वो गंगा ही तो थी... Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

वो गंगा ही तो थी...

सुलोचना के पति गजेन्द्र फोरेस्ट आँफिसर थे और इस बार उनके साथ वो भी गई,बड़ा सरकारी डाक बंगला था अंग्रेजों के जमाने का, गाँव से कुछ दूर जंगल के पास,उस जगह आदिवासियों की संख्या बहुत ही ज्यादा थी,गाँववालों के तो कुछेक घर ही वहाँ बने थे।।
सुलोचना वहाँ पहुँची तो वहाँ की सुन्दरता में खो सी गई,पास में ही पहाड़ था और उसके बगल से नदी बहती थी,जंगल की सुन्दरता सुलोचना को मंत्रमुग्ध कर गई,उस डाकबंगले में एक आदिवासी लड़की काम करने आती थी जिसका नाम गंगा था,वो सीधी बंगले में घुसती चली गई और ज्यों ही उसने सुलोचना को देखा तो उसके पाँव ठिठक गए और उसने सुलोचना से पूछा।।
तुम कौन हो और यहाँ बाबूसाहब के घर में क्या कर रही हो?
उसकी बात सुनकर सुलोचना बोली....
पहले ये बता कि तू कौन है?
मैं तो यहाँ काम करने आती हूँ,झाड़ू-कटका,बरतन ,खाना बनाना,पानी भरना ये सब काम करती हूँ मैं यहाँ,अब तुम बताओ कि तुम कौन हो?गंगा बोली।।
मैं तुम्हारे बाबूसाहब की पत्नी हूँ,सुलोचना बोली।।
ये सुनकर उसे एक झटका सा लगा फिर स्वयं को सन्तुलित करते हुए बोली....
बाबूसाहब ने कभी बताया नहीं ना! इसलिए पहचान नहीं पाई,माफ करना जीजी! गंगा बोली।।
अरे,वाह! पहली ही मुलाकात मे रिश्ता जोड़ लिया,बड़ी चंट है री तू! सुलोचना बोली।।
अच्छा,बताइए क्या खाएंगीं? क्या पका दूँ? गंगा ने पूछा।।
कुछ भी पका दे अपने बाबूसाहब की पसंद का,मै भी वही खा लूँगीं,सुलोचना बोली।।
गंगा खाना पकाकर और सफाई करके चली गई....
दोपहर में गजेन्द्र अपने काम से लौटा,तो सुलोचना ने बताया कि गंगा आई थी,ये सुनकर गजेन्द्र हिल गया और सुलोचना से पूछा कि क्या कह रही थी?
सुलोचना बोली...
ज्यादा बातें नहीं हुईं हमारे बीच,उसने अपना काम किया और काम करके चली गई...
फिर दोनों ने साथ में खाना खाया और सो गए...
शाम हुई गंगा फिर आई,उसकी आहट सुनकर गजेन्द्र बाहर आया और गंगा से कुछ बातें करते हुए बोला....
खबरदार! जो सुलोचना को कुछ बताया,याद रखना जुबान बंद रहें,नहीं तो मुझसे बुरा कोई ना होगा।।
ये बातें खिड़की से सुलोचना ने भी सुनीं लेकिन माजरा उसे कुछ समझ नहीं आया,वो असमंजस में थी कि दोनों से कैसे पूछे कि क्या बात है ?गजेन्द्र,गंगा को धमका क्यों रहें हैं?
लेकिन वो दोनों से ही ना पूछ सकीं,वैसे भी वो दुख की मारी थी,उसने अभी अभी अपने अजन्मे बच्चे को खोया था और डाक्टर ने भी जवाब दे दिया था कि वो अब कभी दोबारा माँ नहीं बन पाएंगी,इसलिए दोबारा अपने तनाव को बढ़ाना नहीं चाहती थी।।
सुलोचना को यहाँ रहते डेढ़ महीना बीत चुका था,एक दिन काम करते करते गंगा चक्कर खाकर गिर पड़ी ,सुलोचना ने उसे उठाया और तसल्ली दी,पूछा भी कि क्या हुआ?
गंगा बोली...
मेरी तबियत ठीक नहीं है कल से मैं किसी और लड़की को यहाँ काम के लिए भेज दूँगीं.....
अब डाकबंगलें में दूसरी लड़की काम करने आने लगी,उसे काम करते पन्द्रह दिन बीत गए थे,सुलोचना ने उस दूसरी लड़की लाड़ो से पूछा....
अब गंगा की तबियत ठीक है,अगर उसकी तबियत ठीक हो गई हो तो उससे कहना मैने बुलाया है,आकर अपना हिसाब कर ले....
लाड़ो बोली....
जीजी!आपको नहीं पता कि गंगा पेट से है,ना जाने किसका पाप लिए घूम रही है पेट में,अभी तक तो उसकी शादी भी नहीं हुई ,कुछ पूछो तो बताती भी नही है।।
हमारी जात वालों ने उसका हुक्का पानी बंद कर दिया है,गाँववाले उसकी मदद कर रहे हैं।।
ये सुनकर सुलोचना के पैरों तले जमीन खिसक गई और उसने ये बात गजेन्द्र से बताई,उसकी बात सुनकर गजेन्द्र बोला.....
तुम्हें क्या करना है? तुम दूसरों के झमेले में मत पड़ो...
फिर सुलोचना चुप हो गई,ऐसे ही कई महीने बीत गए,एक दिन सुलोचना को गंगा का संदेशा आया....
कि वो जल्द से जल्द उसे मिलना चाहती है,उसके पास ज्यादा वक्त नहीं है।।
सुलोचना संदेशा लाने वाले बच्चे के साथ गंगा के पास चल दी,वो गंगा के पास पहुँची,गंगा उस समय बिस्तर में थी और एक नवजात शिशु उसके बगल में लेटा था...
गंगा ने सुलोचना को देखा तो लरझती आवाज़ में बोली....
तुम आ गई जीजी! ये लो अपनी अमानत,ये बाबूसाहब और मेरे प्यार की निशानी है,उस दिन आपने बताया था ना कि आप माँ नहीं बन सकतीं,इसलिए मैने इस बच्चे को अपनी कोख में सुरक्षित रखा,मारा नहीं,
क्योंकि जब मुझे पता चला कि मैं माँ बनने वाली हूँ तो मैं इस बच्चे को खतम कर देना चाहती थी,क्योंकि बाबूसाहब ने मुझे धमकी दी थी कि मेरे और उनके रिश्ते के बारें में आपको पता नहीं चलना चाहिए,क्योंकि गाँववाले भी सब जानते थे हमारे बारें में,विश्वास ना हो तो तुम इन काकी से पूछ सकती हो।।
गंगा की बात सुनते ही वहाँ मौजूद काकी ने भी कहा कि यही सच है,बेचारी इतने दिनों से सबकी बातें और गालियाँ सुन रही लेकिन जुबान नहीं खोली,आज जाकर सच बताया...
गंगा ने जैसे ही उस बच्चे को सुलोचना को सौंपा तो एक सुकून भरी साँस ली और फिर आँखें फेर लीं...
सुलोचना मौन थी क्योंकि उसे समझ नहीं आ रहा था कि बच्चे की जन्म की खुशियाँ मनाएं या फिर गंगा की मौत का मातम,कितनी आसानी से गंगा ने मेरे पति के पाप को धो दिया वो सच में गंगा ही तो थी ... ।।

समाप्त...
सरोज वर्मा....