मृत्यु मूर्ति - 5 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मृत्यु मूर्ति - 5

812 ईस्वी,

छोटे से प्रार्थना कक्ष के सामने 3 लोग खड़े हैं।
प्रार्थना कक्ष के अंदर के भयानक दृश्य को देखकर तीनों आतंक से जम गए हैं।
तीन बौद्ध संन्यासी , सुबह के इस मनोरम किरण में भी उनके बलिष्ट शरीर में डर व आतंक का तरंग दौड़ रहा है । सामने ही एक लगभग सूखा हुआ शरीर पड़ा हुआ है। आँख आश्चर्य से भरा तथा मुँह खुला हुआ। मस्तक व पहनावे को देखकर समझा जा सकता है कि बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ है। मृत शरीर से कुछ दूरी पर एक संदूक है तथा उसका ढक्कन खुला हुआ है। उन तीनों में उम्र में जो प्रवीण है उनका नाम प्रशांतगुप्त है। उन्होंने ही आतंक की शांति को भंग किया।
बाकी दोनों में से एक को इशारा करते हुए बोले,
" जाकर देखिए तो उस संदूक के अंदर क्या है?"
संदूक के अंदर से जो वस्तु उन्होंने लाकर प्रशांत के हाथ में दिया उसे देखते ही उनका पूरा शरीर कांप गया। बाकी दोनों का उस वस्तु के बारे में कोई ज्ञान नहीं है। वह दोनों कौतुहल नजरों से प्रशांत गुप्त की ओर देखते रहे।

" क्या हुआ आपको भंते? आखिर वह क्या है?"

प्रशांतगुप्त का होंठ कांप रहा है।
" ठीक वही , जैसा वज्राचार्य से सुना था। यह ठीक उसी तरह की मूर्ति है। यह मूर्ति निंगम्मा सम्प्रदाय की आराध्या एक भयानक अपदेवी हैं। हिमालय की तराई देशों में बहुत ही गुप्त रूप से इनकी आराधना की जाती है लेकिन इस देश में भी कोई कर रहा है या मैंने पहली बार देखा।"

प्रशांतगुप्त के माथे पर बिंदु -बिंदु स्वेद दिखाई दिया। बाकी दोनों सन्यासी के आंखों में आतंक स्पष्ट है
" भंते फिर अब क्या किया जाए? स्वयं वज्राचार्य तो किसी कार्य वश मठ के बाहर गए हैं।"

" हम सभी अवलोकितेश्वरा के उपासक हैं। इस मठ में किसी का क्षति हम होने नहीं देंगे।
वज्राचार्य की अनुपस्थिति में इस मठ की रक्षा करने का दायित्व हमारे ऊपर ही है। पहले इस मृत शरीर का गुप्त रूप से शीघ्र ही अंतिम संस्कार की व्यवस्था करो। और सावधान किसी भी सन्यासी को इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए अन्यथा चारों तरफ आतंक फैल जाएगा। इसके बाद आप दोनों मुझसे पाताल कक्ष में रात को मिलेंगे। मैं जितना जानता हूं उसी विद्या का प्रयोग करूंगा। एक विशेष चक्र क्रिया के माध्यम से इस देवी को रोकना होगा अन्यथा सभी को इसी तरह मृत्यु प्राप्त होगा। अवलोकितेश्वर का विशाल रूप देवता सिंहनाद की आराधना करूंगा। वो ही इस भयानक शक्ति से लड़ सकते हैं। हे अवलोकितेश्वर! आप मुझे शक्ति दीजिए । "
कहने के बाद हाथ की मुट्ठी में पकड़े जपमाला को प्रशांतगुप्त ने अपने माथे पर लगाया।

गुप्त पाताल कक्ष के अंदर चारों तरफ अंधेरा फैला हुआ है। पूरे कक्ष में केवल 3 दीपक जल रहा है। वह सभी एक बड़े से वृत्त के अंदर बने एक षट्भुज आकृति के तीन कोने पर रखा हुआ है। बाकी तीन कोने पर तीन कठोर शरीर बैठा हुआ है। प्रत्येक के हाथ में एक जपमाला है जो घूमता जा रहा है तथा साथ ही मंत्र पाठ भी चल रहा है। वृत्त के एकदम मध्य में संदूक से प्राप्त लाकिनी मूर्ति को रखा गया है।
तीन लाख जप समाप्त होने में और कुछ ही समय बाकी है । इसके बाद ही इस भयानक शक्ति का खेल समाप्त हो जाएगा। अचानक ही बंद पाताल कक्ष के अंदर सांय सांय करता हुआ शीतल हवा इधर से उधर निकल गया। उस हवा ने तीनों के हड्डी को कंपा दिया था। हवा के झोंके से तीनों दीपक बुझ गए और जमीन पर नीले रंग के रेत से बना देवता सिंहनाद का मंडल उड़ गया। किसी अदृश्य शक्ति ने तीनों के हाथ में पकड़े जपमाला को छिन्न-भिन्न कर दिया। चारों तरफ अब केवल अंधेरा और एक भयानक शीतल हवा का झोंका है ।
धीरे-धीरे अंधेरे की जगह एक हल्के हरे रंग की रोशनी ने ले लिया। पूरे कक्ष में किसी के भयानक हंसी की आवाज सुनाई दे रहा है।
तीनों सन्यासी ने आश्चर्य होकर इधर-उधर देखा। यहां पर तो कोई भी नहीं है तो फिर यह हंसी किसकी है?
हल्के हरे रंग की रोशनी ने इस अंधेरे को और भी विकराल रूप दे दिया है। अचानक प्रशांतगुप्त की नजर उस मूर्ति की ओर पड़ी। मूर्ति नहीं अब वहां पर एक नीले रंग का अंधेरा है। उस अंधेरे में एक परछाई बैठा हुआ है। उस परछाई की हाथ - पैर सभी साधारण मनुष्य के जैसा लेकिन केवल सिर साधारण मनुष्य के जैसा नहीं है। एक नहीं , दो नहीं उसके तीन सिर हैं। तीन सन्यासी की तरफ तीन जोड़ा आंख प्रबल क्रोध से जल रहा है। उन आंखों में प्रतिहिंसा की ज्वाला धधक रही है। किसी एक अदृश्य शक्ति ने उन तीन बौद्ध संन्यासियों को बांध दिया है इसीलिए भागने के बारे में वह सभी भूल चुके हैं। खड़े होकर वह सभी केवल अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
इसके बाद उन तीन बौद्ध सन्यासियों का मुंह खुल गया तथा हवा की तरह सांय - सांय करके तीनों सिर ने तीन सन्यासी के प्राण शक्ति को चूसने लगी। रक्त , मांस सबकुछ धीरे - धीरे चूसकर अब केवल सन्यासियों का नीला शरीर दिखने लगा। वो तीनों लाकिनी को रोकने में असफल रहे। कुछ देर में ही तीन शरीर तीन तरफ छिटककर जमीन पर गिर पड़ा।
अब तीन सिर वाला शरीर उठ खड़ी हुई। इसके बाद वृत्त के मध्य में रखे पंचधातु की मूर्ति को उठा लिया फिर मूर्ति के साथ वह ना जाने कहां गायब हो गई।
मठ के बाकी सन्यासी जान भी नहीं पाए कि गुप्त पाताल कक्ष में इन तीन मासूम सन्यासी के साथ क्या हुआ।

क्रमशः....