अकेले ही आना - अंतिम भाग Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अकेले ही आना - अंतिम भाग

अभी तक आपने पढ़ा विजेंद्र की दोस्त ज्योति को स्वामी ने रात आठ बजे पूजा के लिए अकेले ही बुलाया। वहाँ पहुँचते ही ज्योति की तलाशी ली गई और उसके बाद उसे स्वामी के पास एक कमरे में भेज दिया गया। आगे क्या हुआ अब पढ़िए: -

स्वामी के होंठ ज्योति के होंठों को स्पर्श करें उससे पहले बाहर ज़ोर का धमाका हुआ। धमाके की आवाज़ से स्वामी घबरा कर पीछे हट गया । विजेंद्र का इशारा मिलते ही सारे पुलिस कर्मी जो कि इधर-उधर छिपकर बैठे थे, एक्शन में आ गए। स्वामी के पहरेदारों पर उन्होंने हमला बोल दिया और चुन-चुन कर उन्हें अपनी गिरफ़्त में लेने लगे।

उधर राजन और विजेंद्र सीधे ज्योति की तलाश में अंदर चले गए। एक महिला पहरेदार से पूछकर उन्होंने उस कमरे का पता लगा लिया। दरवाज़ा अब तक भी अंदर से बंद था। बेकाबू स्वामी अपने होशो हवास खो चुका था। धमाके की आवाज़ से वह विचलित अवश्य हुआ था पर बाहर से कोई भी ख़बर उसके पास नहीं आ पाई। इसलिए वह बेफ़िक्र हो गया और ज्योति के साथ ज़बरदस्ती करने लगा।

ज्योति ने कहा, "आशीर्वाद के नाम पर तुम यह घिनौना काम करते हो?"

वह अपने आप को बचाने की कोशिश कर रही थी। तभी विजेंद्र और राजन ने दरवाज़ा तोड़ दिया और अंदर घुस कर रंगे हाथों स्वामी को गिरफ़्तार कर लिया। स्वामी को घसीटते हुए दरबार के बाहर लाया गया। उसने देखा उसका कोई भी पहरेदार नहीं है। तब सारा मामला स्वामी की समझ में आ गया। रात का अँधेरा था, गाँव वालों को इस समय दरबार में क्या हो रहा है, पता ही नहीं चला। ना वहाँ भीड़ लग पाई, ना हंगामा हो पाया।

दूसरे दिन सुबह गाँव वालों को इकट्ठा करके उन्हें वह वीडियो दिखा कर स्वामी की सच्चाई से अवगत कराया गया। कुछ ने विश्वास किया, कुछ अभी भी आस्था में आँसू बहा रहे थे। लेकिन गाँव की वे लड़कियाँ आज बेहद ख़ुश थीं जिन्हें आशीर्वाद के नाम पर स्वामी ने ज़िंदगी भर के लिए एक ऐसा ज़हर पिला दिया था जिसे वे कभी भूल नहीं पाएँगी।

शुभांगी और उसके माता-पिता यह सब कुछ देखकर सन्न रह गए। उनकी साँसें तो मानो रुक ही गईं।

शकुंतला ने कहा, "शुभांगी यह तो भगवान के नाम पर लड़कियों का जीवन बर्बाद कर रहा था। यह तो राक्षस से भी ख़राब निकला। अच्छा हुआ बेटा तुम उसके चंगुल में नहीं आ पाईं। उसने तो तुम्हारे पिता से कहकर कल तुम्हें आशीर्वाद देने के लिए बुला ही लिया था। तुम्हारे पिताजी तुम्हें बताकर तुम्हें भेजते उससे पहले ज्योति आ गई और उसे देखकर स्वामी ने पहले उसे बुला लिया। यह तो विजेंद्र ने ज्योति को लाकर तुम्हें बचा लिया वरना…," इतना कहकर शकुंतला रोने लगी और शुभांगी को अपने सीने से लगा लिया।

धीरे-धीरे भीड़ छँटती जा रही थी। विजेंद्र दूर खड़ा देख रहा था। तभी पार्वती काकी शकुंतला के पास आईं और कहा, "शकुंतला इसीलिए तो हम तुम्हें वहाँ जाने के लिए मना करते थे। ना जाने कितने माता-पिता को आज मालूम पड़ा होगा कि आशीर्वाद के नाम पर उनकी बेटी को किस नर्क में जाना पड़ा। लेकिन बदनामी के डर से सब चुप थे। अपनी-अपनी बेटियों के भविष्य के लिए सब चिंतित थे कि यदि बात बाहर गई तो कौन करेगा उनकी बेटी से शादी?"

विजेंद्र, राजन और ज्योति भी वहाँ आ गए। शुभांगी रोती ही जा रही थी। रोते-रोते उसने पार्वती काकी से माफ़ी माँगी। उसने कहा, "काकी मैंने तुम्हारी बात क्यों नहीं मानी? मुझे माफ़ कर दो।"

पार्वती ने शुभांगी को चुप कराया और कहा, "चलो बेटा आखिरकार उस पाखंडी की सच्चाई तो सामने आ ही गई, अब फ़िक्र की कोई बात नहीं है।"

शुभांगी ने विजेंद्र की तरफ़ देखा। वह कुछ बोले उससे पहले विजेंद्र ने कहा, "शुभांगी मैंने तुमसे कुछ माँगा था।"

"क्या माँगा था विजेंद्र?"

"अच्छा, क्या तुम्हें सच में नहीं पता?"

बीच में पार्वती काकी बोल पड़ीं, "विजेंद्र ने क्या माँगा मैंने नहीं सुना लेकिन मैं इतना तो समझ गई हूँ कि उसने क्या माँगा होगा। शुभांगी को देखते ही वह उसे अपना दिल दे बैठा था यह भी मैं जानती हूँ। माँ हूँ ना दिल की बात पहचानती हूँ।"

पार्वती काकी ने शकुंतला से कहा, "शकुंतला, मैं शुभांगी का हाथ अपने बेटे के लिए तुम से माँगती हूँ। मेरी खाली झोली को तुम ही भर सकती हो। मैं हमेशा चाहती थी कि मुझे भी भगवान शुभांगी जैसी बेटी देते, वह मेरी इच्छा आज विजेंद्र ने पूरी कर दी।"

शकुंतला और रामदीन ने ख़ुशी से रिश्ता स्वीकार कर लिया। ज्योति को गले लगाकर उसे शकुंतला ने धन्यवाद कहा, " ज्योति बेटा तुमने अपनी जान खतरे में डाल कर गाँव की बेटियों की रक्षा की है।"

"अरे नहीं ऑंटी, यह तो हमारा कर्तव्य था।"

दीनानाथ जी ने भी राजन और उसके साथियों को धन्यवाद कहा। स्वामी के दरबार पर बुलडोजर चला दिया गया। उसके सभी साथी सलाखों के पीछे डाल दिए गए। उस जगह पर लड़कियों के आगे की पढ़ाई के लिए दीनानाथ जी ने एक कॉलेज खुलवा दिया ताकि लड़कियाँ आगे तक की शिक्षा प्राप्त कर सकें और इस तरह की अंधश्रद्धा से मुक्त रह सकें।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

समाप्त