आज अनुज अपनी भावी जीवनसाथी रेवा को हमसे मिलाने लेकर आ रहा था।दोनों ने एक साथ MBA करने के पश्चात एक ही कम्पनी में जॉब प्रारंभ किया था, वे एक-दूसरे के साथ लगभग चार वर्षों से थे,अब वे विवाह कर अपना परिवार प्रारंभ करना चाहते थे।जब उनकी मित्रता प्रारंभ हुई थी, तभी से रेवा मुझसे वार्तालाप करने लगी थी, मुझे वह बेहद पसंद थी।वह एक खूबसूरत, समझदार एवं सुलझी हुई युवती थी।एक माँ को अपनी बहू में जो गुण चाहिए थे,वे सब उसमें थे,उसपर सबसे बड़ी बात कि वह मेरे बेटे की पसंद थी।
पिछले साल जब पति को उसके बारे में बताया था तो उनकी उदासीन सी प्रतिक्रिया थी कि चलो,लड़की कम से कम ठाकुर है।वैसे ठाकुर परिवार दबंग होते हैं लेकिन अब बच्चों को कुछ कहना बेकार है,उनकी अपनी मर्जी है।
मैं रेवा के स्वागत की तैयारी में व्यस्त थी,क्योंकि वह पहली बार हमारे घर आ रही थी, हालांकि मैं बेटे के कार्यस्थल पर उससे पूर्व में कई बार मिल चुकी थी।पति खामोशी से चेहरे पर थोड़ी नागवारी का भाव लिए सब कुछ देख रहे थे, वैसे विवाह में उन्हें कोई विशेष आपत्ति नहीं थी,किंतु विवाह पूर्व बहू का आना उन्हें असहज कर रहा था।
तय दिवस पर अनुज-रेवा आ गए।शांत घर में एक मनमोहक संगीततरंग गूँज उठा।उसके सरल व्यक्तित्व एवं प्रेमपूर्ण व्यवहार से 3-4 घण्टे पश्चात ही पति के चेहरे पर संतुष्ट मुस्कान थिरक उठी,जिसे देखकर मैं निश्चिंत हो गई।रेवा औऱ मैं सोते समय देर तक माँ-बेटी की तरह बातें करते रहे।मैंने अनुज-रेवा को थोड़ा चिंतित महसूस किया।मेरे जोर देने पर रेवा ने बताया कि पिताजी अनुज को बेहद पसंद करते थे लेकिन विवाह की बात करने पर जब आप सभी का विस्तृत परिचय लिया,उसके पश्चात उन्होंने विवाह से इंकार कर दिया।कोई स्पष्ट कारण भी नहीं बता रहे हैं, माँ ने जानने एवं मनाने की काफी कोशिश की, लेकिन वे टस से मस नहीं हो रहे हैं।उदास स्वर में रेवा ने कहा,"खैर, शादी तो मैं अनुज से ही करूँगी,पिता का आशीर्वाद नहीं मिलेगा तो बस माँ के आशीष से संतोष कर लूँगी।"
मैंने रेवा को सांत्वना देते हुए कहा,"तुम चिंता मत करो, जब वे पहले सहमत थे,तो निश्चित रूप से कोई विशेष कारण नहीं होगा,शायद कोई गलतफहमी हो गई होगी।मैं उनसे मिलकर इस समस्या का समाधान अवश्य निकाल लूंगी।"
रेवा ने असमंजस में कहा,"लेकिन माँ, मुझे डर है कि कहीं वे आपका अपमान न कर दें।"
मैंने मुस्कराकर जबाब दिया,"तुम बेफिक्र रहो,सब ठीक होगा।"
बच्चों के जाने के एक सप्ताह बाद ही रेवा के परिवार से मिलने मैं बिना पूर्व सूचना के पहुँच गई।पति से चलने के लिए कहा तो उनका अहं आड़े आ गया कि हम लड़के वाले हैं,पहले उन्हें आना चाहिए।
रेवा की माँ रजनी जी ने पूर्ण गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया।काफ़ी देर प्रतीक्षा करने के उपरांत भी जब रेवा के पिता के दर्शन नहीं हुए तो मैंने अंततः उनके बारे में पूछा,तो उन्होंने झिझकते हुए बताया कि आपके आने के पश्चात ही वे बाहर चले गए।मैंने मुस्कराते हुए कहा कि उन्हें फोन करके बता दीजिए, मैं बिना मिले नहीं जाने वाली,चाहे 2-4-10 दिन लगें।
दो घण्टे बाद आखिरकार झक मारकर वे आए।कुछ पहचाना सा चेहरा देखकर मैं अपने दिमाग पर जोर डालकर परिचय सूत्र तलाशने का प्रयास कर रही थी, वे खामोशी से मेरे सामने बैठे हुए मुझे देख रहे थे, आखिरकार यादों के एलबम से वह 32 वर्ष पुराना चेहरा सामने बैठे प्रौढ़ से एकाकार हो गया।अब तो मैं भी किंकर्तव्यविमूढ़ सी चुप हो गई, लेकिन बात तो करनी ही थी,बस शुरूआत करने के लिए मैं एक सूत्र तलाश कर रही थी।
मैंने माहौल को हल्का बनाते हुए रजनी जी से कहा,"भई,खाने की व्यवस्था कीजिए, मैं अभी एक-दो दिन जाने वाली नहीं।"
रजनी जी के जाते ही मैं सीधे मुद्दे पर आ गई,"अवनीश जी,इतने दिनों बाद हम इस तरह मिलेंगे, मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।इसका मतलब मुझे पहचानने के बाद आपने विवाह से इनकार कर दिया।मैं नहीं जानती वास्तविक कारण जो आपके मन में है लेकिन कोई भी बात बच्चों की खुशी से बढ़कर नहीं हो सकती।अगर आपको कोई शिकायत थी,मलाल था या दुश्चिंता, तो उसपर आपको मुझसे स्पष्ट बात करनी चाहिए थी।इस तरह मन में रखकर स्वयं को एवं अपनी ही बेटी को सजा देना सर्वथा अनुचित है।बच्चे समझदार एवं मेच्योर हैं, हमें किसी पुरानी बात के लिए उनका भविष्य खराब करने का कोई अधिकार नहीं।"
थोड़ी सांस लेकर मैंने पुनः कहना प्रारंभ किया,"उस समय न जमाना इतना एडवांस था,न मैं इतनी स्वार्थी कि अपनी ख़ुशी के लिए अपनी बहनों का भविष्य दाँव पर लगा देती।मैंने आपसे शुरू से कहा था कि हमारी मित्रता का परिणय तक पहुंचना नामुमकिन है।लेकिन आप शायद कॉन्फिडेंट थे कि मेरे विचार बदल देंगे,जो सम्भव नहीं हो सका।शायद आप अभी भी मुझे दोषी मानते हैं लेकिन मेरे लिए मेरे परिवार की खुशियां तब भी प्रथम थीं आज भी प्रथम हैं।आपसे सविनय अनुरोध है कि बच्चों को खुले मन से आशीष देकर उन्हें उनके नवजीवन में प्रवेश कराएं।"
इतना कहकर मैं खामोशी से उनके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा करने लगी।मेरी बातों का सुप्रभाव उनके चेहरे पर परिलक्षित हो रहा था लेकिन जबतक वे कुछ न कहें, तबतक मैं असमंजस में ही थी।आधे घंटे पश्चात वे घर के अंदर गए और लगभग दस मिनट बाद एक लिफ़ाफ़े एवं मिठाई के साथ रजनी जी के संग वापस आए और मुस्कराते हुए कहा कि यह शगुन लीजिए समधन जी औऱ मुँह मीठा कीजिए।
मैंने भी हंसते हुए जबाब दिया कि भई, हम लड़के वाले हैं, शगुन तो आपको हमारे घर ही आकर देना होगा।हम प्रतीक्षा कर रहे हैं।
शीघ्र ही सौहार्दपूर्ण माहौल में हमारे बच्चे परिणय सूत्र में बंधकर अपने सुखमय जीवन में प्रवेश कर गए।
********