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मेरी गर्लफ्रैंड - 7

नौकरी का तीसवाँ दिन यानी कि सैलरी, मिलने का दिन, मैं बड़ा खुश था उस दिन, कि आज मुझे अपनी ज़िंदगी की पहली सैलरी मिलेगी और मैंने सोच रखा था सैलरी से मैं, पहला काम अंतिम के लिए उपहार खरीदूँगा। इसलिए, मैं बातों-बातों में उस दिन उससे पूछना चाह रहा था कि उसे क्या पसंद हैं या फिर उसे क्या चाहिए जो उसे खुशी दे सकें। पर वो थी कि उस दिन किसी भी बात का जवाब नहीं दे रही थी। जब मैं उसकी इस चीज़ से परेशान हो गया, तो उससे जानबूझकर बोला, “क्या हुआ? क्यों परेशान हो? पति के कच्छे में चिंगारी देख ली क्या”

इस बात को सुनकर पहले तो उसने मेरी तरफ देखा फिर खीसें निपोरकर बोली, “तुझे बड़ी चिंता हैं। पति के कच्छे की चिंगारी की”

मैंने कहा, “बिल्कुल, आखिर उसके कच्छे की चिंगारी से पहली झुलसने वाली इंसान तुम ही होओगी और मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तो ज़ाहिर सी बात हैं। मुझे चिंता नहीं होगी तो किसे होगी”

उसने मोबाइल को चार्जर में लगाते हुए कहा, “तू चिंता मत कर, मैं उसकी चिंगारी से भी झुलस कर आज़ाद ही रहूंगी, वो मुझे खुद के पास कभी कैद नहीं कर पाएगा। और वो क्या मुझे कोई भी कैद नहीं कर पाएगा।“

उसकी इस बात ने मेरे अंदर के पुरुष को जगा दिया था। और मैंने फिर उससे वूडली एलन की एक लाइन कहीं थी।, “बिना प्यार के सेक्स एक व्यर्थ अनुभव हैं। लेकिन जैसे-जैसे ये व्यर्थ अनुभव लेने लगता हैं। ये अर्थ का रूप धारण कर लेता हैं। यानी कि, तुम्हें अपने पति से आज प्यार नहीं हैं। इसलिए सब व्यर्थ लग रहा हैं। दो-चार महीने साथ रहने पर अगर प्यार हो गया तो ये व्यर्थ जो हैं। ऐसा अर्थ लेगा कि इसके बिना फिर जीवन निरर्थक लगेगा।“

उसने कहा, "मेरा अर्थ मेरे सामने बैठा हैं। फिर मुझे किसी व्यर्थ को अर्थ देने की क्या जरूरत हैं।"

अंतिम की बात पर मैं कुछ कहता, की अचानक राजन ने मुझे बुलाने के लिए आवाज़ लगा दी और जब मैं उसके पास पहुँचा। तो एक आदेश मिला की नीरज के साथ चाँदनी चौक जाना पड़ेगा।

राजन के इस आदेश पर पहले मन किया। चिल्ला कर मना कर दूँ। कि नहीं जाना हैं। मुझे, और क्यों शाले तू बार-बार मेरे और अंतिम के बीच में आ जाता हैं। पर नहीं कर सकता था आखिर जो चीज़ आज मुझे ख़ुशी दे रही थी कि सैलरी मिलेगी। उसे तो राजन ही मुझे देता। इसलिए, मजबूरन मुझे नीरज के साथ जाना पड़ा था। जब मैं, बैग,गोल्ड, और बाइक की चाभी लेकर दुकान से बाहर निकला। तो अंतिम ने पीछे से आवाज़ लगाकर उस दिन मुझे कहा था। कि कोशिश करना पाँच बजे से पहले आने की तेरे लिए एक सरप्राइज हैं।



मैट्रो में अंतिम के मिलने वाला दिन


वो फ्रांस की कहावत हैं। ना, चीज़े जितनी बदलती हैं। उतनी पहले जैसी हो जाती हैं। उस दिन मेट्रो में जब वो मिली तो मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ। मैं अंतिम से प्यार करना कभी छोड़ ही नहीं पाया था। उस दिन उसने मुझे शाम को बुलाया था। और मैं दो बजे से वहाँ जाकर बैठ गया था।

कितना अजीब लगता हैं। ना, कोई लड़की जिससे हम प्यार करते हैं। वो हमसे बड़े प्यार से कहे कि लोट आना तुम्हारे लिए सरप्राइज हैं। और तुम लोट ना पाओ, वो सरप्राइज अधूरा रह जाए। और एक वक्त के बाद लौटकर ना जा पाना ओर अधूरा सरप्राइज सब कुछ तुम्हारे ज़हन से धुँधला हो जाए। लेकिन अचानक वो आकर जिससे हमने लोट आने का वादा किया था। वो हमसे ना लोट आने की वजह पूछे कितना डरावना सा हैं। ये, सच में

अंतिम ने मुझसे आखिरी शब्द पाँच बजे तक लोट आने के को कहे थे। मैं पाँच बजे तक नहीं लोट पाया था। और ना ही उसने मेरा पाँच बजे के बाद तक इंतज़ार किया था। पर उस दिन अचानक वो मुझे क्यों मिली, क्या ये कोई इत्तिफ़ाक़ था। या उसने मुझे ढूंढा था। मेरे ना लोट आने की वजह जानने के लिए।

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