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Collection of short poems

Collection of short poems:


तेरे नाम लिख दूं

लिखने को तो चांदनी रात लिख दूं,
श्याम प्रिये, तारों की बारात लिख दूं,
तु जो दामन थामे तो,
में राधा तेरी हर श्रृंगार तेरे नाम लिख दूं।।

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बदल जाते है सब...


बदल जाती है,
ये शाम ये शमा।

बदल जाती है,
हर एक ऋतु।

बदल जाती है,
इन्सान की किस्मत।

बदल जाता है,
पुराना साल।

बदल जाता है,
इन्सान का हाल।

बदल जाते है,
इन्सान के तौर तरीके।

बदल जाते है,
पुराने जज़्बात।

बदल जाते है,
हर एक ख़्वाब।

बदल जाते है,
तु और में भी।

नहीं बदलता तो बस इन्सान का स्वार्थ,
इन्सान कल भी स्वार्थी था, आज भी है और हमेंशा रहेगा।।

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बेमतलब ही तुमसे मुलाक़ात हो


हमारी मंज़िल और मकसद भले अलग हो,
पर किसी मुकाम पे बेमतलब ही तुमसे मुलाक़ात हो।
महादेव करे मेरी यह बात कभी सच हो,
उस दिन मुक्कमल मेरा हर एक ख़्वाब हो।।


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ढाई अक्षर का प्यार

ढाई पन्ने की ज़िन्दगी थी,
ढाई अक्षर का प्यार,
ढाई अक्षर के व्हेम के आगे,
हार गया ये संसार।


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रोकना था उसे...

जब जा रहा था वो,
तब उसे रोकना चाहती थी
अपने दिल की बात
बताना चाहती थी
कुछ तो लिखा था ऊपरवाले ने
हमारे इस भाग्य में
तब ही यूं हम मिले वो
बताना चाहती थी
रोम रोम में उसी का
नाम बसा है
वो बताना चाहती थी
यूं बार बार उसपे शक करना
छोटी छोटी बात पे
ताने मारना
कुछ और नहीं वो प्यार था
बस यही कहना था उसे
रोकना था उसे
कुछ पल बैठे तो
बातों में उलझाकर
घंटों तक बस देखना था उसे
पर जब वो जा रहा था
तब उसने एक भी बार पीछे मुड़कर नहीं देखा
रोकती कैसे उसे
जिसको रुकना ही न था
बहुत कुछ था जो अभी
उसे कहना बाकी था
पर वो गया और सब ख़त्म हो गया।

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करने सब कुछ अपना न्योछावर

पुख़्ता यक़ीन रखती हूं खुद पर,
तब ही करती हूं हर काम समयसर।

अपने शहर की हूं में दिवाकर,
पर हूं शून्य जब सामने हो हमसफ़र।

हर दम रहती हूं मयस्सर,
करने सब कुछ अपना न्योछावर।

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मेरे सभी प्रेमियों का शुक्रिया


मेरे सभी प्रेमियों का शुक्रिया
जिसने कभी मुझे प्रेम किया था
खास तौर पर वह
पहले वाला
जिसे दिक्कत थी मेरे
शक करने वाले स्वभाव से
ज्यादा पूछने वाले सवाल से
हर वक्त होने वाली उसकी चिंता से
बात बात में छुपी फ़िक्र से
मेंने धीरे धीरे ख़ुद को बदल दिया
उसके सांचे में ढलने को
सब कुछ पुराना छोड़ दिया
यहां तक कि स्वभाव भी अपना
बदल दिया पर अफसोस
सही वक्त पर ना बदल पाई
जब वो चाहता था
दूसरे वाले
को दिक्कत थी
मेरे बेफिक्रेपन से
कहती बाकी प्रेमिकाएं
बहुत फ़िक्र करती है
अपने प्रेमी का ख़्याल रखती है
पर तुम अल्हड़ हो
अब में संकट में थी
ख़ैर फ़िर से बात बात पे चिंता करना
फ़िक्र करना शुरू कर दिया
पता नहीं फ़िर भी उसे कुछ जमा नहीं
छोड़ गया वो भी पहले वाले कि तरह
तीसरे वाले
को नहीं पसंद था मेरा ज्यादा बोलना
हालचाल या कोई सवाल पूछना
यहां तक कि उठना बेठना
खाना पीना सोना कुछ भी
वो तंग हो गया मुझसे
चला गया जब मन भर गया
चोथे वाले
को नहीं पसंद आया मेरा कम बोलना
ज्यादा बातें न करना
चुपचाप रहना
मेरा रंग यहां तक मेरा आकर
नहीं पसंद आया उसे
उसे नहीं पसंद था मेरा
कभी कभी ही उसका हाल पूछना
अब तंग हो गई में
इन सब के बीच अपना वजूद खोता देख
दंग रह गई में
सब छोड़ दिया मैंने
अब एक नौकरी मिल गई मुझे
पर अब किसीको प्रेम नहीं करती
डर लगता है कहीं किसी प्रेमी
को मेरी नौकरी पसंद ना आई तो?


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आख़िर आज मिल ही आई उसे


आख़िर आज मिल ही आई उसे
रोज़ सपनों में आ कर
परेशान कर रखा था
नाक में दम कर रखा था उसने
पता नहीं क्यूं यूं बार बार
सपने में आता था वो
वहीं अपना ब्लेक शर्ट ब्लू डेनिम
बहुत चंट है वो
जानता है मुझे बहुत पसंद है
उसका ब्लेक शर्ट पहनना
लुभाना तो कोई उससे सीखे
जब सामने था वो
तो पलके उठ ही नहीं रही थी
बहुत सवाल करने थे उससे
क्यूं यूं बार बार सपने में आता है
दिल जलाता है
आख़िर है कोन वो मेरा
क्यूं पराया वो इंसान
अपना बन दिल लुभाता है
क्यूं उसे बार बार
गले लगाने को जी चाहता है
अब और इंतज़ार नहीं करना
पलकें उठाई मेंने करने उससे
ढैर सारे सवाल
हो गया फ़िर से वही बवाल
एक और सपना उसका
वाकेही था बड़ा बेमिसाल
रब ही जाने कब मुकम्मल
होगी चाह मिलने कि उससे
पर जब तक नहीं मिलता वो
तब तक रहेगा मुसलसल
उसका ही ख़्याल

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औकात से ज्यादा प्यार...

नफ़रत के ही काबिल थी उसकी आख़िर
औकात से ज्यादा प्यार जो किया था

उसे दिक्कत थी मेरे उससे प्यार करने पे
मुझे शिकायत थी उसके मुझे प्यार न करने पे

जिस्म मेरा उसे बार बार लुभाता था
चेहरा उसका बार बार मुझे तड़पाता था

गुस्सा करता था वो मेरे किसी भी सवाल पूछने पर
नाराज़ होती थी में उसके जवाब ना देने पर

काश जानती अपना भाग तो ना
करती उससे यूं चाह जो छोड़ गया था मुझे बीच राह।।

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ऑनलाइन से ऑफलाइन

मुझे देख जब वो ऑनलाइन से ऑफलाइन हो जाता है,
तब ये दिल का कमरा अंधेरे से भर जाता है।

मिलों की दूरी है हमारे दरमिया यही बात हर पल सताती है,
पर उससे इस बात से कोई मतलब नहीं है।

जब वो रूठता है तो उसकी खिदमत में हर बार सिर झुकाया है,
पर मेरे रूठने पर उसने एक बार भी मुझे नहीं मनाया है।

जानती हूं वो मेरा है ही नहीं पर ये दिल बार बार उस ही पे आया है,
पर उसने मेरी मोहब्बत का हर वक्त मज़ाक ही बनाया है।

क्या नाम दूं इस निस्वार्थ निशब्द और अनकहे अनदेखे एहसास का,
जिसे देखा तक नहीं उसीको हर घड़ी हर पल पागलों की तरह चाहा है।

जब जब कोई प्यारा लम्हा सामने आया है,
तब सिर्फ़ उसीका ख़्याल आया है।

*

इस टेक्नोलॉजी के ज़माने में रिश्ते भी ऑफलाइन हो गए है,
ना किसी के लिए भाव ना ही कोई हमदर्दी बचा है तो बस कपट।।

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किस काम का?

लोगों के लिए चलता लोकतंत्र है
पर जब लोग ही नहीं तो
लोकतंत्र भला किस काम का?

तरक्की तो सबके लिए होती है
पर जब कहीं दो वक़्त चूल्हा न जले तो
वो तरक्की भला किस काम की?

रोजी-रोटी के लिए ही तो सारे व्यापार उद्योग है
पर जब रोजी-रोटी ही छीन जाए तो
वो व्यापार उद्योग भला किस काम के?

सरकार का काम देश चलाना है
पर जब हर जगह सब जल रहा है तो
वो सरकार भला किस काम की?

किसानों के लिए ही तो बना कृषि कानून
पर जब उन्हें मंजूर ही नहीं तो
वो कानून भला किस काम का?

किसान सर्वोपरि है यह हमारी सोच है,
पेट भरता है हमारा, पर भूखा सोता है वो बिचारा
तो ऐसी सोच भला किस काम की?


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समय बन गुुुजर गई...

अभी ज्यादा दूर नहीं गई,
चाहो तो रोक लो शायद रुक जाऊंगी,
गर समय बन गुज़र गई,
फ़िर गुज़र जाओगे तो भी नहीं आऊंगी।

कैद करलो अपने दिल में,
सब भूलके शायद तुम्हारी हो जाऊंगी,
गर रिहा हो गई तो,
पंछी बन खूले आसमान में खो जाऊंगी।

समेट लो अपने हाथों की लकीरों में,
शायद जिंदगीभर की साथी बन जाऊंगी,
गर फिसल गई रेत की तरह तो,
कण कण में बिखर जाऊंगी।

भर लो अपने आगोश में,
फ़िर कभी तुमसे जुदा न हो पाऊंगी,
गर धोखा दिया तो पानी की तरह,
बूंद बूंद में बिखर जाऊंगी।।

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तो कहना..

बीच डगर छोड़ने वाले तो बहुत मिलेंगे,
कोई आख़री मुकाम तय कर जाए तो कहना,

बददुआ सब देते है,
कोई दुआ दे जाए तो कहना,

नफ़रत तो फितरत में है लोगों कि,
कोई सच्चा प्यार निभा जाए तो कहना,

खेल सब खेलते है,
गर कोई ईमानदारी से रिश्ता निभा जाए तो कहना,

प्यार कि लीला सब करते है,
कोई जिंदगीभर तुम्हारे नाम कर जाए तो कहना,

बेईमान, मतलबी लोगों को संसार है,
कोई सच्चा दिलवाला मिल जाए तो जरूर कहना।।



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