कहानी --- माँ ✍🏻
•••••••••••••••••••
आज नैना की शादी पर उसकी एक नहीं दो-दो माँ उसका कन्यादान कर रही थी और उसे आशीर्वाद दे रही थी ।तबादले के बाद जब हम इस बड़े से शहर में आए तब पलक से मेरी शादी को दो ही साल हुए थे ।अगर कामना न होती तो पलक के लिए इस शहर में रहना बहुत मुश्किल हो जाता ।मैं तो ज्यादातर अपने काम में व्यस्त रहता था, ऐसे में पलक को इतना समय नहीं दे पाता था ।वह सबके साथ घुलमिल कर रहने वाली लड़की थी लेकिन इस बड़े शहर में सब अजनबी और एक-दूसरे से फ़ासला रखकर जीने वाले लोग ।फिर पलक ने आस-पड़ोस के घर में काम करने वाली कामना को अपने यहाँ घर का काम करने के लिए रख लिया ।
कामना सभी काम सलीके से करती थी,उसे किसी काम के लिए टोकने की जरुरत ही नहीं पड़ती थी ।धीरे-धीरे पलक और कामना दो सहेलियों की तरह घुलमिल गई ।काम खत्म करने के बाद चाय की चुस्कियां लेते हुए गप्पे मारना उनका रोज का काम था ।मेरी पलक थी ही ऐसी कि कभी ऊँच-नीच, अमीर-गरीब का भेद मानती ही नहीं थी ।
जैसे-जैसे उसे कामना के जीवन के विषय में मालूम हुआ उसका उससे अत्यधिक जुड़ाव होता चला गया ।कामना की शादी कम उम्र में ही हो गई थी,इस वजह से वह पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाई और शादी के बाद उसकी ज़िन्दगी नरक समान हो गई ।उसे बाद में पता चला कि उसका पति कुछ काम नहीं करता और नशे का आदी है सो अलग ।धीरे-धीरे तंगहाली से परेशान होकर कामना ने घरों में काम करना शुरु कर दिया ।कुछ समय बाद उसके एक प्यारी सी बेटी नैना हुई लेकिन उसके पति के बर्ताव में कोई बदलाव नहीं आया ।वह कामना की मेहनत की कमाई भी छीनकर नशे में उड़ा देता था और हद तो तब हो गई जब एक दिन उसने कुछ रुपयों के लिए दो साल की नैना को ही किसी को देने के लिए सौदा कर लिया ।सच नशे में इंसान कितना अंधा और लालची हो जाता है,यह उसका एक कटु उदाहरण था ।
कामना ने जब अपने पति को ऐसा करने से रोका तो वह हाथापाई पर उतारु हो गया ।कामना अभी तक उसकी सभी ज्यादतियाँ बर्दाश्त करती आई थी लेकिन अपनी बेटी का सौदा होते नहीं देख सकती थी ,बस इसी हाथापाई में कामना के हाथों उसके पति का खून हो गया ।कामना के एक धक्के से उसका सिर दीवार से ऐसा टकराया की वह फिर होश में न आया ।
पलक को जैसे ही इस घटना का पता चला वह कामना के घर पहुँची जहाँ पहले से ही पुलीस मौजूद थी ।जाते-जाते कामना नैना को पलक को सौप गई ।कामना को खून के इल्ज़ाम में चौदह साल की सजा सुना दी गई ।नैना कुछ वक्त हमारे पास रही ।मैने पलक से कहा कि हम इसे किसी अनाथाल्य में छोड़ देते है लेकिन उसका ममतामयी मन कुछ दिनों में ही उससे इतना लगाव कर बैठा था कि यह सुनकर ही वह रो पड़ी ।वह चाहती थी नैना को वह हमेशा के लिए अपने पास रख ले लेकिन वह ऐसा मेरी खुशी से करना चाहती थी क्योंकि वह जानती थी मुझे भी एक पिता की भूमिका निभानी होगी ।मैंने उससे कहा कि कल जब हमारा खुद का बच्चा इस दुनिया में आ जाएगा तब क्या वह नैना के साथ न्याय कर पाएगी ।
मेरे इस सवाल के जवाब में उसने सजल मन से कहा कि --"मुझसे यह सवाल क्यों ? क्या इसलिए कि मैंने नैना को जन्म नहीं दिया लेकिन वह भी माँ ही होती हैं जो बेटे के मोह में बेटियों को या तो जन्म से पहले ही मार देती है या होने के बाद उसे किसी झाड़ी या कूड़ेदान में फैंक देती है और इस काम और मानसिकता के बाद भी वह माँ ही कहलाती हैं, क्यों ? क्योंकि वह जन्म देने वाली होती है ।क्या किसी शिशु को जन्म देकर ही माँ की भावना आती है ,तो ऐसा करने वालियों की भावना कहा चली जाती है उस वक्त ?
उसके इस सवाल पर मैं निशब्द था और फिर मैंने ख़ुशी-ख़ुशी नैना को अपने पास रखने की अनुमति दे दी ।बाद में हमे एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन पलक का नैना के प्रति निश्छल स्नेह वैसा ही रहा ।
फिर एक वक्त ऐसा आया जब कामना की रिहाई हो गई और वह हमारे घर आई ।पलक इस अनजाने डर से मन ही मन डर रही थी कि कहीं कामना नैना को उससे दूर न कर दे ,वह उसे अपने साथ न ले जाए लेकिन कामना ने ऐसा कुछ नहीं किया ।वह तो अपनी बेटी को इतने ख़ुशहाल परिवार में पलते-बढ़ते देखकर ही गदगद थी ।वह हमेशा के लिए उन सबके बीच से चले जाना चाहती थी लेकिन पलक ने उस वक्त भी एक माँ का दिल देखते हुए कामना को जबरदस्ती अपने साथ रहने को मना ही लिया और आज दोनों हँसी-ख़ुशी नैना का कन्यादान कर रही थी ।
पुष्प सैनी 'पुष्प'