प्लेटफॉर्म नम्बर 1 Priya Maurya द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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प्लेटफॉर्म नम्बर 1

टैक्सी रुकते ही मै रेलवे स्टेशन के अंदर प्लेटफॉर्म नम्बर 1 पर मै आ पहुची। मै अकेले ही वाराणसी से कानपुर के लिये सफर करने वाली थी । प्लेटफॉर्म पर एक सीट पर अपना समान रखते हुये मै वही बगल मे जा बैठी। अचानक ही मेरा ध्यान एक छोटे से लड़के पर गया जो पुराने कपड़े पहने हुये था उसके कपड़े कही कही से फटे हुये थे तो कही बेतरतीब ढंग से सीले थे। मैले कपडो मे उसका चेहरा चमक रहा था। उसकी उम्र कुच 7-8 साल मालुम हो रही थी। मैने देखा वो बड़े ध्यान से एक जोड़े को देख रहा था। मुझे लगा यह क्या देख रहा है फिर मैने ध्यान दिया वो उनके हाथ मे पराठे को देख रहा था जो की वो बड़े चाव से बात करते हुये खा रहे थे। मुझे उसे ऐसे देख कर ही दया आ रही थी मैने सोचा इसको कुछ खाने को दे देती हुं। तभी अचानक ही उस जोड़े ने अपना हाथ धुला और कुछ बचे हुये जुठे पराठे जमीन पर फेक दिया। जैसे ही पराठे जमीन पर गिरे। वो छोटा लड़का एक ओर से दौड़ कर झपटा और दुसरी ओर से कुछ कुत्ते जो की रेलवे ट्रैक पर थे। संजोग से पराठे लड़के के हाथ आ गये और वो उसे ऐसे खाने लगा जैसे कितने दिनो से भूखा हो। यह देख कर ही मेरी रूह काप गयी। आज आजादी के कितने साल बाद भी यह देश गरीबी भुखमरी के साथ साथ न जाने कितनी कुरीतियो का भी गुलाम है। मैने उसे अपने पास इशारे से बुलाया। मेरा इशारा पाते ही वो मेरी ओर चल आया। मैने उससे पुछा -" तुमने ऐसे को पराठे लिये तुम उनसे माँग भी सकते थे।" उसने कुछ जवाब नही दिया बल्कि इशारे मे कुछ बताने लगा। अब मुझे समझ आया शायद यह बोल नही सकता। उसके इशारे से जितना समझ मे आया उससे लगा की शायद वह कहना चाह रहा है की सभी हमे भगा देते है। मुझे उसके लिये बहुत बुरा लगा। मैने फिर उससे पुछा-" तुम्हारे मम्मी पापा कहाँ हैं। " इतना सुनते ही उसके आँखो में आंशु आ गये जैसे माँ बाप की याद आ रही हो। इसके आगे मैने कुछ नही बोला और कुछ सोच पैसे निकल कर देने के लिये जेब टटोलने लगी। फिर मेरे दिमाग में कुछ कौधा और मैने उसे पैसे न देकर अपने बैग से निकाल खाने का ढेर सारा सामान दे दिया। उसके चेहरे पर अलग ही खुशी झलक रही थी। तभी अचानक से कुछ लड़के आये जो उससे उम्र मे कुछ बड़े थे लगभग 12 -13 साल के। उसे घसीटते हुये ले जाने लगे उनमे से एक बोल रहा था -" तू हमारे इलाके मे क्यू आया तुझको तो प्लेटफॉर्म नम्बर 3 पर रहना था ना रूक अभी काका से बोलता हुं।" मुझे कुछ समझ नही आया की वो क्या बोल रहे है और न ही मै उन्हे रोक पायी। कुछ समय बाद तक हमारी ट्रेन नही आई तभी घोषणा हुई की शायद पिछ्ले स्टेशन पर कुछ दुर्घटना हो गयी है इसलिये ट्रेन 30 मिनट लेट है। मैने सोचा थोड़ा चक्कर ही लगा आऊं इतने देर। मै उठी और ऐसे ही पीठ पर अपना बैग लिये घुमने लगी स्टेशन पर। अचानक से मेरी नजर कुछ दूर कोने मे एक बच्चो के समूह पर गयी। वो वैसे ही बच्चे लग रहे थे जैसे बच्चे से मेरी अभी मुलाकात हुई थी। मै उधर बढ गयी। मैने वहाँ जाकर देखा तो उस छोटे बच्चे को एक बूढ़ा आदमी बहुत ही तीखी नजरो से घूरे जा रहा था। वही कुछ बच्चे उसकी शिकायत उससे कर रहे थे। तो मुझे समझ आया की यह काका है जिसके बारे मे वो बच्चे जिक्र कर रहे थे। मै वही खड़ी उन्हे देख रही थी। तभी उस आदमी ने एक जोर का झन्नाटेदार थप्पड़ उसको दे मारा । और गुस्से मे बोल पड़ा-" तेरी जुबान काटी थी तब भी तुझे समझ नही आया। यहा आया वो सब ठीक था लेकिन यह क्या तूने उस लड़की से खाने का सामान लिया तुझको पैसे लेने को बोला गया है ऐसे तो तुम सब मेरा धन्धा ही डुबो दोगे। तुझको एक समय खाने को मिलता है ना तेरा पेट नही भरता क्या। तुझे किसी तरह बहला कर उससे पैसे लेने चाहिये ना। अगर आगे से ऐसी गलती की तो ललिया की तरह तेरा भी पैर काट के चौराहे पर बैठा दूँगा या श्याम की तरह तुझे भी बेच दूँगा तब तेरे समझ मे आयेगा।"
मै तो हथप्रभ सी वही खड़ी रही मुझे ऐसा लग रहा था जैसे सोचने समझने की शक्ति ही न बची हो।
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