अभिनय और प्रेम Lalit Rathod द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अभिनय और प्रेम

बीते कुछ वर्षों से कहानियों में मेरा रूम, एकांत, दोपहर, शाम, आस्था नाम की लड़की अक्सर शामिल रहे हैं। असल में यह सभी शब्द मेरे कलाकार है, जो कहानियों को लिखते वक्त अभिनय करते है। उन्हें अभिनय करना भी मैंने ही सिखाया है। जब लिखना शुरू नहीं किया था वे तब से मेरे साथ है। जब लिखने लगा तब मेरे पास लिखने को वही था, इसलिए उन्हे अपने संघर्ष का साथी मानता हूं। पांचों कलाकार कहानियों में अभिनय कर इतना अभ्यस्त हाे चुके हैं कि अब झूठ को सच साबित करने वक्त नहीं लगता। उन कलाकारों का परिचय दूं तो एक एकांत है, जो वर्षों से मेरे साथ है। जब भी लिखता हूं वह घर की चाैखट से दौड़ता हुआ कहानियों में अभिनय करने छलांग लगा देता है। अगर इसे मना करूं फिर भी यह मेरे लिखने में शामिल हो जाता है। एक लड़की है, जिसका नाम आस्था है। उसे अपनी हर कहानी में नायिका बना देता हूं। मुझे हर कहानी के अंत में आस्था से प्रेम हो जाता है। मेरा रूम जिसे खूबसूरत दुनिया समझता हूं। इसलिए अक्सर कहता हूं मै रूम में नहीं रूम के साथ होता हूं।शाम जो मुझे बेहद प्रिय है। वह अभिनय से कहानी में प्रेम के बाद उठने वाले वियोग का भाव अदा करता है। दोपहर कहानी के मध्य में अपने अभिनय से पाठकों को जीवन जीने का संदेश देता है। कल्पना, यर्थाथ और झूठ कलाकारों के अभिनय से जुड़ा होता है। मेरा लिखना अभिनय का निर्देशन करना है। कहानी के शुरुआत से अंत तक कलाकारों को बाहर निकालने का रास्ता खोज रहा होता हूं। इस जद्दोजहद में कभी दौड़ने लगता हूं तो कभी धीमे चलता हुआ दिखाई देता हूं। जब अंत में पहुंचता हूं कहानी का दरवाजा बंद कर चाबी आसमान में फेंक देता हूं। मेरे पांचों कलाकार आज भी कहानियों में अभिनय कर रहे है। अगर मेरा लिखा हुआ किसी को पसंद आता है, तो मुझे लगता है कलाकारों ने अच्छा अभिनय किया है। मेरी यात्राओं में भी यह कलाकार साथ होते है। अकेले होने पर इनका नृत्य करना मुझे खुशियों से भर देता है। मैंने कलाकारों को अपने लिखने में बढ़ते हुए देखा है। कहानी के अभिनय में नए कलाकारों के आने पर यह मुझसे शिकायत नहीं करते है। इनका अभिनय सब शानदार कर देता है।

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आज से ठीक दो दिन पहले किसी के प्रेम में था। असल में प्रेम में शामिल होना मुझे एक तरह से भीड़ में चले जाने जैसा था। मेरे लिए प्रेम करना अपना घर छोड़कर उस भीड़ में चले जाना था। दो दिनों तक वह भीड़ अपनी लगती रही। भीड़ मुझसे बात करती, मेरा कहना सुनती, आसपास ही रही, लेकिन अचानक दो दिन बाद जैसी ही मुलाकात खत्म हुई मुझे वह भीड़ जाते ही दिखाई दी। उसे रोकना चाहता था, की मुझे यूही अकेला छोड़कर ना जाए। मैं भी साथ चलने को तैयार हूं। वह भीड़ आंखों के सामने ओझल हो गई। मानों वह मुझे पहचानने से अब इंकार रही हो। भीड़ छटतने के बाद गहरा एकांत था। रात भर अकेला समय बिताया। मैं अपनी दुनिया में नहीं था, उस प्रेम की दुनिया में था, जिसमें दाे दिन पहले प्रेम में चला आया था। अकेले होने से दुखी था, अब मैं बस अपने दुनिया लौटना चाहता था। लेकिन मुझे बाहर निकलने का रास्ता मालूम ही नहीं था। ठीक उसी तरह जैसे मुझे किसी व्यक्ति को पल भर के बाद भुला देना नहीं आता। मेरे लिए प्रेम और व्यक्ति वस्तु नहीं रही। यह बात बार-बार उचारण किए जा रहा था। अकेले होने से ढेरों सवाल मुझे खाए जा रहे थे। तभी मुझे घने एकांत में किसी का हाथ दिखाई दिया, मैंने हाथ बढ़ाया और अपनी दुनिया चले आया। जब मुझे होश आया मैं अपने कमरे यह लिख रहा था। अपने लिखे में खुद को ढूंढ लेने के प्रयास में सफल रहा। अब भी ढेरों सवाल है, जो असुलझे हुए है। कुछ गलतियां है, जो कभी मुझसे हुई थी आज उस प्रेम से हुई । जानबूझकर नहीं, अनजाने में। इस तरह अब खुश हूंं।

कोमल..