनिया से अपना रिश्ता बदस्तूर बनाए ही रखा था। एक तो उनकी बेटी सायरा बानो ख़ुद हीरोइन बन गई थी और दूसरे उन्होंने ख़ुद भी फ़िल्मों में ड्रेस डिज़ाइनर के रूप में काम करना जारी रखा था। वो प्रायः सायरा के परिधान से संबंधित काम ख़ुद ही देखती थीं।
फ़िर दिलीप कुमार और सायरा बानो की उम्र का अंतर भी इतना था कि उन दोनों के मिलन को चटखारे लेकर देखने वाले पत्रकार भी आसानी से भांप नहीं पाते थे। आख़िर कोई सायरा बानो के दिल में उतर कर तो ये देखता नहीं था कि मोहतरमा यूसुफ साहब को किस चश्मे से देखती हैं। एक निहायत ही संजीदा और आदर का रिश्ता कायम था। एक दूसरे के घर भी मौक़े बेमौके आना- जाना था।
हां, सायरा के दिल में कभी- कभी इस ख्वाहिश का सागर ज़रूर ठाठें मारता था कि काश किसी फिल्मकार के दिल में कभी उन्हें दिलीप साहब की हीरोइन बनाने का ख़्याल आए।
फिल्मी दुनिया में राजकपूर, दिलीप कुमार और देवानंद की तिकड़ी कभी राज करती थी। बड़ी उम्र के पुरुषों की ओर स्वाभाविक लगाव ने सायरा बानो को देवआनंद की हीरोइन भी बनाया और राजकपूर की भी।
लेकिन उनके भविष्य के गर्भ में तो एक ऐसी कालजयी जोड़ी का भवितव्य छिपा था जो उन्हें जीवन- भर के लिए जोड़ने वाली थी।
दिलीप कुमार के लिए उनके दिल की ये उमंग भी बनी रही और उधर दिलीप कुमार की नज़रों में सायरा बानो के लिए बना एक निराला सॉफ्टकॉर्नर भी दिपदिपाता रहा।
फिर शुरू हुआ सिलसिला...!