कहाँ जा रही है? अब तो घूमना बंद कर दे ,परसों तेरी शादी है,स्नेहा की माँ शिवकान्ती बोली।।
जाने दो ना माँ! फिर कल से मेरा घर से निकलना बंद हो जाएगा,आज आखिरी बार जाने दो..,स्नेहा बोली।।
तुझे डर नहीं लगता,उस बरगद के पेड़ के पास,शिवकान्ती ने पूछा।।
ना! माँ! आज तक नहीं लगा,तुम और बाकी़ सब लोगों को पता नहीं उस पेड़ पर कौन सा भूत और कौन सी चुड़ैल दिखी,मैं चुपके चुपके वहाँ कई बार रात को भी गई लेकिन मुझे तो कोई ना दिखा,स्नेहा बोली।।
अच्छा! जा बहस मत कर,शिवकान्ती बोली।।
ठीक है माँ! और इतना कहते ही शिवकान्ती चली गई।।
तभी शिवकान्ती के पास बैठी उसकी बड़ी बहन मंजरी जो कि स्नेह की शादी में आई है उसने पूछा....
ये बरगद के पेड़ का क्या माजरा है? शिवकान्ती!
तब शिवकान्ती बोली....
जीजी! स्नेहा के पैदा होने से पहले की बात है,इसी गाँव की एक औरत उस बरगद के पेड़ पर फाँसी लगाकर झूल गई थी,वो बाँझ थी पूरे गाँव वाले उसे ताना मारते थे,उसकी सास ने भी उठते-बैठते उसका जीना हराम कर रखा था,उसका पति उससे बहुत प्यार करता था इसलिए माँ के कहने पर भी उसने दूसरी शादी नहीं की और जब उसकी पत्नी ने फाँसी लगाई तो दूसरी रात वो भी उसी पेड़ पर फाँसी लगाकर झूल गया।
लोंग कहते हैं कि दोनों अभी भी रात को उस पेड़ पर लटके हुए दिखते हैं,लोगों को डराते हैं लेकिन हमारी स्नेहा बचपन से उस पेड़ से मिलने रोज जाती है,उसे कभी कुछ नहीं हुआ,ना जाने उसे कौन सा लगाव है उस पेड़ से।।
ये बड़ी अजीब बात बताई तूने,लेकिन स्नेहा को तुम लोगों ने कभी रोका क्योंं नहीं वहाँ जाने से,मंजरी ने पूछा।।
पहले रोकती थी लेकिन जब देखा कि बच्ची को कोई नुकसान नहीं हो रहा तो फिर जाने दिया,शिवकान्ती बोली।।
दोनों बहनों के बीच यूँ ही बातें होतीं रहीं....
ऐसे ही दो दिन बाद स्नेहा की शादी का दिन भी आ गया,दुल्हन बनी स्नेहा विदा भी हो गई,रेलवे स्टेशन तक वो कार में गई और वहाँ से सबका रात वाली ट्रेन में रिजर्वेशन था,कार में स्नेहा का दूल्हा शोभित बार बार उसे कनखियों से देखकर मुस्कुरा देता लेकिन स्नेहा के तो जैसे आँसू ही नहीं थम रहे थे।।
सबका सेकेण्ड क्लास ए.सी. में रिजर्वेशन था,ट्रेन आते ही सब सामान चढ़काकर अपनी अपनी सीट पर बैठ गए,लगभग रात को नौ बजे सबने खाना खाया और सोने के लिए अपनी अपनी बर्थ पर चादर बिछाकर सो गए,स्नेहा की बड़ी ननद सुखदा उसकी ही बगल वाली लोवर बर्थ पर लेटी थी और शोभित सुखदा की ऊपर वाली मीडिल बर्थ पर था।।
वो वहाँ से स्नेहा को आराम से देख सकता था,अपने नई नवेली दुल्हन को निहारने में उसे बहुत मजा़ आ रहा था,स्नेहा थकी हुई थी इसलिए खाना खाकर सो गई,घर से विदाई के समय ही सुखदा ने स्नेहा की माँ से कह दिया था कि लहंगा चेंज करवा दीजिए,कोई हल्की लाल साड़ी पहनने को कह दीजिए स्नेहा से ,ट्रेन का सफर है,रात को लहंगें में कम्फर्टेबल नहीं लगेगा,तो शिवकान्ती ने ऐसा ही किया,स्नेहा के गहने भी सुखदा ने कम करवा दिए थे।।
रात के करीब बारह बज चुके थे ,शोभित अभी भी जाग रहा था,सारी लाइट्स आँफ थी,तभी अचानक शोभित को लगा कि उसका पैर किसी ने खीचा,उसने ध्यान नही दिया,तभी अचानक उसे किसी ने ट्रेन के फर्श पर पटक दिया,वो गिरा तो सुखदा के साथ और भी लोग जाग पड़े।।
लेकिन शोभित को किसी ने हवा में उछालना बंद नहीं किया वो लहुलुहान होकर बेहोश हो गया,उसे बचाने के लिए और भी लोंग आए लेकिन जो भी उसे बचाने आते वो सब भी जख्मी हो जाते,उस पुरी वोगी में केवल बरातियों का ही रिजर्वेशन था और सारे बराती एक एक करके जख्मी हो गए,फिर शोभित को होश आया और उसने सोचा कि स्नेहा का हाथ पकड़कर वो ट्रेन की चेन खीचकर ट्रेन के बाहर ले जाकर दूसरों की मदद माँगे,क्योंकि केवल स्नेहा बस वहाँ ऐसी थी जिसे कुछ भी नहीं हुआ था।।
लेकिन जैसे ही उसने स्नेहा को छुआ तो उसे किसी ने फिर हवा में उछाला और उसका सिर ट्रेन की छत से जा टकराया,उसके सिर से खून रिसने लगा ,उसे देखकर स्नेहा भी बेहोश हो गई।।
जब उसे होश आया तो उसे पता चला कि उसके पति की मौत हो गई है और ज्यादातर बाराती घायल होकर अस्पताल में भरतीं हैं,लेकिन वो कौन था जो ये सब कर रहा था उसे कुछ समझ नहीं आया,उसने पूरी घटना आँखों से देखी थी इसलिए जब तफतीश हुई तो उसने पुलिस को पूरा वृत्तांत कह सुनाया।।
वो विधवा होकर पुनः अपने मायके लौट आई और उस बरगद के ही पास बैठी रहती,उसे तरह तरह के ताने मिलते कि वो ही अपने पति को खा गई है,कभी कभी ये सुनकर वो पागलों सा व्यवहार करने लगती,सबको लगता था कि इसके ऊपर चुडै़ल आ गई हैं,बरगद वाली चुडै़ल,क्योंकि उसका व्यवहार ही ऐसा हो गया था।
तब शिवकान्ती ने किसी जाने माने तान्त्रिक को बुलाया जो कि मन्दिर में पुरोहित भी थे,उनकी सभी इज्जत करते थे,क्योंकि उन्होंने बहुत से लोगों को भूतों से बचाया था,वे बहुत ज्ञानी थे।।
जब उन्हें स्नेहा से मिलाया गया तो उन्होंने अपनी शक्तियों द्वारा पता किया,तब वें दोनों आत्माएं स्वतः आईं और बोली....
मैं केतकी,मुझे सब बाँझ कहकर बुलाते थे इसलिए मैने फाँसी लगा ली थी और मेरे पति ने मेरे गम में फाँसी लगा ली,उसी पेड़ पर हम दोनों की आत्माएँ भटक रही थीं,सभी हमसे डरते थे,तभी ये बच्ची हमारे पास आने लगी,हमें इससे प्रेम होता गया ,क्योंकि मेरी मौत का का कारण सन्तान ना होना था।।
इसे मैं अपनी बच्ची की तरह मानने लगी,हम कभी भी अपना गंदा रूप इसके सामने लेकर नही आए,ना ही कभी इसे कोई नुकसान पहुँचाया,लेकिन जब इससे शादी करके कोई इसे हमसे दूर ले जा रहा था तो सहन हुआ हम दोनों पति-पत्नी से इसलिए इसके पति को हमने मार डाला।।
जब ये विधवा हो गई तो सब इसे मेरी तरह ताने मारने लगे तब मैने इसके शरीर मे घुसकर लोगों को डराना शुरु कर दिया क्योंकि इस बच्ची का दुख हम दोनों पति-पत्नी नहीं देख सकते।।
तब लोगों को सारी बात समझ आई और फिर स्नेहा को कभी भी उस गाँव से कहीं नहीं जाने दिया गया,स्नेहा की उसी गाँव में दोबारा शादी कर दी गई,उसके बच्चे भी हुए लेकिन स्नेहा कभी भी अपने बच्चों को उस पेड़ के पास ना ले गई।।
समाप्त.....
सरोज वर्मा....