अधूरा इश्क (लघुकथा) Kumar Kishan Kirti द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अधूरा इश्क (लघुकथा)

रिया ऑटो रिक्शा से समाहरणालय के पास पहुँची और ऑटो रिक्शा चालक को रुपये देकर जल्दी से जिलाधिकारी कार्यालय के पास पहुँची, लेकिन वहाँ खड़े सिपाही ने जब रोका तब वह हाँफती हुई बोली"मैं.... मैं... साहब से मिलना चाहती हूँ।बहुत जरूरी है उनसे मिलना।"इतना कहकर वह एक लंबी सांस ली।उसकी बात सुनकर वहाँ खड़ा एक अन्य सिपाही बोला"ठीक है, आप यही रुकिए।मैं सर से आदेश लेकर अभी आ रहा हूँ"।इतना कहकर वह अंदर चला गया है जल्द ही वापस आकर बोला"आप अंदर जा सकती है।साहब इस वक्त आपसे बात कर सकते है"।

जैसे ही रिया यह सुनी वह प्रसन्न होकर जिलाधिकारी के पास गई,मगर यह क्या...!वह आश्चर्य हो गई!उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था।क्या वह सपना देख रही थी,या जो अभी वह देख रही है यह सच है।उसके सामने जिलाधिकारी जैसे बड़े पद पर जो बैठा हुआ था।एक दिन उसी शख्स को रिया गरीब और लाचार कहकर उसके प्यार को ठुकरा दी थी।

परंतु,आज...।आज तो समय करवट बदल गया है।अब दीपक के सामने रिया की औकात कुछ नहीं था।रुपया,पावर और रुतबा दीपक को बखूबी मिल रहा था।
खैर,रिया का सिर मारे शर्म से नीचे झुका हुआ था।वह कुछ भी नहीं कह पा रही थी।तभी दीपक बोला"क्यों रिया जी,कैसे-कैसे मेरी याद आ गई!मैं तो बस गरीब और लाचार हूँ।तथा आप एक अमीर घर की लड़की है।बोलिए,मैं किस प्रकार से आपकी मदद कर सकता हूँ?"
दीपक की व्यंग्यात्मक बातों को सुनकर रिया को लगा की वह इसी क्षण यहाँ से निकल जाए।मगर... जिस काम से वह आई है।वह करना भी तो जरूरी है।वह चुपचाप खड़ी थी।आईएएस दीपक बोला"अरे!आप बैठिए तो सही।खड़ी क्यों है!"इतना कहकर दीपक मुस्काया।वहाँ बाकी लोग भी बैठे हुए थे।सब बड़े ही आश्चर्य से कभी डीएम साहब की तरफ देख रहे थे तो कभी रिया की तरफ देख रहे थे।

रिया कुछ भी नहीं बोली।हाँ कुर्सी पर बैठ गई।और,अपनी समस्याओं को दीपक के सामने रखी।दीपक तुरंत ही एस डी ओ साहब को रिया की समस्या को सुलझाने का आदेश जारी कर दिया।उसके बाद रिया भी दीपक की तरफ देखकर बोली"मुझे माफ कर दो दीपक जी।मुझे अपनी करनी पर बड़ा ही अफसोस है।मैं उस समय अपनी अमीरी पर घमण्ड कर रही थी।मैंने तुम्हें जिस लड़के के कारण ठुकराया वह लड़का भी मुझे धोखा दे दिया है।"

यह कहकर वह रोने लगी।हालांकि,वहाँ केवल दीपक और रिया थे।क्योंकि, दीपक बहुत पहले ही बाकी लोगों को वहाँ से जाने का इशारा कर चुके थे।रिया रो रही थी।उसे रोते हुए देखकर दीपक अपनी कुर्सी से उठा और बोला"रिया,मैं तुमसे प्यार करता था।मगर,अब नहीं करता हूँ,क्योंकि मैं जानता हूँ की तुम मुझे इसलिए प्यार करती हो क्योंकि मैं एक आईएएस अधिकारी हूँ।परन्तु इसकी क्या गारंटी है की कल जब मैं सस्पेंड,या किसी घोटाला मामले में फस जाऊ तब क्या तुम मेरा साथ दोगी!"

इसलिए,मुझे तुम्हारे साथ सहानुभूति है मगर प्यार नहीं है।एक अधिकारी के रूप में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।परन्तु,तुम मेरी अब प्रेमिका नहीं हो।तुम जो की हो यह तुम्हारी मुक्कदर की बात है।इसमें मैं तुम्हारी कोई मदद भी नहीं कर सकता हूँ।आई एम सॉरी।"इतना कहकर दीपक अपने ऑफिस के बाहर निकल पड़े।
:कुमार किशन कीर्ति।