झूठ का संसार Lalit Rathod द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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झूठ का संसार

मैं हर दिन एक झूठ कहता हूं। मेरे झूठ कहते ही एक नया संसार बनकर तैयार हो जाता है, जिसे में सच समझकर उसे दिनभर जीता हूं। असल में मुझे अपना झूठ सच के सामान लगता है। हर दिन नया जीवन जीने एक सच जैसा झूठ कहता हूं। वास्तव में झूठ को बड़े शिद्दत से जीना पसंद है। जैसे कल ही बात है लाइब्रेरी में किसी ने परिचय पूछा जवाब देने पहले समय देखा एक बजे हुए थे। सच कहना चाहता था, लेकिन नाम बताते हुए कहा, मैं चित्रकार हूं, जो इस लाइब्रेरी में ढेरों चेहरों से एक नया चेहरा बनाने हर दिन आता हूं। वह चेहरा जो वास्तव में किसी का है ही नहीं। मुझे यह झूट पसंद आया, लेकिन कहानी गढ़ते हुए अपने झूठ को सच बताने के बेहद करीब पहुँच चुका था, अचानक से हंसकर सच उगल देता लेकिन खुद को वही रोक लिया है। उनके जाते ही मैं वह चित्रकार बन चुका, जो नया चेहरा बनाने के प्रयास में लाइब्रेरी पहुंचा है। झूठ से बने चित्रकार के जीवन को दिनभर जीता रहा है। वह मेरी चाल में था। मैंने लिखने के जगह चित्र बनाया।
मैने उस व्यक्ति से झूठ जरूर कहा था, लेकिन मुझे लगा मैंने व्यक्ति से एक झूठ खरीदा है, जिसे पूरी तरह जीने के बाद अब उसे वापिस करने का समय आ गया है। आज लाइब्रेरी पहुंचते ही उनसे कहा, कल केवल मेरा नाम सच था बाकि सब झूठ था। उसे मेरी बात ऐसी लगी मानो कोई बात भूल गया था अब अचानक याद आने पर बताने चला आया। चेहर का भाव जानना चाहता था वह झूठ क्या है। असल में मैं शहर में से पत्रकार हूं, चित्रकार नहीं है।
तो फिर कल झूठ क्यों कहा..‍‍?
क्योंकि मुझे उस चित्रकार को जीना था। आपने मुझे चित्रकार समझा और मैंने खुद को चित्रकार माना। यह मेरे लिए आज का दिन नया जीवन जैसा था। वह चित्रकार एक दिन वह चेहरा ज़रूर बना लेगा। उनके चेहरे में मुस्कुराहट थी। शायद मेरे बात समझ आ गई हो। लेकिन अब उसे मेरा सच एक नया झूठ लग रहा, जिसे कल जीने के लिए कहा है। क्या तुम अपना झूठ रोज़ मुझे बता सकते हो? यह तो मुश्किल है। मुझे उस चित्रकार को और जीना है इसलिए तुम किसी से कहना नहीं की मै पत्रकार हूं.

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-मेरे लिए व्यक्ति कभी वस्तु नहीं रहा। मुझे मालूम नहीं किसी के लिए कोई व्यक्ति महज टाइम पास कैसे हो सकता है। मुझे हर व्यक्ति में संसार दिखाई देता है। मुझे अक्सर व्यक्ति से नहीं उसके संसार से प्रेम हो जाता है। प्रेम करने के की क्रिया को एक मजबूरी भी मानता हूं। कभी-कभी लगता है, प्रेम मेरे जीवन में जोखिम उठाने जैसा कार्य है। अक्सर में खुद को ऐसे जोखिमों के बीच पाता हूं। जिसके लिए हर चीज प्रेम हो उसके जीवन में दुख घर के चौथट में बैठा व्यक्ति के तरह है, जिसकी नजर हमेंशा
अंदर बैठे व्यक्ति के तरफ होती है। जरा आहट होने पर चौथट में बैठा व्यक्ति भीतर चला आता है।

-जिसने पूरा दिन शिद्दत से जिया हो, एक प्रेम में होने के तरह उसके लिए दिन को विदा कहना बेहद मुश्किल होता है। दिन का हर समय साथ में जीने के बाद शाम में उस दिन को अलविदा कहना मेरे लिए हमेशा से मृत्यु के सामान दुःख रहा है।