मृत्यु मूर्ति - 8 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मृत्यु मूर्ति - 8

मैं लखनऊ शहर में जिस जगह रहता हूं, गोमती नदी वहां से ज्यादा दूर नहीं है। वहां तक चल कर ही पहुंच सकता हूं। सूर्य के पश्चिम में ढलने से पहले ही मैं निकल पड़ा। उस मूर्ति को एक अखबार में लपेटकर बैग में रख लिया है। उसे स्पर्श करने में भी अब मुझे डर लग रहा है। पहली बार इस मूर्ति को देखकर यह कितना सुंदर लगा था लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि नहीं इसमें सुंदरता नाम की कुछ भी नहीं है। वीभत्स,भयानक उसमें कोई सुंदरता नहीं है। मूर्ति को देखकर ही शरीर में डर दौड़ जाता है। इस वस्तु को अपने घर में रखने का ख्याल ही मुझे क्यों आया? मेरे घर से कुछ ही दूरी पर अमीनाबाद मार्केट है।सोचा था कि अमीनाबाद मार्केट के पास से रस्तोगी घाट के लिए ऑटो लूंगा। अमीनाबाद मार्केट के दोनों तरफ की दुकानों के बीच से मैं चलता हुआ जा रहा हूं। चलते हुए वहाँ कई सारे किताबों की दुकानों पर मेरी नजर पड़ रही है। चलते - चलते एक धार्मिक बुक स्टोर में एक लाल दफ़्ती वाले किताब को देखते ही मैं रुक गया। लाल दफ़्ती पर पीले रंग से लिखा हुआ है, ' बौद्ध तंत्र व देव - देवी '। दफ्ती के ऊपर लिखे हुए शब्द से ज्यादा उस पर बने चित्र ने मुझे आकर्षण किया था। उस चित्र के साथ मेरे बैग में रखे हुए मूर्ति से पूरा मेल नहीं था लेकिन उसमें कई सारी समानता थी। मूर्ति को फेंकने से पहले उसके बारे में जानने के लिए मन व्याकुल हो उठा। मैंने सोचा कि इस किताब को एक बार पढ़ना चाहिए शायद मुझे कुछ पता चल जाए। इस मूर्ति के बारे में किताब में शायद कोई रेफरेंस तो अवश्य होगा। यही सोचकर उस दुकान में जाकर किताब का मूल्य पूछा। दुकानदार ने डिस्काउंट देकर भी जो मूल्य बताया उतना पैसा मेरे पास इसवक्त नहीं है। किताब को रख जैसे ही दुकान से बाहर निकला अचानक किसी ने पीछे से मेरा नाम लेकर मुझे बुलाया। मैंने रुक कर पीछे देखा। पीछे से पेंट -शर्ट पहने चेहरे पर मुस्कान लेकर अध्यापक /टीचर टाइप का जो लड़का आ रहा है वह शायद मुझे जानता है लेकिन मैं उसे अभी तक नहीं पहचान पाया। पास आकर उस लड़के ने मुझसे पूछा ,
" क्यों मुझे पहचाना या नहीं? "
ऐसे सभ्य और सरल लड़के से मेरा जान पहचान है या कभी था यह मुझे याद नहीं आया।
मैं असमंजस होकर बोला,
" उम्म्म्म, नहीं भाई। "
उस लड़के ने मुस्कान भरे चेहरे से फिर बोला,
" मैं तुम्हारे चाचा के लड़के विवेक का दोस्त हूं। इंटरकॉलेज के वॉलीबॉल चैंपियनशिप में चैंपियन टीम का मैं कप्तान था। अब याद आया। "
और कुछ बोलने की जरूरत नहीं। तब तक मैंने उस शांत आवाज को पहचान लिया था। चेहरा भी याद आ गया था लेकिन उस चेहरे का इस तरह परिवर्तन हुआ है कि मैं पहले पहचान ही नहीं पाया।
" अरे भैया आप! यहां क्या कर रहे हैं? "
" यहां मतलब! लखनऊ में ही तो रहता हूं कहां जाऊंगा?"
" मेरा मतलब है कि इंटर कॉलेज के बाद से तो मैंने आपको कभी नहीं देखा। वैसे क्या हाल? "
" मैं तो अच्छा ही हूं भाई पर तुम कैसे हो और घर में सभी कैसे हैं?"
किसी तरह चेहरे पर मुस्कान लाते हुए मैं बोला,
" अच्छा ही हूं। तो आज इधर कैसे? "
उसका चेहरा अचानक गंभीर हो गया। कुछ देर मेरे चेहरे की तरफ देखने के बाद उसने जो बोला वह सुन मैं आश्चर्यचकित हो गया।
" नहीं, तुम इस वक्त सही नहीं हो मुझसे झूठ मत बोलो। जल्दी ही घर पर किसी की मृत्यु हुई है। इसके अलावा तुम कुछ दैविक व भयानक समस्या से जूझ रहे हो।"
उसके उज्वल आँख में मैं मानो खो गया।
मैंने उससे पूछा,
" तुम्हें कैसे पता चला?"
फिर चेहरे पर वही स्वाभाविक मुस्कान,फिर उनसे बोला,
" यहीं खड़े होकर सब कुछ सुनोगे! चलो पास ही किसी दुकान पर बैठते हैं। "

मुझे एक पॉजिटिव संकेत मिला। मूर्ति को गोमती नदी में फेंकने के बारे नहीं भूला लेकिन न जाने क्यों उसके चेहरे को देखकर ऐसा लगा कि जो मुझे देख कर इतना सब कुछ बता सकता है उसके पास इस समस्या का समाधान अवश्य होगा। इसीलिए उसके साथ बात करना इस वक्त मुझे ज्यादा जरूरी लगा। घर लौटते समय मूर्ति को गोमती नदी में फेंक दूंगा।

शाम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। हम दोनों एक चाय की टपरी पर जाकर बैठे। चाय पीते हुए हम दोनों के बीच बहुत सारी बातें हुई। मैंने अपने इंटरकॉलेज के इस सीनियर भैया से कुछ अचंभित कर देने वाले बातों को जाना है।
क्लास का सबसे गधा लड़का कैसे तंत्र - मंत्र के दुनिया में प्रवेश कर गया? पहले उसने अपने तांत्रिक दादा जी से कैसे तंत्र दीक्षा लिया एवं इतने साल कई जगहों पर घूमकर कैसे साधना के विभिन्न स्तर को पूर्ण किया। सबकुछ उसने मुझे बताया। वर्तमान में वह अपने असली नाम का उपयोग नहीं करता। तंत्र दीक्षा के बाद उसका एक नया नाम अवधूत बाबा हो गया है हालांकि यह नाम मुझे पसंद भी आया। अब से मैं यही कहकर उसे बुलाऊंगा।
असली नाम का परिचय रहने ही देता हूं। उसके माता-पिता कई साल पहले स्कूल टाइम ही स्वर्ग सिधार चुके थे। उसके बाद से वह अपने दादा जी के पास रहकर ही बड़ा हुआ। उसके दादा जी को भी स्वर्ग सिधारे 5 साल हो गया है। वर्तमान में वह गोरखपुर अपने पैतृक घर में रहता है। हजरतगंज में अपने एक घर के किराए से उसका जीवन आय चल रहा है। कई प्रकार की साधनाओं को करने के बाद अब उसके अंदर कई तरह की क्षमताएं हैं। इतने दिनों के बाद कोई दूसरा अगर मिलकर यह बात कहता तो मैं मानने से पहले दस बार सोचता लेकिन इस लड़के को मैं जैसे जानता था उससे लगभग 100% ही परिवर्तन हो गया है। इसके अलावा दो तेज उज्वल आँख को देखकर यह समझा जा सकता है कि वह झूठ नहीं बोल रहा। इसके अलावा उसने मेरे साथ हो रहे समस्याओं के बारे में इतनी आसनी से कैसे बता दिया?

मुग्ध व अचंभित होकर उसके जीवन के इस परिवर्तन की कहानी को सुन रहा था। जो लड़का इंटर कॉलेज की लड़कियों के बीच इतना पॉपुलर था, बहुत ही अच्छा वॉलीबॉल खेलता, क्लास बंक मारता , गड़बड़ कांड में सबसे आगे,, उसके अंदर का यह परिवर्तन बहुत ही आश्चर्यजनक है। लेकिन उसके अंदर तांत्रिक के जैसा लुक नहीं है। साधारण सा शर्ट पैंट, साधारण बाल, दाढ़ी क्लीन शेव बस इतना ही। अचानक देखने से शायद कोई टीचर है यही भाव पहले मन में आएगा।
मेरे मन में एक शांति की हवा बह चली थी। सचमुच भगवान भी बहुत ही करुणामयी हैं जो इतने सालों बाद आज ही किसी तरह उसके साथ मैं मिल गया। मन के अंदर एक बात दौड़ गई कि शायद यही आदमी मेरे समस्याओं को मिटा सकता है।
अपने बारे में बहुत सारी बातें बताने के बाद अब अवदूत ने मुझसे पूछा ,
" आप बताओ कि मूल समस्या क्या है? हालांकि मैंने बहुत सारा अंदाजा लगा लिया है लेकिन तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं। शायद मैं तुम्हारा कुछ सहायता कर सकूं।"
आभार की रेखा मेरे चेहरे पर स्पष्ट थी। सचमुच भगवान मनुष्य के भेष में इस तरह समस्याओं से बचाने के लिए आते हैं। अवधूत को सब कुछ खुल कर बताया।मैक्लोडगंज मार्केट की घटना से लेकर आज सुबह तक मेरे साथ जो कुछ भी हुआ है सब कुछ उसे बताया। अवधूत ने सब कुछ ध्यानपूर्वक सुना। सब कुछ बताने के बाद अवधूत बोला,
" तुम भी पागल ही हो। अनजाने व्यक्ति ने कुछ दिया और तुमने फ्री में ऐसे ही ले लिया। इतना महंगा मूर्ति उसने तुम्हें दिया और तुमने इस बारे में एक बार भी नहीं सोचा। जो भी हो अब वह मूर्ति कहां है?"
मेरे पास सिर झुकाकर सुनने के अलावा और कोई उपाय नहीं था। इस प्रश्न का आखिर मैं क्या जवाब दूं? सपने में भी कल्पना नहीं किया था कि एक पंचधातु की बौद्ध देवी मूर्ति रात को जीवित भी हो सकता है।
बैग से मूर्ति को निकालकर उसके हाथ में दिया। लपेटे हुए अखबार को खोल उसने मूर्ति को कई बार इधर उधर से देखा और फिर बोला।
" इसे ऐसे साथ में लेकर क्यों घूम रहे हो?इससे कोई भी घटना हो सकती है। "
" गोमती नदी में फेंकने जा रहा था।"
" नहीं , इससे कोई लाभ नहीं होगा। ऐसे नहीं होता। तुम एक काम करो यह मूर्ति मुझे दे दो ।"
यह सुन मैं चौंक गया।
"नहीं भाई! जानबूझकर मैं इस भयानक समस्या को तुम्हारे कंधे पर नहीं डालना चाहता। मैं इसे जाकर गोमती में विसर्जन कर देता हूं।"
अवधूत ने हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला,
" मेरे पास महाकाल भैरव के यज्ञ का भस्म है। तथा खुद की रक्षा करने के लिए मेरे पास रक्षा मंत्र भी है। कोई निम्न नकारात्मक शक्ति मेरा कुछ नहीं कर सकता। तुम बिना कुछ सोचे ही यह मूर्ति मुझे दे सकते हो। वैसे अगर यह तुम्हारे पास रहा तो कोई ना कोई भयानक घटना अवश्य तुम्हारे साथ होगा। मैं इतना जानता हूं कि कोई भयानक नकारात्मक शक्ति यह नहीं चाहेगा कि उसकी मूर्ति का विसर्जन किया जाए। वह तुम्हे रोकने की कोशिश करेगा। शाम हो चुका है अब यह मूर्ति अपने पास मत रखो। अकेले-अकेले इस मूर्ति को लेकर टहल रहे हो अच्छा हुआ कि मैं मिल गया वरना आज पता नहीं क्या होता। वह मूर्ति मुझे दे दो।"
अनिच्छा मन से उसके हाथ में मूर्ति दे दिया। मेरे हाव-भाव को देखकर अवधूत हंसकर बोला।
" अरे भाई! चिंता मत करो मुझे कुछ नहीं होगा। तुम्हारे घर में लोग हैं लेकिन मैं अकेला हूं। अगर मुझे कुछ हुआ तो भी कोई बात नहीं। इसके अलावा तुमने आज सुबह ही अपने प्यारे रॉकेट को खोया है। आज रात यह मूर्ति कौन सा भयानक खेल दिखाती क्या ही पता? अब उठो, तुम्हें घर तक छोड़ देता हूं। रात होने वाला है और तुम्हें अकेले घर जाने देना सही नहीं है। "
वह सचमुच मुझे मेरे घर तक छोड़ कर गया। मैंने कई बार उसे अंदर आने के लिए कहा लेकिन वह नहीं माना। जाते वक्त कंधे के बैग से एक पत्ते में लाल धागे से बधा हुआ कुछ देकर बोला।
" इसे रखो , इसके अंदर चूने के जैसा कुछ है वह क्या है इस बारे में तुम्हें जानने की कोई जरूरत नहीं? अभी तुरंत ही घर के चारों तरफ इससे एक रक्षा घेरा बना दो। और हां चिंता की कोई बात नहीं सब कुछ ठीक हो जाएगा। तुम कल शाम को एक बार मुझसे मिलना। सुबह मुझे कुछ काम है सुबह तो बिजी रहूंगा। शाम को हमें बाराबंकी जाना होगा। घर पर बता देना कि लौटने में रात हो जाएगा। वहां पर मेरे पहचान के एक आदमी से मिलना होगा। उनका नाम कृष्ण प्रसाद भट्टराई है। नेपाली जाति से हैं, यहां बाराबंकी में अपने लड़के के व्यवसाय के कारण पूरे परिवार के साथ रहते हैं। पूरे अवध छेत्र में शायद वही एक हैं जिन्होंने इतने सारे बौद्ध तंत्र पर सिद्धि पाई है। उनके पास एक आश्चर्यजनक शक्ति है वो किसी भी वस्तु को छूकर उसका अतीत बता देते हैं। इस मूर्ति के इतिहास के बारे में जानना बहुत ही जरूरी है। इसके अलावा इस समस्या से छुटकारा पाने का सही रास्ता वह बता सकते हैं। अब मैं चलता हूं। "
मैं बोला,
" अपना फोन नंबर तो दो? "
" भाई मैं मोबाइल नहीं चलाता। "
इस युग में मोबाइल नहीं इस्तेमाल करता क्या ऐसा आदमी इस पूरे लखनऊ में है?
" फिर तुम्हारे साथ कांटेक्ट कैसे करूंगा?"
" कल शाम 4 बजे बस स्टैंड आ जाना। और हां याद से रक्षा घेरे को बना देना। "

अवधूत वहां से चला गया। उसके परछाई के गायब होने तक मैं गली के मोड़ पर अंधेरे में खड़ा रहा। मन में एक आश्चर्य प्रकार की शक्ति महसूस हो रहा है। मन ऐसा कह रहा है कि सभी समस्याएं खत्म हो जाएगी।

क्रमशः.....