अभी पिछले रविवार की बात है,मैं अपने दोस्त के घर गया था,मेरे दोस्त बैंक में मैनेजर हैं और उनकी पत्नी भी घरेलू महिला हैं,उनका बड़ा बेटा मेडिकल का स्टूडेंट हैं और छोटा इन्जीनियरिंग कर रहा है उन्होंने बताया कि दोनों बच्चों की छुट्टियाँ चल रहीं हैं इसलिए अभी घर आ गए हैं ,
मुझे बैंक का कुछ काम था,प्रोसेस समझ नहीं आ रहा थ इसलिए उन्होंने कहा कि घर आ जाओ,आराम से बैठकर समझ लेना तो मैं पहुँच गया उनके घर।।
करीब ग्यारह बजे मैने उनके दरवाज़े की घण्टी बजाई,उनके छोटे बेटे सोमू ने दरवाजा खोला.....
वो मुझे पहचानता है ,मैं पहले भी काफी बार उनके बच्चों से मिल चुका हूँ,लेकिन उनके घर पहली बार आया था,मुझे देखते ही वो बोला....
अरे,अंकल आप! आइए...आइए..अन्दर आइए...
मैं अन्दर पहुँचा तो घर एकदम करीने से सजा हुआ था,बहुत रौनक थी घर में,फिर वो मुझे ड्राइंगरूम में बैठाते हुए बोला...
अंकल! आप यहाँ बैठिए ,मैं अभी पापा को बुलाता हूँ।।
मेरे मित्र बाहर आएं और मेरा स्वागत किया फिर मैं उनसे बातें करने लगा,तभी मैने देखा कि सोमू पहले मेरे लिए पानी लेकर आया और फिर कुछ ही देर बाद चाय और नाश्ता लाकर मेरे सामने रख दिया,मेरे मित्र बोले चाय पीजिए....
मैने चाय पी तो चाय वाकई बहुत बढ़िया बनी थी,हमने चाय खतम की ही तो दरवाजे की घण्टी बजी,सोमू ने जाकर दरवाजा खोला तो उनका बड़ा बेटा मोनू घर का राशन और सब्जियाँ लेकर हाजिर था,उसने भी मुझसे नमस्ते की और दोनों भाई सारा सामान लेकर किचन की ओर चले गए.....
तब मैने मित्र से पूछा....
भाभी जी! कहीं गई हुई हैं जो बच्चे काम कर रहे हैं।।
मेरे मित्र बोले....
जी! उनके भाई का एक्सीडेंट हो गया है और वें मायके गई हुई हैं लेकिन उनके यहाँ रहने पर भी बच्चे ऐसे ही काम करते हैं,उनका घर के कामों में हाथ बँटाते हैं।।
मैं उस समय कुछ नहीं बोला,मैने सोचा उनके घर का मामला है, दखलन्दाजी क्यों करना?
हम दोनों बातें करते रहें साथ साथ मेरा काम भी होता जा रहा था,तभी बड़ा बेटा सोमू किचन से बाहर निकला और मेरे मित्र से बोला....
पापा हम दोनों ने किचन में राशन लगा दिया है,अब ये बताइए लंच में क्या बनेगा?
मित्र! बोले....
आज तुम्हारे अंकल भी यही खाना खाएंगे,कुछ अच्छा सा बना लो।।
मैने कहा....
रहने दीजिए,तकलीफ़ मत उठाइए.....
मित्र बोले.....
ऐसे कैसे? आप पहली बार घर आएं हैं,मेरे बच्चे बहुत अच्छा खाना बनाते हैं,आप एक बार खाकर तो देखिए....
मैने कहा,आप कहते हैं तो ठीक है....
और फिर बच्चे किचन में जाकर खाना बनाने में लग गए....
करीब एक घंटे बाद खाना बनकर टेबल पर लग भी गया और हम दोनों से हाथ धोने को कहा गया,हम दोनों हाथ धोकर जैसे ही टेबल पर बैठे तो खाने की खुशबू से मेरा मन महक गया...
मैने देखा कि दाल,भरवाँ परवल,बूँदी का रायता,प्याज-टमाटर का सलाद,जीरा-चावल,हरी चटनी और रोटियाँ थी,मुझे विश्वास नहीं हुआ कि इतना सब इन बच्चों ने बनाया है,अब मुझसे रहा नहीं गया और मैने मित्र से पूछ ही लिया.....
इस जमाने में तो ये सब काम तो लड़कियांँ भी नहीं करतीं और आपने अपने लड़कों को ये सब सिखाया है...
फिर वो बोले.....
मेरी और मेरी पत्नी की हमेशा से ये कोशिश रही है कि हमारे बेटे संस्कारी बनें,पारिवारिक बनें और कल को हमारी बहुएँ आएं तो उन्हें भी कुछ आराम रहें क्योंकि वो भी तो नौकरी वाली आएंगी,वो भी थककर आएंगीं दोनों मिलकर घर का काम कर लेगें तो लड़ाई झगड़े कम होगें....
क्यों कि हमारे समाज में ये समझा है कि ये काम सिर्फ़ बेटी या बहु के हैं,तो मैने सोचा जब लड़कियांँ हर क्षेत्र में लड़को की बराबरी कर रहीं हैं,उन्हें खाना बनाने से लेकर घर के भी सारे काम आते हैं,बाहर भी तरक्की कर रहीं हैं ,ये नियम सिर्फ़ लड़कियों पर क्यों लागू होते हैं कि खाना बनाना और घर सम्भालना केवल उनका ही काम है,लड़के भी तो हमारी सन्तान हैं तो ये काम उन्हें भी आने चाहिऐ।।
इसलिए हमने बच्चों को ये सब सिखाया है और घर के काम करना कोई बुरी बात तो नहीं जब बहु और बेटियाँ कर सकतीं हैं तो बेटे और दमाद क्यों नहीं?
मुझे उनकी बात सुनकर पहले तो थोड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन फिर लगा ये सही तो कह रहे हैं।।
फिर मैने खाना खाया तो खाना सच में बहुत लज़ीज बना था,मैने उन बच्चों के हाथ का खाना खाकर अपने मित्र से कहा....
बधाई हो! आपको !जो आपने अपने बेटों को ऐसे संस्कार दिए।।
समाप्त......
सरोज वर्मा......