मेरी गर्लफ्रैंड - 4 Jitin Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मेरी गर्लफ्रैंड - 4

चैप्टर - 4


नौकरी का नौवाँ दिन


इस परेशान करने वाली बातचीत के अगले दिन, मैं अपने तय समय(दुकान खुलने से आधा घण्टा पहले) से दो घण्टे पहले ही वहाँ पहुँच गया था। उसके आँसुओं का कारण पूछने के लिए, लेकिन उस दिन वो साढ़े ग्यारह बजे आयी, मेरे पास नाराज़ होने की मेरे लिए वाजिब वजह थी लेकिन ऐसा करना, उस पर कोई असर नहीं डालता शायद, इसलिए मैंने उसके आने के आधा घण्टा बाद अपने गुस्से को एक तरफ रखते हुए उससे कहा था कि, “तुम्हारी ज़िन्दगी में, सब कुछ सही तो चल रहा हैं। समय पर पढ़ाई, वक़्त पर शादी; हालांकि थोड़ी बहुत परेशानी थी। पर वो तो अब गुज़रे भूतकाल की कहानी हो गई हैं। तो फिर तुम कल क्यों रो रही थी।“

पहले तो वो कैलक्यूलेटर में फ़ायरशीट (टेस्टिंग गोल्ड के वेट को भरने का एक दस्तावेज) पर लिखें अंको की गुणा भाग करती रही, लेकिन जैसे ही कैलक्यूलेटर की स्क्रीन पर 163.841 आया वो बोली, “कुछ बातें ऐसी होती हैं। जो समझाई नहीं जा सकती।“

उसके इस जवाब के बदले मैंने कहा था।, “होती होंगी ऐसी बातें, पर अगर वो तुमसे जुड़ी हैं। तो मुझे लगता हैं। मैं उन्हें समझ सकता हूँ।“

वो थोड़ी देर चुप रही। और फिर बोली, “चाहती तो मैं भी हूँ। तुझसे सब कुछ कहना। पर कैसे कहूँ। समझ नहीं आता।“

उसके इस जवाब से लगा था। अगर थोड़ी और मेहनत हो जाए पूछने में, तो शायद ये मुझे बता दे। इसलिए मैंने एक बार फिर पूछने की कोशिश करते हुए उससे कहा, “आखिर, मैंने ग्रेजुएशन के तौर पर B.sc की हैं।, हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड, टॉलीवुड तक की मैं फ़िल्म देखता हूँ। और वक़्त निकालकर, मैं उपन्यास, नाटक, कहानियाँ जाने क्या-क्या पड़ता हूँ। और तुमने देखा भी हैं। मैं इन किताबों के कोट किस तरह बोलता हूँ। और सामाजिक जानकारी के तौर पर मैंने सत्यमेव जयते के तीनों सीजन देखे हैं।“

--बस-बस समझ गयी। तू कितना समझदार लड़का हैं। पर कैसे बताऊँ तुझे………..shhhhh…इसे ऐसे समझले मेरा जो पति हैं। वो सामाजिक रूप से पति हैं। शारीरिक रूप से नहीं”

--मतलब LGBT समुदाय का हैं।“

--पागल हैं। क्या, इस समुदाय का होता तो मुझसे शादी क्यों करता”

--अरे, तो फिर परेशानी क्या हैं। बताती क्यों, नहीं हो ढंग से, जब यहाँ तक हम पहुँच ही गए हैं। तो थोड़ा और आगे बढ़लो”

--देख, गौर से सुनना एक ही बार बताऊँगी। मेरे पति का ये कहना हैं। कि ऐसा उसके साथ एक्सीडेंट के कारण हुआ हैं। और वो दवाई खा रहा हैं। इस चीज़ की, इसलिए जल्दी ही ठीक हो जाएगा, लेकिन सवाल उसके ठीक होने या ना होने का नहीं हैं। सवाल ये हैं। कि मुझे क्या चाहिए, मैं उसके साथ रहना ही नहीं चाहती, वो ठीक हो चाहे नो हो; अब तू कहेगा कि तलाक ले लो, जब ये बात हैं। तो, क्योंकि जब एक वैवाहिक रिश्ते में कोई एक साथी यौनिक शारीरिक अक्षमता का शिकार हो तो कोट भी जल्दी ही तलाक की अर्जी पर फैसला दे देता हैं। तो तुझे इस बारे में जानकारी दे दूं। समाज में एक परिवार नामक व्यवस्था भी होती हैं।, उसके बारे में भी सोचना पड़ता हैं।“

उसकी ये बातें सुनकर मैं थोड़ा कंफ्यूज होकर उससे बोला, “पति नौकरी वगैराह तो करता हैं। या वो भी नहीं”

--नौकरी अच्छी खासी करता हैं। एसएससी सीजीएल का एग्जाम क्वालिफाइड हैं। और फिलहाल वित्त मंत्रालय में कोऑर्डिनेट सचिव हैं।

--साफ तौर पर कहना कि एग्जाम क्वालिफाइड हैं। विस्मय की स्थिति पैदा करता हैं। मुझे नौकरी के पीछे कुछ और राज लगता हैं।“

--क्या कहा, मैं समझी नहीं”

--इसमें समझने वाली कौन सी बात हैं। अगर एक लड़के के कच्छे में उभार नहीं हैं। तो उसका पुरा ध्यान इस बात पर ही होगा कि उभार कैसे पैदा किया जाए। इसलिए, पढ़ाई में मन लगेगा इस बात का सवाल ही नहीं उठता। तो उसकी नौकरी मुझे कोई बेमानी सा काम लगता हैं।

--अगर ये जोक था। तो मुझे खुशी हैं। कि कल मैं रोई, और मैंने तुझे खुद को हंसाने के लिए जोक सुनाने के लिए नहीं कहा”

उसके इतना कहते ही वक़्त ने घड़ी की सुइयों को आदेश दिया। जिस वजह से घड़ी ने अपनी सुइयों को एक बार फिर चार बजने की स्थिति में ला दिया था। और मुझे एक बात फिर बात अधूरी छोड़नी पड़ी थी।


अब आने वाले तीन दिन तक मैंने उससे इस मुद्दे पर कोई बात नहीं की, मैं उसे किसी भी तरह से परेशान नहीं करना चाहता था। आखिर, प्यार की शर्तों का पालन तो करना ही पड़ता हैं। लेकिन मेरे मन में बहुत सारे संदेह पैदा हो रहे थे। जिस वजह से मैं परेशान हो रहा था। लेकिन तेरहवें दिन उसने फिर एक बार खुद ही, इस मुद्दे पर बात करनी शुरू की, “उस दिन मैं इसलिए रो रही थी। कि पति का फ़ोन आया था। कि मैं अब ठीक हो गया हूँ। इसलिए तुम अपने मायके से यहाँ आकर रहने लग सकती हो और अब हम अपने रिश्ते को भी आगे बढ़ा सकते हैं।“

मैंने बड़े अचम्भित स्वर में पूछा, “तुम अपने ससुराल में नहीं रहती।“

उसने बड़े शान्त स्वर में कहा, “नहीं”

उसके इस जवाब से मुझे लगा, लगता हैं।, इसका बात करने से फिर मन हटने वाला हैं। इसलिए, मैंने वो सवाल पूछा जो पिछले चार दिन से मेरे दिमाग में था।, “तुम्हारे लिए सेक्स इतना जरूरी हैं। कि अगर वो ठीक नहीं हैं। तो तुम उसकी फ़ोन पर भी आवाज़ नहीं सुन सकती।“

बात करते वक़्त वो जो जॉब कार्ड(गोल्ड के सैंपल की प्यूरिटी भरने वाला एक दस्तावेज)भर रही थी। उसमें मेरे सवाल पूछने पर अचानक गलती हो गई। जिसका गुस्सा मुझ पर निकलती हुई। सामान्य से थोड़ी ऊँची आवाज़ में वो बोली, “बात सेक्स की नहीं हैं। बात हैं। धोखा देने की, तू खुद सोच इस बात को, अभिनव(पति) जन्म से ऐसा हैं। या एक्सीडेंट से हुआ हैं। क्या उसके परिवार को शादी करनी चाहिए थी। अगर उसकी ऐसी स्थिति एक्सीडेंट से हुई हैं। तो ठीक होने का इंतज़ार कर लेते उसका और अगर जन्मजात ऐसा हैं। तो कुँवारा रखते, क्योंकि इस दुनिया में शादी का मतलब सेक्स ही हैं।“

मैंने फिर एक बार लड़के होने के नाते अभिनव की इज़्ज़त बचने की कोशिश करते हुए कहा, “पर, क्या पता, उसने कभी बताया ही ना हो अपने घर में, इस बारे में”

उसने पहले से भी ज्यादा गुस्से से भरे स्वर में कहा, “बेवकूफ मत बन ज्यादा, अगर वो जन्मजात हैं। तो पालने में पता लग गया होगा। और एक्सीडेंट से हुआ हैं। तो इतनी मेडिसिन खाता हैं। दिखाई नहीं देती उसके परिवार को, अरे कभी तो पूछा होगा। क्यों इतनी दवाइयाँ खाता हैं। बेटा, कुछ परेशानी वगैरह हैं। क्या तुझे, लेकिन जाहिर सी बात हैं। उसके परिवार ने धोखे से मुझसे उसकी शादी कर दी कि कहाँ जाएगा बेचारा, जवानी में देह का सुख भले ना मिले, बुढ़ापे में रोटी तो मिल जाएगी। उसके परिवार को कोई परवाह नहीं इस बात की; कि लड़की भी कुछ चाहती हैं। और उन्हें क्या कहूँ। गुस्सा तो मुझे अपने परिवार पर आता हैं। जिसने अपने स्वार्थ के लिए मुझे एक नपुंसक से ब्याह दिया।..रुककर एक लंबी साँस लेकर बोलते हुए..,तुझे एक बात बताऊँ। इस वक़्त मेरी उम्र तीस साल हैं। और करीब-करीब पिछले सोलह साल से, मैं घर खर्च चला रही हूँ। कभी टयूशन पढ़ा कर, कभी जॉब करके, कभी अपनी स्कॉलरशिप से, लेकिन मेरे परिवार के लिए मैं एक बोझ थी। उन पर, जिसे उन्होंने उतारने में ज़रा भी देरी नहीं की”

--उसकी मन में दबी टीस को देखकर, मैंने उससे कहा था। कि ठीक हैं। दुःखी मत होओ ज्यादा, अब से हम कोई ऐसी बात नहीं करेंगे जो तुम्हे पसंद ना हो, हम दोनों केवल अपने सपनों के बारे में बात करेंगे कि हम कैसी ज़िन्दगी चाहते हैं। ना कि कैसी हमने जी हैं।