राखी Priya Maurya द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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राखी

उसको आज मैने फिर देखा बाजार में हर साल रक्षाबंधन पर वो दुकान से मिठाईया और राखी ले जाता था। उसकी कोई बहन भी नही थी फिर भी वो किसके लिये ले जाता था पता नहीं। मै उसे पांच सालो से देख रहा था ऐसा करते हुये। आज जब वह बाजार में मिला तो मै उसके पास गया और बातों ही बातों मे पुछ ही लिया -" क्यो बे रितिक कहा जाता है हर साल राखी लेकर।"
उसने हसते हुये बोला-" अपनी बहन के पास।"
मैने बोला-" हें तेरी कहाँ से बहन पैदा हो गयी ।"
उसने बोला -" है एक प्यारी सी बहन मिलेगा तू भी।"
मैने भी सोचा-" क्या बन्दा है खूद की बहन से मिलवा रहा है ।"
फिर भी मै चल पड़ा देखने।
मैने उससे रास्ते में पुछा-" वैसे तू क्यू खरीदता है राखी तेरी बहन क्यू नही लेने आती है राखी।"
उसने बोला -" वो चल नही सकती।"
मैने भी सोचा शायद विकलांग होगी शायद इसलिए मैने भी उसे नही देखा।
मैने फिर पुछा मजाक मे ही पुछा -" वैसे तू बाँधता है राखी की वो बाधती हैं ।"
मैने देखा उसकी आँखो में नमी तैर गयी फिर इसके आगे कुछ ना बोल सका। मै उसके पीछे चलता रहा।
मैने लगभग कुछ मिनट बाद फिर पुछा -" वैसे तेरी बहन का नाम क्या है।"
"फरीदा खान" -उसने उत्तर दिया।
मै सुन कर स्तब्ध रह गया। मैने बोला -"तेरी बहन मुस्लिम है और तू हिंदु कैसे तेरी खूद की बहन तो नही लगती।"
रितिक-" भाई बहन का रिश्ता अमुल्य होता है उसको धर्म की तराजू में तौल भाई। और खून का रिश्ता नही है तो क्या हुआ दिल का रिश्ता तो है कुछ रिश्ते खून से नही रूह से बनते हैं।" इसके आगे मै कुछ न बोल सका। मै उसके साथ चल रहा था और देखा वो अपने घर के बिल्कुल उल्टी दिशा मे सुनसान रास्तों पर चले जा रहा था। मैने पुछा-" वो तेरी बहन यहा रहती है क्या।"
उसने बोला-" किस्मत ने मजबूर किया है बस यहाँ रहने को।"
मैने बोला-" उसे फिर तू यहा क्यू रहने देता है जब इतना प्यार करता है तो।"
रितिक-" मै चाह कर भी नही ला सकता उसे।"
धीरे धीरे हम उसकी बहन के घर पहुचे और वो अंदर गया और मै भी उसके पीछे। मै तो देखकर पूरा अवाक् रह गया । वो एक कब्रिस्तान के अंदर आया और एक समाधि के पास जाकर उसके अगल बगल के घास साफ की फिर उसके ऊपर ठीक उसी प्रकार से पूजा करते हुये राखी रख दिया और कुछ मिठाईया भी रख दी।
यह देख मै समझ न सका की यह कैसा प्रेम है भाई बहन का मुझे नही पता की वो कब उसकी बहन बनी कैसे वो दोनो मिले बस उनका अटूट प्रेम देख हृदय भर आया और अश्रु जल की धारा आँखो से बहने लगी और हृदय में एक ही पंक्तिया गुजने लगीं----

एक धागे ने जन्मो का रिश्ता है जोड़ डाला
न दे उनको तू धर्म और कौम का हवाला
यह रक्षाबंधन ना होता तो देख ही नही पाता
इस भाई बहन के अटूट प्यार का अफसाना।

------ प्रिया मौर्या