नीम का पेड़ (भाग 16) Kishanlal Sharma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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नीम का पेड़ (भाग 16)

51--लोकतंत्र
लाल चन्द्र अपराधी प्रवृत्ति का आदमी था।लोग उसे पसंद नही करते थे।फिर भी तीन बार से पार्षद का चुनाव जीत रहा था।चुनाव के समय बड़े बड़े वादे करता।वोट लेने के लिए हाथ जोड़ता,पैर छूता।जाति धर्म की दुहाई भी देता।चुनाव जीतने के लिए कुशल राजनीतिक की तरह सारे हथकंडे अपनाता लेकिन चुनाव जीतने के बाद सब कुछ भूल जाता।
मोहल्ले के कुछ शरीफ और बुद्धजीवी लोगो ने इस बार लाल चंद को हराने का फैसला कर लिया।बनवारी लाल लालचंद की जाति के ही थे।निहायत शरीफ ईमानदार और सज्जन।इसी साल प्रिंसिपल पद से रिटायर हुए थे।वह राजनीति को दलदल मानते थे।इसलिए इस पचड़े में पड़ना नही चाहते थे।लेकिन मोहल्ले के समझदार लोगो के जोर देने पर उन्होंने पार्षद का पर्चा भर दिया।
लाल चंद ने सोचा था।बनवारी लाल राजनीति में नोसिखिये है।लोगो ने जबरदस्ती पर्चा जरूर भरवा दिया है,लेकिन वह चुनाव नही लड़ेंगे।पर्चा वापस ले लेंगे।लेकिन ऐसा नही हुआ।तब लालचंद उनके पास जा पहुंचा।जाति का हवाला देकर चुनाव न लड़ने का अनुरोध किया।लाल चंद की बात सुनकर बनवारी लाल बोले,"पहले आते।अब तो नाम वापस लेने की तारीख निकल गयी।
"गलती हो गयी,"लाल चंद बोला,"लेकिन एक उपाय है।"
लाल चंद ने बनवारी लाल के नाम से अपने समर्थन में पर्चे छपवा दिए।वह प्रचार करते समय बनवारी लाल को साथ लेकर घूमने लगा।
बनवारी लाल राजनीति के पचड़े में नही पड़ना चाहते थे।लेकिन लोगो ने जबरदस्ती पर्चा भरवा दिया था।लोग पर्चा भरवाकर अलग हो गए।लेकिन परेशान वह हो रहे थे।वह चाहते थे,चुनाव हो और उनकी जान छुटे।और वोट पड़ गए।
लाल चंद जीत के प्रति आश्वस्त था।लेकिन लोकतंत्र में जनता सर्वोपरी होती है।लाल चंद के पक्ष में प्रचार करने के बावजूद लोगो ने उसे हराकर बनवारी को जीता दिया था।
52--राजनीति
एक प्रत्यासी घर घर जाकर वोट देने की अपील कर रहा था।वह रामदीन के घर भी पहुंचा और हाथ जोड़कर बोला,"भाई साहब मेरा ध्यान रखना।वोट मुझे ही देना।"
'"तुम?"प्रत्यासी को देखकर रामदीन चोंककर बोला,"तुम तो वो ही हो जो मेरी पत्नी के गले से चेन खींचकर भागे थे।"
प्रत्यासी पहले जेबकतरी,छीना झपटी जैसे गलत धंधे करता था।पिछले दिनों वह एक राजनैतिक पार्टी से जुड़ गया था।चुनाव में उसे उमीदवार बना दिया गया था।रामदीन उसे देखते ही पहचान गया।
"भाई साहब मैने आपकी पत्नी की जंजीर लौटा तो दी थी,"प्रत्यासी खीसे निपोरकर बोला,"पिछली बात भूलकर एक बार सेवा का मौका तो दीजिए।"
प्रत्यासी अपने समर्थकों के साथ चला गया।रामदीन सोच रहा था।यह चुनाव जीत गया तो लोगो का क्या भला करेगा।जनता के सामने क्या आदर्श प्रस्तुत करेगा।क्या आज की राजनीति गुंडे,अपराधी,दागियों के लिए ही रह गयी है?
53--आरोप
एक और मंत्री का इस्तीफा
भ्र्ष्टाचार के आरोप में तीन मंत्री पहले ही इस्तीफा दे चुके थे।इस्तीफा देने वाले यह चौथे मंत्री थे।इस्तीफा देने वाले मंत्री का कहना था कि उन पर लगाये गये आरोप बेबुनियाद है।विरोधियों की साजिश है।वह निर्दोष है।बेगुनाह है
।उन्होंने इस्तीफा इसलिए दिया है ताकि उनकी वजह से पार्टी को कोई परेशानी न हो।
पार्टी प्रवक्ता का कहना था कि मंत्री दोषी सिद्ध नही हुए है।उन पर आरोप लगे है।आरोप लगने से कोई दोषी नही हो जाता।जब तक अदालत दोषी न सिद्ध कर दे
छोटा सा सवाल--हमारे नेताओं से।उन पर आरोप लगते ही क्यो है?दाल में कुछ तो काला होता ही होगा।


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