इश्क. - 7 om prakash Jain द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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इश्क. - 7

शेखर मेडिकल कॉलेज पहुँचता हैं।रुम नम्बर306 में सिम्मी मरीज बन कर बेड में लेटी हुई है।और खिडकी की बाहर अमरूद की पेड़ में नजर टिकाई हुई है उस पेड़ में दो चिड़या को आँख मिचौली करते हुए देखती है।वेदांत के याद में खो जाती है।और कई हसीन सपनें दिन में ही देखने लगती है।सिम्मी वेदांत के इश्क में पागल हो चुकी है।अपने आप में बाते करने लगती है।मैं बड़ा भाग्यशाली औरत हुँ कि वेदांत जैसा महान व्यक्ति के अर्धांगनी बनूँगी।मैं एक गाँव की भोली -भली सूरत वाली लड़की हूं।मैं चकाचौन्द की दुनिया से अनभिज्ञ हूँ।मोनिका के बारे में उस सज्जन को कुछ ज्यादा ही बोल डाला ,मुझे नहीं बोलना था।मैं बहुत घमंडी हूँ।मोनिका को मैं देखी भी नहीं ।आंखों से आँशु निकलने लगा।इसी वक्त शेखर का रूम नम्बर 306 में प्रवेश होता है।
भाभी आप इस हालत में ये सब कैसे हुआ।
मुझे कुछ नहीं कहना ,मेरी ही गलती है शेखर, वेदांत से लड़ने निकली थी महारानी लक्ष्मीबाई बन कर ।
क्यों ??
प्यार के ख़ातिर दिवानगी बन कर ,मर गई होती मुझे वेदांत कभी माफ़ नहीं करता ।शुक्र है भगवान का बाल- बाल बच गई।
वेदांत से बात की तुम ने
नहीं ...
वेदांत भाई तुम्हारी बहुत ख़्याल रखते हैं और तुमसे बेहद प्यार भी।पर एक नम्बर की झोलटु राम है।
तुम वेदांत के बारे में बकबक करने लग गए।यही बात मुझे समझ नहीं सका और पसंद भी नहीं।तुम दोनों की दोस्ती इतनी गहरी कैसे है।
नफ़रत है ,नफ़रत है उस कमीने से।
शेखर चलो मुझे वेदांत के पास ले चलो उनके सीने से लिपट कर रोऊँगी, मेरा मन हल्का लगेगा।माफी भी माँग लूँगी।
किस चीज की माफ़ी
अस्पताल है कोई देख लेगा तो क्या समझेगा।चल देवर जी।अपने भैया के पास।
अच्छा एक मिनट रुक जाइये वेदांत को फोन करता हूँ ।इस हालत में सूटिंग के स्पॉट पर नहीं जा सकते हैं ।आज बहुत बवाल हुआ है।
वेदांत ठीक तो हैं ना शेखर।
ठीक है।घर चल कर बताता हूँ चलो ।आप के बाबूजी को भी तो सूचना देना है।एक्सिडेंट हो गया है।
सिम्मी गुस्से से -नहीं ,शेखर चलो ,उसका हाँथ पकड़ कर चलो यहाँ से ।घर गई तो बहुत डांट पड़ेंगे।मैं अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाऊँगी।
शेखर स्कूटी वेदांत की बंगले तक ले जाने की प्रबंध करता है।सिम्मी भाभी को लग्ज़री कार में बिठा कर वेदांत की बंगले के लिए रोड पर गाड़ी दौड़ने लगती है।सिम्मी को लगजरी कार में बैठ कर सुखद अनुभूति होता है।और वेदांत के बंगले की कल्पना करता है।कार हिचकोले मारने लगा ।सिम्मी डरी ,सहमी हुई। शेखार से --
कार धीरे चलाना बाबा मुझे बहुत डर लग रहा है।
भाभी डरो मत ,डर को मन से निकाल दीजिए।बस दो मिनट घर पहुँच जाएंगे।सिम्मी की दिल की धड़कन तेज होने लगी ।कई विचार उनके मन में चलने लगे ।बैचलर हैं, घर तो कव्वाड़ी ही होगा ।किचन न जाने कितने दिनों से साफ सफ़ाई नहीं हुआ होगा ।बॉथ रूम बदबू मार रहा होगा।बिस्तर ,सोफा ठीक ठाक है या नहीं क्या जाने ।बेचलरो को जानता हूँ ।बीबी के इंतजार में बेकाबू रहते हैं ।बस दिखाने के लिए कपड़े और गाड़ी सूट बूट ही असली है।बाहर से ही अच्छे दिखते हैं ।अंदर से बड़े लाफ़रवाह रहते हैं ।
भाभी ,वेदांत नालायक का झोपड़ी पहुँच गया ।
अरे ये किसी के बहुत बड़ा बंगला है।तुम पागल हो गए हो क्या??किसी से मार खिलाओगे ।
खा लेंगे क्या होता है भाभी।कर बंगले के मेन गेट में पहुंचा, कार की हॉर्न बजते ही दरबान ने लग्जरी गेट खोलने आगे लपका ।सिम्मी को कुछ समझ नहीं आया जोर से चिल्लाई शेखर .....तुम किसके घर ले जा रहे हो..रुक जाओ।बेजत्ति करवाओगे क्या।
कार से उतर कर शेखर ने डोर खोला ,पहली चरण सिम्मी के वेदांत के देहरी में लक्ष्मी का शुभ आगमन।दोनों कुछ कदम चल कर घर के प्रमुख दरवाजे में पहुचें सिम्मी साइलेंट है।रज्जु काका गंगा जल तांबे के पात्र में लेकर और एक हाँथ में दीपक की आरती लिए खड़े है।एक सागोन लकड़ी की बहुत सुंदर बनी पीढ़ा भी रखा गया है।सिम्मी ये सब देख कर उसके मगज में कुछ नहीं आता है।शेखर को बड़े प्यार से पंच कर कहती है।
देवर बाबू ये सब क्या हो रहा है।मुझे समझ नहीं आ रही है।तुम मेरा कोई सीन की सूटिंग की प्रैक्टिस तो नहीं।
भाभी,धैर्य हो कर सौम्य रहिये।सब आप को मालूम हो जाएगा।ये हमारे रज्जु काका है।सगे नहीं तो क्या हुआ।काका, सिम्मी के सरीर में गंगा जल छिडकता है और मंत्र भी पढ़ता है ।फिर आरती उतार कर घर में प्रवेश करने की इशारा करता है।सिम्मी घर के अंदर प्रवेश करती है।सामने एक सामान्य आंगतुकों की बैठक कमरा है।और आगे एक भब्य हॉल है।सिम्मी देख कर चकित हो जाती है।कितना सुंदर,कई कलाओं से सजावट बहुत कीमती धातुओं की मूर्तियां है।बहुत ही लक्जरियस फर्नीचर,कीमती क्लॉथ सोफे और दीवान में बिछे है।झूला भी और कई प्रकार के दृश्यों वाली तस्वीर ,और फिल्मों की मैडल,पुरस्कार ,समारोह की फ़ोटो दीवार में टंगा हुआ है।सिम्मी ये सब देखते ही रह जाती है।सिम्मी की नजर वेदांत की तस्वीर पर टिक जाता है।काका काफी,चाय ,बिस्कुट ले कर आता है।शेखर बाथ रूम फ्रेश होने गया है। काका ,सिम्मी से कहता है--बेटी शेखर ने सब कुझ तुम्हारी बारे में बता चुका है।तुम इस घर की लक्ष्मी बन कर आई हो।तुम्हारी बड़ाई वेदांत के मुख से भी प्रसंशा सुन लिया हूँ।बहुत खुसी की बात है।वेदांत ने बहुत सुंदर ,सुशील योग्य बहू ढूंढा है।और वेदांत की पसंद लाखों में एक है।बेटी तुम वेदांत के रूम में चल कर दवाई ले कर आराम कर लो।जब तक वेदांत आता ही होगा।साथ लंच करना।
नहीं काका ,मेरी मांग की सिंदूर नहीं है। वेदांत और मैं एक दूसरे को चाहते है।मेरे पिता जी जब तक राजी नहीं हो जाता शादी नहीं हो पायेगा।और हैम लोग बहुत गरीब है ।मैं गांव की अनाड़ी ,गवार लड़की हूँ।रस्ते चलते वेदांत से जान पहचान और प्यार हो गया ।मैं वेदांत की इश्क में दीवानी हो गई हूं ।
अच्छा है ,वेदांत बेटा भी तुम्हारे इशक़ में दीवाना हो चुके है।नींद में बड़बड़ाने लगते हैं ।अब तो दिन में जागते हुए ही तुम्हारी सपने देखा करता है।महान भुल्लक्कड़ हो गया है।वेदांत और शेखर तुम को ढाल बना कर लड़ते रहते हैं ।जल्दी शादि कर लो वेदांत से ।
हाँ काका, पिता जी से बात करूंगी।
तुम चिंता मत करना ,शेखर जुगाड़ू है तुम्हारे माता पिता को पटा लेगा ।और वेदांत सम्पन ब्यक्ति और चरित्रवान भी। सिम्मी वेदांत के तारीफ़ सुन कर अधीर हो जाती है।वेदांत में घमंड की लेस मात्र भी नहीं ।
शेखर, काका को खाना लगाने को कहता है ।जब तक अपने सिम्मी भाभी को वेदांत का घर और उनके पर्सनल रुम दिखता है।अवाक रह जाती है।
यैसा घर में कभी भी नहीं देखा है।बहुत कीमती होगा।
भाभी ,हमारे भैया आज कल भूलने लगे है।उसे पैसे कौड़ी का हिसाब किताब याद नहीं रहता ।पागल हो गया है जंगली ।
मेरे वेदांत को यैसे क्यों कहते हो।मुझे सहा नहीं जाता ।
भाभी छत्तीशगढ़ का सबसे बड़ा फ़िल्म मेकर है ।बहुत पैसे है वेदांत के पास ।और राज सर बॉम्बे काम करने ऑफर के ऊपर ऑफर दे चुके हैं ।एक जुहू में बंगला भी रहने के लिए देने वाले है।
अरे देवर जी मजा आ जायेगा मैं राज सर का बहुत बड़ा फेन हूं। वेदांत अभी तक नहीं आया।
आ जायेगा सूटिंग में ब्यस्त होगा।बेचारा क्या करेगा मर -मर काम करते रहता है।
काका-खाना लग गया है।डाइनिंग टेबल में खाना सजा है ।सिम्मी -वेदांत आ जाये साथ खाहूंगी।शेखर से कहती है ।
तू भूखी मर जाएगी।उसके चक्कर में ।
बेटी शेखर ठीक ही कहा रहा है।खा लो।
आप कहते है तो काका खा लेती हूं ।मेरा मन नहीं हो रहा है।