सात फरवरी को हमारा रीट का एग्जाम था। जयपुर में निवास कर रहे हम अधिकतर मित्रों का एग्जाम सेंटर बाड़मेर आया था। अब समय था हमारी कर्मभूमि से विदा लेने का। वो शाम का समय हमेशा याद रहेगा जब रोहितांश सिंह मुझे और गुरुदेव को गांधीनगर रेलवे स्टेशन तक छोड़ने आये थे। विदा लेते समय उनकी आँखों में जो प्रेम और अपनापन था वो केवल चार महीनों में उत्पन्न हुआ था लेकिन यह कहना मुश्किल था कि हम केवल चार महीनों से ही एक-दूसरे को जानते है।
गांधीनगर रेलवे स्टेशन पर हमारे अन्य साथी पहले से मौजूद थे और कुछ हमारे आने के बाद आये। जब मैं जयपुर आया था तब केवल गुरुदेव ही मेरे साथ थे और जाते समय मित्रों का पूरा झुंड था इसलिए यह सफर आनंद और रोमांच से भरपूर था । परीक्षा से पहले यह वातावरण हृदय और मस्तिष्क को बहुत शांत करने वाला था।
मित्रों की गप्पों की तरह ट्रेन भी लबालब भरी हुई थी पर फिर भी जब मित्र साथ होते है तो कितना भी कठिन सफर हो आसान बन ही जाता है। हम पाँच फरवरी को ही रवाना हो गए और छह फरवरी की प्रातः को हम एग्जाम से एक दिन पहले ही बाड़मेर पहुंच गए। बाड़मेर में हम 'दान जी की हौदी' में स्थित समाज के उसी भवन में पहुंचे जहाँ जयपुर आने से पहले मैं मित्र नेणु जी के पास अध्ययन कर रहा था।
नेणु जी के पास मैं करीब दो महीने रुका था और इन दो महीनों में मेरी रीट परीक्षा के अध्ययन की नींव तैयार की थी। मैंने सोचा था क्या पता वापस यहाँ आने का मौका मिलेगा या नहीं? लेकिन किस्मत यहाँ ले ही आई। पुनः यहाँ आकर यहाँ की यादें ताजा हो गयी थी।
छह फरवरी के दिन हम प्रातः का नाश्ता करके सभी साथ ही सभी के एग्जाम सेंटर देखने निकले। दिन - भर भ्रमण के पश्चात रात को सभी मित्र भोजन और गप्पों का आस्वादन करने लगें। वह रात "कतल वाली रात" थी । एग्जाम से एक दिन पहले वाली रात , न तो चैन आता है ना नींद ऐसा अधिकतर सभी कहते है लेकिन हमें तो नींद भी शानदार आई और चैन तो गया ही नहीं हमसे दूर । यह गुरुदेव और मित्रों की प्रेरणा और कुछ गप्पों का ही प्रभाव था जो पहली बार एग्जाम से पहली रात इतनी मस्ती भरी गुजरी।
आखिर वह दिन आ ही गया जिसके लिए हम जैसे हजारों विद्यार्थी प्रतीक्षा कर रहे थे। अधिकतर व्यक्ति तब अपनी हिम्मत हार जाते है जब वह लक्ष्य के बेहद करीब होते है। लक्ष्य को पाने के उतावलेपन में अथवा लक्ष्य न प्राप्त होने की कल्पना कर मन में असफलता का भय उत्पन्न कर वह उन आखिरी किंतु सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव पर ये गलती कर अपनी सफलता के करीब होने पर भी उस तक पहुंच नहीं पाते है। सफलता पाने के लिए निरन्तर मेहनत, उचित योजना और दृढ़संकल्प होने के साथ-साथ धैर्य भी अनिवार्य शर्त है। इनमें से एक के न होने से ही सफलता प्राप्त करने से हम वंचित रह सकते है।
गुरुदेव के साथ ही मेहनत, सही योजना और मन में दृढ़संकल्प के साथ ही धैर्य जैसा महत्वपूर्ण गुण की समझ मुझमें विकसित हुई और परीक्षा भवन में प्रवेश करने से लेकर पूरा पेपर देने तक मन में कोई भय उत्पन्न न हो सका।
गुरुदेव की सुसंगति और उनकी प्रेरणा एवं ज्ञान रूपी गुरुदेव के सानिध्य में रहकर मैंने इस समुद्र रूपी कठिनाइयों के मध्य अपना बेड़ा पार कर ही लिया । और मैं गुरुदेव रूपी पतवार के सहयोग से इस समुद्र को पार करने में सफल हो गया। लेकिन गुरुदेव के जीवन में अभी और संघर्ष लिखा था। उनको फिर से वह यात्रा करनी थी जो हमनें मिलकर एक बार की थी लेकिन मुझको किनारे पहुंचा के उनको शायद इसलिए वापस जाना पड़ा ताकि मुझ जैसे कुछ और यात्रियों को वह इस सफलता के किनारे ले आ सके।
क्रमशः