Anokhi Dulhan - 38 books and stories free download online pdf in Hindi

अनोखी दुल्हन - ( बॉयफ्रेंड ) 38

" सुनो। तुम्हारा नाम वीर प्रताप है ? " यमदूत ने पिशाच से पूछा।

" हां तो। तुमसे मतलब ? " वीर प्रताप का मूड़ जूही की वजह से कुछ खास अच्छा नहीं था।

" काफी अच्छा है।" यमदूत ने अपने जूस का गिलास खत्म किया और वह फिर से उदास होकर अपने कमरे में चला गया।

" ऐ किन पागल लोगों के बीच में फस चुका हूं मैं। " वीर प्रताप ने अपने ही हाथों से अपने बाल नौचे।

दूसरे दिन सुबह जूही वीर प्रताप को बताए बिना स्कूल चली गई। इस बात का सीधा साफ मतलब था। उसका गुस्सा अब तक शांत नहीं हुआ है। स्कूल के बाद उसने होटल में अपना काम किया। उसके होटल की मालकिन सनी होटल के एक टेबल पर गुमसुम बैठी हुई थी।

" मैडम ? " जूही ने धीरे से उसे आवाज लगाई।

सनी ने एक नजर उठाकर उसे देखा और सवाल पूछने का इशारा किया।

" क्या हुआ ? अब गुमसुम क्यों लग रही है ? " जुही सनी के पास बैठ गई।

" क्या मैं उदास लग रही हूं ? क्या किसी के ख्यालों में गुम ?" उसके सवाल पर सनी ने 2 सवाल और किए।

" ठीक से देखा जाए तो दोनों।" जूही ने जवाब देते हुए कहा।

सनी ने एक नजर अपने हाथ की अंगूठी पर डाली। " वो अंगूठी तो वापस दे गया। लेकिन अभी भी मैं उसके ख्यालों में खोई हूं।" सनी में एक साथ छोड़ी।

" वो अंगूठी कितनी प्यारी है। मानो आपके हाथों के लिए ही बनी हो। आप उससे फिर मिली थी ?" जूही ने सनी से सवाल किया।

" मिलना तो था ही। सोचा था मिलकर एक बार अपनी चीज़ उस से वापस ले लूं। फिर सब ठीक हो जाएगा। लेकिन मैं गलत थी।" सनी ने फिर से अपने अंगूठी को देखा।

" मुझे भी आपको एक बात बतानी है। ‌ मतलब मुझे कुछ पूछना था दीदी। क्या मैं आपको दीदी बुला सकती हूं ?" जूही ने हिचकीचाते हुए पूछा।

" तुम प्रेग्नेंट हो ? कौन है वह ? कहीं तुम्हें छोड़कर भाग तो नहीं गया ?" सनी ने अचंभे से पूछा।

" यह कैसी बातें कर रही हैं आप ? इनमें से कोई भी बात नहीं है।" शर्म के मारे जूही का चेहरा लाल हुआ जा रहा था।

" देखो। जब लड़कियां कहती है, कि मुझे किसी चीज में सलाह चाहिए। तो अक्सर ऐसी ही बातें होती है। इसीलिए मैंने सोचा। छोड़ो जाने दो बताओ तुम्हें क्या पूछना है ?" सनी ने पूछा।

" अगर मैं कहूंगी कि मेरी शादी पहले ही किसी से तय है। तो क्या आप मानेंगी ?" जूही ने पूछा। सनी बस उसे घुरे जा रही थी। " यूं समझ लीजिए जब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था। तब से यह शादी तय है।"

" ठीक है। इसमें परेशानी क्या है ? माना अरेंज मैरिज पुरानी फैशन है। लेकिन फिर भी कई लोग करते हैं। क्या तुम्हें लड़का पसंद नहीं है ? या फिर तुम्हारा बाहर कहीं चक्कर चल रहा है ?" सनी ने फिर से अपने अनुमान लगाए।

" ऐसी भी कोई बात नहीं है। लड़का अच्छा है। दिखता भी अच्छा है। हमारी उम्र में थोड़ा अंतर है। लेकिन यूं समझ लीजिए कि अगर वह मुझसे अभी शादी करना चाहे। तो मुझे क्या करना चाहिए ? मैं अभी शादी के लिए तैयार नहीं हूं।" जूही ने कहा।

" क्या वह तुमसे प्यार करता है ?" सनी ने पूछा।

सनी का सवाल सून जूही फिर से उस वक्त में चली गई। जब वीर प्रताप उसे होटल के कमरे में लेने आया था। जूही ने भी उससे यही सवाल पूछा था। " क्या तुम मुझसे प्यार करते हो ?" जवाब सिर्फ इतना मिला। " अगर तुम चाहो तो प्यार भी कर लूंगा। आई लव यू।" उस बात को याद करके जूही की आंखों में आंसू आ गए।

अपने सवाल का जवाब सनी को जूही के बोले बिना मिल गया। उसने जूही के कंधे पर हाथ रखा। " बिना प्यार के कोई रिश्ता, रिश्ता नहीं होता। प्यार और शादी की कोई उम्र नहीं होती। जब तुम्हारा दिल करे तुम्हें उसके बारे में सोचना चाहिए। ‌ तुम शादी कब करना चाहोगी ? यह पूरी तरीके से तुम्हारा निर्णय है। बस इतना याद रखना कि तुम जिस से भी शादी करो उसके और तुम्हारे बीच प्यार होना चाहिए।" इतना कह सनी ने जूही के सर पर से हाथ फेरा।

अपना काम खत्म कर जूही होटल से निकली। वीर प्रताप ने जूही को फोन किया था। लेकिन जूही ने फोन उठाना जरूरी नहीं समझा। जूही की नाराजगी अब उसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। जूही जब होटल से घर आइ तब वीर प्रताप उसके सामने बैठा था। जूही ने एक नजर उसे देखा। वीर प्रताप को लगा था कि जूही अब उससे बात करेगी। लेकिन जूही मुंह फेर सोफे पर कपड़े फोल्ड कर रहे यमदूत के पास जाकर बैठ गई।

" हेलो‌। गुड इवनिंग।" जूही ने मुस्कुराते हुए कहा।

" गुड इवनिंग।" यमदूत ने अभी उससे बात की।

जूही ने जमा किए हुए कपड़ों में से एक टॉवल लिया और उसे ठीक से फोल्ड करना शुरू किया। " इस घर में मुझे हमेशा तुम अकेले ही काम करते हुए क्यों दिखाई देते हो ?" उसने यमदूत से पूछा।

" यहां पहले से ही ऐसा होता है। पता नहीं मेरे आने से पहले लोग कैसे रहते थे।" यमदूत ने उसे जवाब दिया।

" यहां का मालिक काफी पैसे वाला है। उसे यह सब काम करने की जरूरत नहीं। तुम्हारे आने से पहले उसके सारे कपड़े अच्छे तरीके से फोल्ड और इस्त्री करके उसके कमरे में खुद पहुंच जाते थे।" वीर प्रताप ने पास में बैठे हुए जवाब दिया।

यमदूत और जूही दोनों ने उसकी बातों पर ध्यान ना देना ही सही समझा।

" पता नहीं तुम यहां किस तरीके से एडजस्ट कर लेते हो। यहां के लोग कितने बेरूखे हैं नहीं ?" जूही के इस सवाल पर यमदूत ने जवाब ना देना ही सही समझा।

यमदूत ने साफ कपड़ों की टोकरी में से जूही का स्कार्फ उठाया फोल्ड किया और उसे दिया।

" शुक्रिया।" जूही ने उस लाल रंग के स्कार्फ को लिया। अपने चेहरे पर लगाया और फिर से अपने पास में रख दिया।

" क्या यह वही स्काफ है। जो मैंने तुम्हारे गले में देखा था 10 साल पहले जब हम पहली बार मिले थे ?" यमदूत ने पूछा।

" हां सही। यह वही है। ‌इसे मेरी मां ने खुद अपने हाथों से बनाया था। जब मैं उनसे कहती थी कि मुझे आत्माएं दिखाई देती है। उन्हें यकीन नहीं होता था। उन्हें लगता था कि मेरे गले पर बने उस अजीब निशान की वजह से मेरे साथ यह सब हो रहा है। तो उन्होंने मुझे यकीन दिलाया कि अगर मैं उस निशान को ढक दूंगी। तो मेरे साथ हो रही ए अजीब घटनाएं बंद हो जाएंगी। इसलिए उन्होंने यह स्कार्फ बना कर मेरे गले में डाला। लेकिन कोई असर नहीं हुआ। फिर भी उनकी तसल्ली के लिए मैं हमेशा इसे अपने पास रखती थी। अब जब भी इसे पहनती हू लगता है कि मां हमेशा आसपास है।" जूही ने अपनी आंखें पोंछी।

अब वीर प्रताप सोफे के पीछे खड़ा था। यमदूत ने उसे कुर्सी पर ढूंढा। फिर जब उसने सोफे के पीछे देखा। " इसे 50,000 दे दो।"

" कितनी बार कहा कि मेरे बीच में मत बोला करो।"वीर प्रताप ने यमदूत पर गुस्सा दिखाते हुए कहा। " और तुम। स्टूडेंट हो ना। जाओ जाकर पढ़ाई करो। फिजूल की बातें करने के लिए तुम्हें यहां नहीं रखा है।" उसने जूही की तरफ देखते हुए कहा।

" मैं घर में रह रही हूं। तो यहां पर रह रहे लोगों से बातचीत करना नॉर्मल बात है।" जूही ने वीर प्रताप को नजरअंदाज कर यमदूत से कहा। जिस पर यमदूत ने भी हां में गर्दन हिलाई।

" अगर ठीक से आंखें खोल कर देखोगी। तो तुम्हें मेरे सीने में तलवार दिखाई देगी और जिसे तुम दूसरा इंसान गीन रही हो ना, वह खुद इंसानों को मारने वाला यमदूत है।" वीर प्रताप ने फिर से जूही से कहा। इसके बाद भी उसे जूही से कोई जवाब नहीं मिला। " जिस तरह की मेहनत तुम करती दिखाई दे रही हो ना। इस उम्र में तो तुम्हारा रेडियो प्रोड्यूसर बनना नामुमकिन है।"

" ओ तो तुम रेडियो प्रोड्यूसर बनना चाहती हो ?" यमदूत ने पूछा।

" हां । इसी के लिए तो मेहनत कर रही हूं इतनी।" जूही ने यमदूत को जवाब दिया। जिससे कि वीर प्रताप का गुस्सा और बढ़ गया।

" ऑल द बेस्ट। तुम यकीनन बहुत अच्छी रेडियो प्रोड्यूसर बनोगी।" यमदूत ने जूही से कहा और अपने कपड़े फोल्ड करने वाला काम जारी रखा।

" शुक्रिया।" जूही ने फिर उसे जवाब दिया।

" हेलो अंधी हो क्या ? रेडियो प्रोड्यूसर वाली बात मैंने निकाली थी उसे क्या जवाब दे रही हो।" वीर प्रताप ने जूही से पूछा।

" तो तुमने नाम के बारे में कुछ सोचा ?" जूही ने फिर यमदूत से पूछा।

" नहीं। अब तक तो नहीं।" यमदूत।

" मुझे यकीन है। जल्दी तुम्हें कोई अच्छा नाम मिल जाएगा। किसी जलन से भरे हुए इंसान से तो कई ज्यादा अच्छा नाम।" जूही ने वीर प्रताप की तरफ देखते हुए कहा।

" ये जलन से भरा हुआ किसे कह रही हो ? मैं तुम्हें यहां लेकर आया हूं और तुम मेरा ही मजाक उड़ा रही हो। शर्म नहीं आती ?" वीर प्रताप ने जूही से पूछा।

" ठीक है। अगर तुम यही चाहते हो तो यही सही।" जूही अपनी जगह पर से उठी और वीर प्रताप के सामने खड़ी हो गई। " जब तुम मुझसे ऐसी बातें करते हो तब ? रेडियो प्रोड्यूसर नहीं बन पाओगी। तुम्हें अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं मिलेगा। तब तो तुम्हें शर्म नहीं आती ? तुम्हारी इन कड़वी बातों की वजह से तुम्हारे सीने में तलवार है।" जूही ने वीर प्रताप के सीने की तरफ इशारा करते हुए कहा।

" मेरे बारे में ऐसी बात ! तुम्हें सच में शर्म नहीं आती मेरे घाव पर नमक लगाते हुए।" वीर प्रताप ने जूही से पूछा।

" इतनी सी बात तुम्हें चुभ रही है और जो मुझे कहा था उसका क्या ? उधार की जिंदगी है जब तक मिल रही है जी लो। तुम कोई अनोखी दुल्हन नहीं हो खाली सपने देखना छोड़ दो। कुछ याद आया ?" जूही ने वीर प्रताप की तरह एक्टिंग करते हुए कहा।

" नासमझ लड़की। मैं तुम्हें बचा रहा था। अनोखी दुल्हन होना क्या है ? यह तुम्हें अब तक पता भी नहीं है। हर बार तुमसे कड़वी बातें कह कर तो मैं तुम्हें बचा रहा था।" वीर प्रताप इस बार सच में गुस्से में था।

" मुझे बचा रहे थे। अगर यही सच है तो बताओ यह किसकी गलती है कि मैं आत्माओं को देख सकती हूं ? यह किसकी गलती है कि मेरे गले पर वह अजीब निशान है‌ ? " जूही ने अपने गले का निशान दिखाते हुए पूछा।

वीर प्रताप ने बाल उपर करके उस के गले का निशान ठीक से देखा। " किसे अजीब निशान कह रही हो ? कितना प्यारा निशान है।"

" जो मैं नहीं मांगती हूं वह दे देते हो और जो मैं मांग रही हूं उसका तो कहीं कोई अता पता नहीं है। जब हम मिले थे तब मैंने सीधे साफ कहा था। मुझे एक नौकरी चाहिए मासी के घर से छुटकारा और एक बॉयफ्रेंड। बताओ कहां है मेरा बॉयफ्रेंड ‌‌? किस तरह के गार्डियन एंजेल हो तुम जो मेरी इच्छाएं पूरी नहीं कर सकते।" जूही भी पूरे तरीके से गुस्से में थी।

" कौन सी इच्छा पूरी नहीं की तुम्हारी ? तुमने जो मांगा मैंने ज्यादा अच्छी तरीके से दिया है।" वीर प्रताप ने कहा।

" अच्छा तो बताओ कहां है मेरा बॉयफ्रेंड ? कहां है ? मुझे तो कहीं नहीं दिख रहा।" जूही ने घर में यहां वहां देखते हुए वीर प्रताप से पूछा।

" यह क्या है ? यह रहा। तुम्हारे सामने।" वीर प्रताप ने जूही के करीब जाते हुए कहा।

जूही ने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन उसके पास शब्द नहीं थे। दोनों ने एक दूसरे को कुछ पल के लिए देखा। शर्म के मारे दोनों के चेहरे लाल हुए जा रहे थे। दोनों दौड़ के अपने कमरे में चले गए ‌‌।

यमदूत ने दोनों को देखा। " तो अब इन दोनों की बात यहां तक पहुंच गई है।" यमदूत ने फोल्ड किए हुए कपड़ों से भरी हुई टोकरी उल्टी कर दी। " और मेरी कहानी तो एक नाम पर आकर खत्म हो गई है।"

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