अकेले ही आना - भाग ५ Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अकेले ही आना - भाग ५

अभी तक आपने पढ़ा विजेंद्र गाँव की हर लड़की को स्वामी के चंगुल से बचाना चाहता था इसलिए वह दरबार पर कड़ी नज़र रखे हुए था। एक दिन उसने सुबह के लगभग चार बजे एक लड़की को दरबार से निकलकर जल्दी-जल्दी घर जाते देखा। आगे क्या हुआ अब पढ़िए: -

विजेंद्र ने कहा, "देखो तुम शायद मुझे नहीं पहचानतीं मैं…"

"मैं आपको जानती हूँ, आप मुखिया जी के बेटे विजेंद्र हैं। "

"सुनो मैं तुम्हारी और गाँव की सभी लड़कियों की मदद करना चाहता हूँ लेकिन इस काम के लिए पहले मुझे तुम्हारी मदद की ज़रूरत पड़ेगी । तुम यदि सच बता दो कि वहाँ तुम्हारे साथ क्या हुआ तो मैं आगे की कार्यवाही कर सकता हूँ।"

उसने कहा, "यह आप क्या कह रहे हैं? मैं तो सेवा के लिए गई थी।"

"सेवा? कैसी सेवा?"

"नहीं मैं तो पूजा के लिए गई थी।"

"इतनी रात में कौन-सी पूजा होती है, देखो सच्चाई बता दो, मैं किसी को तुम्हारे बारे में कुछ नहीं बताऊँगा। तुम्हारे साथ जो भी हुआ, वह किसी और के साथ ना हो। तुम चाहो तो यह नेक काम कर सकती हो।"

इतना सब सुनकर उस लड़की का सब्र का बाँध टूट गया और वह फफक-फफक कर रो पड़ी।

रोते-रोते ही उसने कहा "विजेंद्र बाबू वे लोग बहुत खतरनाक हैं।"

उसने विजेंद्र को अपनी लुटी इज़्ज़त का हाल सुनाया और कहा, "यह स्वामी आशीर्वाद के नाम पर यही सब करता है लेकिन सभी लड़कियाँ और उनके माँ-बाप स्वामी के डर से और बदनामी के डर से अपने मुँह पर ताले लगा लेते हैं। जब भी बुलावा आता है, जाना पड़ता है। मैं भी आज दूसरी बार…"

विजेंद्र ने उसे दिलासा देते हुए कहा, "मैं तुम्हारा नाम किसी के सामने नहीं आने दूँगा, तुम मेरी बहन की तरह ही हो। तुम बिल्कुल चिंता मत करो, अब तुम्हें कभी इस तरह स्वामी के दरबार नहीं जाना पड़ेगा। मैं सब ठीक कर दूँगा। हमारी इस मुलाकात के बारे में किसी को भी कुछ नहीं बताना। अब तुम घर जा सकती हो "

विजेंद्र के पास पावर था, वह गाँव के धनाढ्य मुखिया का बेटा होने के साथ-साथ एक पुलिस ऑफिसर भी था। इसलिए वह इस काम को अंज़ाम दे सकता था।

शाम को घूमते हुए विजेंद्र को शुभांगी मिल गई।

"अरे शुभांगी कहाँ जा रही हो?"

"विजेंद्र मैं रामदीन काका को अस्पताल ले गई थी, बस अब वापस घर जा रही हूँ।"

"अरे वाह शुभांगी तुम तो लोगों की बहुत मदद करती हो। अच्छा आज मेरी भी एक मदद कर दो। उस दिन मैंने तुमसे एक सवाल किया था पर तुम जवाब नहीं दे पाई थीं। आज उस सवाल का जवाब दे दो। "

"कौन सा सवाल?"

"यही कि तुम्हारे स्वामी बूढ़ी औरतों या लड़कों को आशीर्वाद क्यों नहीं देते?"

"विजेंद्र लड़कियाँ ही तो ससुराल जाकर मार खाती हैं, जला दी जाती हैं। उन्हें अच्छा जीवन साथी और अच्छा परिवार नहीं मिलता इसलिए स्वामी जी लड़कियों पर अपनी कृपा दृष्टि बरसाते हैं। उनके लिए प्रार्थना करते हैं कि उन्हें अच्छा जीवन साथी और अच्छी ससुराल मिले।"

"अच्छा, तो तुम अच्छे जीवन साथी के लिए उनके पास जाती हो?"

शुभांगी ने शर्माते हुए कहा, "हाँ"

"अच्छा तो तुम्हें यदि उनके आशीर्वाद के बिना ही अच्छा जीवन साथी मिल जाए तो क्या तुम वहाँ जाना बंद कर दोगी?"

"कैसे पता चलेगा कि जीवन साथी अच्छा है। वह तो स्वामी जी आशीर्वाद देंगे, तभी मिलेगा ना।"

"शुभांगी एक बात कहूँ?"

"हाँ कहो ना!"

"मैं तुम्हारा जीवन साथी बनना चाहता हूँ, क्या तुम मेरी जीवन संगिनी बनोगी?"

"यह क्या कह रहे हो विजेंद्र! तुम इतने बड़े रईस ख़ानदान के चिराग और मैं एक गरीब घर की बेटी?"

"तो क्या हुआ शुभांगी, मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तुम्हें बहुत अच्छा जीवन साथी बन कर दिखाऊँगा, बोलो क्या तुम तैयार हो?"

"मुझे स्वामी जी से पूछना पड़ेगा विजेंद्र, उनका आशीर्वाद लिए बिना मैं यह फ़ैसला नहीं कर सकती।"

विजेंद्र ने सर पकड़ लिया। वह मन ही मन सोच रहा था कि हे भगवान यह कैसी आस्था है। वह यह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि शुभांगी ऐसा जवाब देगी।

"अच्छा ठीक है शुभांगी, आज ज़रा जल्दी में हूँ, " कह कर वह घर की तरफ़ निकल पड़ा।

इधर शुभांगी मन ही मन फूली नहीं समा रही थी। इतना अच्छा, इतना पढ़ा-लिखा जीवन साथी, इतना बड़ा कुल और हाँ इतनी प्यारी पार्वती काकी। अगले ही पल वह चिंतित हो गई किंतु स्वामी जी? क्या वह उसे हाँ कहेंगे? क्या उसे आशीर्वाद देंगे? हे भगवान विजेंद्र मुझसे प्यार करता है। वह तो यह कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी। काश स्वामी जी मुझे इसके लिए अपना आशीर्वाद दे दें।

उधर घर वापस जाते समय विजेंद्र को इंस्पेक्टर ज्योति की याद आई जो उसके साथ ट्रेनिंग में थी और बहुत ही साहसी लड़की थी। विजेंद्र की उससे अच्छी दोस्ती थी।

उसी दिन शाम को उसने ज्योति को फ़ोन किया। "हैलो ज्योति कैसी हो तुम?"

"हाय विजेंद्र, मुझे कैसे याद किया?"

"अरे वाह ज्योति तुम तो बिना नाम पूछे ही मुझे पहचान गईं।"

"इतना प्यारा दोस्त और इतनी बुलंद आवाज़ भुलाई थोड़ी जाती है।"

"अच्छा ज्योति मैंने तुम्हें एक ख़ास वज़ह से फ़ोन किया है। मुझे तुम्हारी मदद की ज़रूरत है।"

"मेरी मदद?"

"हाँ ज्योति क्या तुम मेरे गाँव आ सकती हो?"

"लेकिन बात क्या है विजेंद्र?"

"वह मैं तुम्हें यहाँ आने के बाद ही बताऊँगा।"

"ठीक है विजेंद्र मैं कल ही आती हूँ।"

"थैंक यू ज्योति।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः