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आई एम सॉरी...।

ऑफिस से छुटकारा पाने के बाद मैं एक होटल में कॉफी पीने के लिए चला गया।दिनभर की कामों से निवृत होकर मैं प्रतिदिन कॉफी पीया करता हूँ।शाम को पांच बजे थे।
घर पर प्रिया से बोल चुका था की आज मैं देर से आऊंगा।
खैर,मैं आराम से कॉफी पी रहा था।इसी बीच में कोई जानी-पहचानी आवाज मुझे सुनाई पड़ी।मैं अचंभित होकर जब
पीछे मुड़ा तब उसे देखकर अचंभित रह गया।
उसे!....जी हाँ मधु,जिसे मैं कभी दिल से चाहता था और वह मुझसे बेपनाह मोहब्बत किया करती थी।मगर...पता नहीं उसे क्या हुआ!वह मुझसे धीरे-धीरे दूर जाने लगी।मुझसे मिलना-जुलना सब बंद कर दी।बातें करना भी बंद कर दी।खैर...।मैंने उसे देखकर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी।मुस्कुराया भी नहीं।बस,उसे सामने रखी कुर्सी पर बैठने को कह दिया।वह आई और चुपचाप बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए बैठ गई।"अभी तक नाराज हो क्या?बीती बातें भी नहीं भूले हो!"वह मेरी तरफ बड़े ही शर्मिंदगी महसूस करते हुए देखकर बोली।
मैं भला उससे क्या कहता?लेकिन, कुछ ना कुछ तो कहना पड़ता।अतः मैं बोल पड़ा"नहीं मधु,मैं तुमसे नाराज होकर भी तुम्हारा क्या बिगाड़ लूँगा?तुम्हारी जिंदगी है और इस पर तुम्हारा अधिकार है।मैं क्या कर सकता हूँ?"यह सुनकर मधु अपना हाथ मेरे हाथ रखकर बोली"मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूँ।परन्तु,मैं क्या करूँ?मुझे कुछ भी समझ मे नही आ रहा था।"वह मेरी तरफ देखकर बोली।उसकी ऐसी हरकत मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं आई।मैं गुस्से से अपना हाथ हटाते हुए बोला"अब मैं तुम्हारा प्रेमी नहीं हूँ।मैं किसी और का हो चुका हूँ।जो होना था,उसकी मुझे कोई गम नहीं है।"इतना कहकर मैंने अपनी हाथों को पीछे हटा लिया।
मेरी कॉफी समाप्त हो गई थी।मैं जाने को तैयार था।शायद,उसकी भनक मधु को मिल चुकी थी।अतः,वह खड़ी भी हो गई और मुझको रोकती हुई बोली"अब तो तुम मेरी बात समझा करो।क्या तुम मुझे माफ नहीं कर सकते हो?"
अब,आस-पास के लोग तमाशा देखने ना लगे इस कारण मैं भी वहाँ रुक गया।इसके साथ ही उसके मैं पुनः बैठ गया और मधु से बोला"अच्छा ठीक है तुमको जो भी कहना है।
जल्दी कहो,क्योंकि मुझे घर जाना है"।मेरी बातों में नाराजगी थी।यह सुनकर मधु बोली"गलती मेरी ही थी।मैं तुमको समझ ना सकी।मैं दूसरों की बहकावे में आ गई थी।गलतफहमी मेरे मन में बैठ गई थी।"यह कहकर उसकी आँखें नम हो गई।अब मधु को अपनी करनी का अफसोस हो रहा था, लेकिन क्या फायदा?
मधु की बातों को सुनकर मैं बोला"इसकी चिंता तुमको पहले करनी चाहिए थी।पता है मधु,मैं तुमको कितना चाहता था।अपनी जिंदगी से भी बढ़कर तुमको चाहता था।मगर,तुम तो बिन बताए ही मुझको छोड़ चली।आखिर मेरी गलती भी क्या थी?"यह कहकर मेरी आँखें नम हो गई।पुराने जख्म और दर्द ताजे हो गए।इसके बाद मैं भी चुप था।मधु भी चुप थी।बस...हमदोनों के बीच खामोशी और तन्हाई थी।अचानक मुझे याद आया की शाम काफी हो चुकी है।मैं अपनी आँसू पोछते हुए बोला"गलती मेरी थी,जो तुमको अपना मनमीत मान गया,खैर तुम खुश रहना।अब मेरी सारी मोहब्बत मेरी पत्नी के लिए है।जिसके साथ मैं वेबफाई नहीं कर सकता हूँ।"यह मेरा आखिरी दलील था।इसके साथ ही मैं वहाँ से उठकर चल पड़ा।
मधु मेरे पीछे-पीछे आने लगी और यह कहने लगी"मेरी बात सुनो,आई एम सॉरी... मुझे अपना लो।"परन्तु उसकी घड़ियाल आँसू का मुझपर कोई प्रभाव नहीं हुआ।मैं चुपचाप अपनी गाड़ी में बैठकर चल पड़ा।
:कुमार किशन कीर्ति,बिहार।

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