बालकनी में मुस्कान Lalit Rathod द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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बालकनी में मुस्कान

लिखना चीजों को खूबसूरत बनाने की एक प्रक्रिया है। मेरा घर वास्तव में खूबसूरत है। इसे बार-बार साफ करना हमेशा जवान रखने जैसा है। अक्सर दोस्तों से कहता हूं मेरा घर मेरी तरह जवान है क्योंकि यहां जाले नहीं, धूल नहीं। सारी चीजें व्यवस्थित हैं। जब भी घर पर लिखने के बाद उसे पढ़ता हूं मुझे अपना ही घर और खूबसूरत नजर आता है। इन-दिनों घर की बालकनी में रोज एक बिल्ली आती है। असल में मुझे बिल्ली को ठीक बिल्ली कहना अच्छा नहीं लगता इसलिए मैंने उसका नाम मुस्कान रख दिया है। अब उसे नए नाम से ही पुकारता हूं। आजकल ठंड में धूप लेने अक्सर वह सुबह बालकनी में चली आती है। मेरी सुबह ठीक 10 बजे होती है। नींद से जागने के बाद रूम की खिड़की से बालकनी देखता हूं। मुझे वह बालकनी में बैठी हुई दिख जाती है। सफेद चेहरा, काले रंग का पैर..लंबी पूंछ जो उसके स्वभाव की तरह चंचल है। धूप में चमकता उसका पूरा शरीर बेहद सुंदर दिखाई पड़ता है। अब हर दिन अपने कमरे की खिड़की को धीरे से खोलते हुए गुड मॉर्निंग मुस्कान.., कहता हूं। पहले यह सुनकर डर से दूसरे घर भाग जाया करती थी। अब मुस्कान कहने पर उसने प्रतिक्रिया देना शुरु किया है। जब किसी दिन तय समय से देरी में मुस्कान कहता हूं वह सुनकर भी अनसुना कर देती है। ऐसा करना उसकी नाराजगी समझता हूं। जब ठीक 10 बजे कहता हूं तो अपनी पूंछ हिला देती है या फिर अलसाई आवाज से कुछ बुदबुदाने लगती हैं। अब मुस्कान कहने के साथ-साथ खुद भी मुस्कुरा देता हूं। मेरे मुस्कुराने से वह भी खुश हो जाती है। देर रात सोने से कई बार सुबह उसकी आवाज से होती है। सप्ताह भर से उसने धूप में बैठना त्याग कर अब घर के दरवाजे पर बैठना शुरू किया है। पैर से दरवाजा खरोचने से आवाज ऐसी आती है मानो घर के बाहर कोई दरवाजा खटखटा रहा हो। मुझे अक्सर भ्रम होता है, काम वाली दीदी खाना बनाने आई होगी। जब दरवाजा खोलने आगे बढ़ता हूं पैरों की आवाज सुनकर वह फिर धूप के पास चली जाती है और चौखट पर कोई नहीं होता है। यह उसकी बचकानी शरारत है, जो रोज करने लगी है। मुझे यह प्रिय भी है। हम दोनों एक दूसरे को महीने भर से अधिक जानते हैं लेकिन दोनों को एक-दूसरे के पास आने से डर लगता है। जब भी उसके करीब जाता हूं वह अपने नन्हे कदम डर से पीछे कर लेती है फिर एक तरह का संवाद करना शुरू करती है। उसकी बाते समझ नहीं आती है, लेकिन जवाब में हर बार पानी, दूध या अन्य खाने की चीजें ले आता हूं, लेकिन सब खाने के बाद फिर अपना पुराना संवाद शुरू कर देती है। उसकी तरह उसकी भाषा में बात करने कई बार उसके कहे वाक्यों को उसी की आवाज में दोहराने लगता हूं। शायद उसे मेरी आवाज डरावनी लगती होगी। इस वजह से कई बार दौड़ भागती है तो कभी प्यार से थोड़ा करीब भी चली आती है। जब भागते हुए बीच में उसे मुस्कान कहता हूं मेरी आवाज से एक क्षण के लिए ठहर जाती है और मुझे देखने लगती है लेकिन दूसरी क्षण में छलांग लगाकर दूसरे घर चली जाती है। उसे मेरा रूम में होना हमेशा मालूम होता है। मेरे घर के अलावा उसे तीन घरों से भी खाना मिलता है पर उसका मन हमेशा मेरे घर की बालकनी में लगता है। अपनी खिड़की से अक्सर कहता हूं, काश तुम्हे हिंदी आती! मेरे यह कहने पर वह भी आवाज करती है, मुझे लगता है वह मेरे कहे का जवाब दे रही है। वह कहती है, काश तुम मेरा कहना समझ पाते तो हम और भी अच्छे मित्र होते।