Akele hi aana - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

अकेले ही आना - भाग ६   

अभी तक आपने पढ़ा स्वामी के दरबार से वापस लौटती लड़की से बात करने के बाद विजेंद्र का शक़ यक़ीन में बदल गया। स्वामी पर शिकंजा कसने के लिए उसने अपनी एक महिला सह कर्मी ज्योति को गाँव बुला लिया। आगे क्या हुआ अब पढ़िए: -

दूसरे दिन ज्योति गाँव आ गई। विजेंद्र ने उससे मिलने के बाद उसे स्वामी के विषय में पूरी जानकारी दी और पूछा, "ज्योति, काम ख़तरनाक है लेकिन हम तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे। क्या तुम इस काम में मेरी मदद करोगी?"

ज्योति ने तुरंत ही कहा, "विजेंद्र इस नेक काम को करने के लिए मैं तैयार हूँ। नारी की इज़्जत पर हाथ डालने वाले ऐसे पाखंडी और ढोंगी स्वामी को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी ही चाहिए।"

फैशनेबल, खूबसूरत, बहुत ही मॉडर्न ज्योति आज स्वामी के दरबार में गई। वह सबसे आगे उस जगह पर बैठी जहाँ से स्वामी उसे आसानी से देख पाए। हुआ भी वही स्वामी की नज़रें शहर की गोरी को देख कर उस पर टिक गईं। पूरे गाँव की लड़कियों से एकदम अलग ज्योति को देखते ही स्वामी की लार टपकने लगी।

तभी ज्योति ने खड़े होकर कहा, "स्वामी जी मैं बहुत दूर से आई हूँ, आप का बहुत नाम सुना है। मुझे भी आपका आशीर्वाद चाहिए।"

स्वामी ने ख़ुश होते हुए कहा, "स्टेज पर आ जाओ बेटी।"

ज्योति स्टेज पर गई और जाकर स्वामी के पॉंव छुए। स्वामी के मन में लड्डू फूट रहे थे। उसने कहा, "बेटी मैं तुम्हारे सारे दुःख दर्द ख़त्म कर दूँगा। मैं पूजा का मुहूर्त निकाल कर तुम्हें सूचित करवा दूँगा, तब तुम आ जाना।"

"जी स्वामी जी"

"बेटी पूजा के लिए तुम्हें अकेले ही आना होगा, पूजा लंबी चलेगी। नाम क्या है तुम्हारा?"

"जी मेरा नाम ज्योति है।"

"तुम यहाँ किसके घर पर रुकी हो?"

"रामदीन काका के घर पर। वह तो आपके बहुत बड़े भक्त हैं। उन्होंने ही मुझे आपका नाम बताया है। उनकी बेटी शुभांगी मेरी बहुत अच्छी दोस्त है।

"अच्छा-अच्छा ठीक है" '

रामदीन का नाम सुनकर स्वामी जी बेफिक्र हो गए। विजेंद्र ने सच में भी रामदीन और शुभांगी को कह कर ज्योति को उनके घर पर ही रुकवा दिया था ताकि स्वामी को किसी तरह का भी शक़ ना हो। शुभांगी और ज्योति रात को एक ही कमरे में सोई थीं।

ज्योति ने शुभांगी से पूछा, "कल मैं स्वामी जी के पास आशीर्वाद लेने जाने वाली हूँ, कैसे हैं वह?"

"बहुत अच्छे हैं, देखना वह तुम्हारा हर दुःख दूर कर देंगे।"

"अच्छा, तुमने गाँव की लड़कियों से पूछा कि उनके दुःख दूर हो गए क्या? जिन्हें उन्होंने आशीर्वाद दिया था।"

"हाँ हो गए होंगे पर मेरी किसी से बात नहीं हुई।"

"अच्छा, मैं तुम्हें बताऊँगी मेरा अनुभव, ठीक है?"

"हाँ"

भोली भाली शुभांगी यह नहीं जानती थी कि स्वामी तो कब से उस पर नज़र गड़ा कर बैठा है। वह तो केवल उसके पिता रामदीन जो कि स्वामी के ख़ास भक्त हैं उन्हीं के कारण बची हुई है। रामदीन भी स्वामी की इस दरिंदगी के बारे में कहाँ जानते थे।

दूसरे दिन ज्योति को रात आठ बजे का मुहूर्त बता कर दरबार में बुलाया गया।

ज्योति वहाँ पहुँची तो एक महिला पहरेदार ने उसकी तलाशी ली। उसका मोबाइल और पर्स उससे लेते हुए कहा, "तुम यह सब लेकर पूजा में नहीं जा सकती, पूजा में विघ्न पड़ेगा।"

"ठीक है आप जैसा कहें।"

उसके बाद ज्योति को स्वामी के पास एक छोटे से कमरे में भेज दिया गया, जहाँ स्वामी जी ध्यान लगाकर बैठे थे। छोटा सा मंदिर बीच में रखा था। मंदिर के बाजू में नरम गद्दा बिछा हुआ था। उसे आते देख स्वामी जी की आँखों में चमक आ गई।

"आ जाओ बेटी, यहाँ बैठो मेरे पास। यह लो हाथों में फूल और अपनी आँखें बंद करके मैं जो बोलूं उसी मंत्र का उच्चारण करो।"

"ठीक है स्वामी जी"

ज्योति के चमचमाते कपड़े, खुले बाल और सुंदरता देखकर स्वामी सोच रहा था आज तो कुछ अलग ही अनुभव होने वाला है, जो इससे पहले कभी नहीं हुआ। मंत्र उच्चारण करने के बाद स्वामी ने कहा, "अब फूल चढ़ाओ।"

ज्योति ने फूल चढ़ाने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया, स्वामी ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "अरे उधर नहीं, यह फूल तुम्हें मुझ पर चढ़ाना होगा। वह देखो मंदिर के भगवान मेरे अंदर आ गए हैं। मैं साक्षात भगवान का रूप हूँ।"

"स्वामी जी आप यह क्या कह रहे हैं?"

"जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा ही करो, मेरी तरफ़ घूम कर बैठो। मेरी आँखों में देखो तुम्हें भगवान के दर्शन हो जाएँगे। "

स्वामी की बात मानते हुए ज्योति ने अपना शरीर स्वामी की तरफ़ मोड़ लिया। अब दोनों एक दूसरे के एकदम आमने-सामने थे। ज्योति स्वामी की आँखों में हवस और वासना से लिप्त पाखंडी को देख रही थी। स्वामी नहीं जानता था कि ज्योति की चमचमाती चोली जिसमें अनेक काँच लगे हुए हैं, उन्हीं काँच के शीशों के बीच छोटा सा वीडियो कैमरा छुपा हुआ है। जो स्वामी की दरिंदगी को अपने अंदर कैद करता जा रहा है और यह सब कुछ विजेंद्र के मोबाइल पर दिखाई भी दे रहा है।

स्वामी ने कहा, "मेरी आँखों में देखते रहो।"

स्वामी अपना चेहरा उसके पास लाता जा रहा था। स्वामी के होंठ धीरे-धीरे ज्योति के होंठों के नज़दीक पहुँच गए।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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