23--रेपुटेशनन
"शर्मा स्टेसन चलना है।पंजाब मेल से मदर आ रही है"
व मण्डल वाणिज्य प्रबन्धक कुमार ने चेम्बर में बुलाकर मुझसे कहा था।मैं उनके साथ स्टेसन आया था।कुमार के आने की खबर मिलते ही सी टी आई,हेड टी सी,डिप्टी एस एस आदि कुमार को देखते ही आ गए थे।पंजाब मेल से कुमार साहब की माँ आयी थी।माँ को उन्होंने रिटायरिंग रूम में ठहराया था।रिफ्रेशमेंट के ठेकेदार को बुलाकर चाय नाश्ता और खाने की हिदायत दे दी थी।माँ से कुछ देर बात करने के बाद कुमार साहब बोले,"माँ चलता हूँ।शाम को आऊंगा तब फुरसत में बात करेंगे।"
स्टेशन से लौटते समय मैने कुमार साहब से पूछा था,"सर् आपके पास इतना बड़ा बंगला है।पत्नी और बेटी भी है।फिर माँ को यहाँ क्यो ठहराया है?"
"माँ को गांव में अकेले रहने की आदत है। उन्हें शोरगुल पसंद नही है।मैं उनसे मिलने जाता रहता हूँ। अबके जा नही पाया इसलिए माँ मुझसे मिलने आ गयी है।"
कुमार साहब ने असली बात नही बतायी थी।उनकी मॉडर्न बीबी को यह पसंद नही था कि उसकी फूहड़ अनपढ़ सास बंगले पर रहकर उसकी रेपुटेशन का कचरा करे।
24--- दोस्त
वह युवती के बगल में खाली सीट देखकर बैठ गया।कुछ देर तक चुप रहने के बाद बोला,"आप क्या करती है?"
"सर्विस"उसकी बात सुनकर सपना बोली।
"मेरा नाम राजेश है,"वह अपने बारे में बताते हुए बोला,"मुझसे दोस्ती करोगी?"
सपना ने राजेश का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।राजेश के मांगने पर अपना मोबाइल नंबर भी उसे दे दिया।स्टॉप आने पर वह उठते हुए बोली,"टाटा
उसके बाद कई दिनों तक राजेश ने सपना को बस में तलाश पर वह नही मिली तब एके दिन उसने उसे फोन किया
"कौन?"सपना बोली।
"राजेश। "
" कौन राजेश।मैं किसी राजेश को नही जानती।"
"उस दिन हम बस में मिले थे",राजेश उसे याद दिलाते हुए बोला।
"मर्दो की फिदरत होती है औरतो से दोस्ती करना।बस मे रोज नए नए मर्द मुझसे दोस्ती करते है,"सपना बोली,"मैं बस से उतरते ही भूल जाती हूँ।"
25----सजा
नया रेल मंडल बना था।व मण्डल परिचालन प्रबन्धक के पद पर युवा अधिकारी तपन की पोस्टिंग हुई थी।तपन बेहद सज्जन,रहमदिल,मिलनसार और सहयोगी प्रवर्ति का इंसान था।
पदभार ग्रहण करते ही साहब को बंगला मिल गया।बड़े से बंगले में सिर्फ तीन प्राणी साहब,मेम साहब और उनकी छोटी सी बेटी।साहब है तो नौकर भी चाहिए।साहब सरकारी है तो नौकर अपने पेसो से क्यो रखेंगे?साहब ने फोर्ट स्टेशन के स्टेशन प्रबंधक से कहा।स्टेशन प्रबंधक सिंह ने अपने यहां कार्यरत पॉइंटस मेन अवतार को साहिब के बंगले पर भेज दिया।
अवतार को स्टेशन पर ट्रेनों को झंडी दिखाने,ट्रेन से इंजन काटने लगाने,गार्ड ड्राइवर को मेमो देने व रेल परिचालन से सम्बंधित अन्य कार्य करने पड़ते थे।लेकिन साहब के बंगले पर झाड़ू, पोंछा करने,खाना बनाने और बाजार आदि कार्य करने पड़ते थे।ये सारे कार्य बेमन से करता था।
एक दिन मेम साहब ने नहाने के बाद अपने कपड़े छोड़ दिये और अवतार से बोली,"अवतार मेरे कपड़े धो देना।'
अवतार बेमन से ही सही सारे घरेलू कार्य कर देता था।लेकिन औरत के कपड़े धोना उसे गंवारा नही था।उसने कपड़े धोने से साफ मना कर दिया।मेम साहब ने इसे अपनी तौहीन समझा और इसकी शिकायत पति से कर दी।
साहिब चाहे जितने शरीफ,भले, रहमदिल इंसान थे।दसरथ भी ऐसे ही थे लेकिन केकयी के आगे उनकी कहां चली।
मेम साहब को खुश करने के लिए साहब ने अवतार का ट्रांसफर दूर दराज के रॉड साइड स्टेशन पर कर दिया।