भूतिया मंदिर - 3 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भूतिया मंदिर - 3

अब आगे ….

अंधेरा का घेरा कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था पर फिर भी
वह चारों पहाड़ पर बिना किसी दिशा देखे चल पड़े ,
सबसे खराब बात यह थी कि उनमें से किसी के मोबाइल
में नेटवर्क नही था , यहां पहाड़ पर नेटवर्क कहाँ ,
नेटवर्क हो तो पुलिस को तो फोन ही किया जा सकता
था ।
और एक अजीब सा डर उनके अंदर आ गया था
और न जाने बीच -बीच में नितिन अजीब हरकत कर
रहा था , कभी कहता ' चलो उस मंदिर में चले ' कभी
कहता ' हम सब मर जायेंगे ' तो कभी ' तुम सब के
मांस का स्वाद बहुत अच्छा होगा ' ।
उसकी ये बातें मजाकिया भी लगती और डरावनी
भी पर उन्हें ज्यादातर मजाक ही लगा ।
मोबाइल के टोर्च से देख देख कर उस अंधेरी रात
में वह चारों पहाड़ों पर बढ़ने लगे , पर किस ओर बढ़
रहें हैं इसका कोई अता - पता नही ।
उनकों हर समय यह लगता मानो उनके साथ कोई
और भी पीछे पीछे चल रहा है , पर वहां हवा के अलावा
और कुछ नही होता । उन चारों को एक बहुत ही बुरी
गंध घेरे हुई थी मानो कोई मरा हुआ सड़ रहा हो ।
विशाल बोला – यार ये कैसा गंध है? , जैसे कुछ सड़
रहा है , जब से मंदिर से बाहर आया हूँ यही गंध जैसे
चारों तरफ फैला हुआ है ।"
शुभम और विनय एक साथ बोले –" हाँ यार , यह गंध
मेरा भी दिमाग खराब कर रहा है ।"
पर नितिन बोला – " तुम सब भी ऐसे ही सड़ जाओगे । "
यह सब सुन विनय गुस्से में बोला – " तुम साले दारू पी
लिए हो क्या ? , जो कब से अनाब-शनाब बके जा रहे
हो , एक तो तुम दोनों के मंदिर में चलो , चलो की वजह
से अब अंधेरे में भटक रहे हैं , और साला तुमको अलग
ही मजाक चढ़ी है । "
विनय ने इतना बोला ही था कि विशाल चिल्ला उठा –"
अरे वो देखो आग जल रही है और लालटेन लटकी हुई
है वहां नीचे कुछ घर के जैसे लग रहा है ।"
यह देख उनकी जान में जान आयी किसी तरह वह चारों
नीचे उतरे वहां एक नही कई पहाड़ी छप्पर के घर थे ।
वह जैसे ही वहां पहुँचे तो देखा कई लोग आग जला
बाहर बैठे हुए थे ।
वहां के लोग उन्हें अजनबी की तरह देखने लगे पर एक
आदमी उठ कर बोला –" बेटे तुम सब यहां कैसे । "
विनय बोला – " काका हम सब पहाड़ों में खो गए हैं
अंधेरा होने के कारण , अब हम अपने होटल तक कैसे
पहुँचे । "
वह आदमी बोला – " देखो बेटा , घूमने आए लोगों का
होटल पहाड़ के उस पार है और अब तो रात हो गई
है और अब वहां कोई नही जाएगा । "
विशाल बोला –" तो काका हम क्या करें ? "
वह आदमी बोला – " आज रात यहीं हमारे पास ही
ठहर जाओ कल सुबह मेरे लड़के बाला के साथ
चले जाना । "
विनय – " काका बहुत बहुत धन्यवाद ।"
" कोई बात नही बेटा , खुदा हमारी मदद करतें हैं ऐसे
ही हम भी तो मदद कर ही सकतें हैं । " काका बोले ।
अब रात की ठंडी भी पड़ रही थी तो वहीं बाहर आग
के पास सब बैठ गए ।
काका बोले –" अरे बाला , अपनी माँ से कह कुछ लोग
आये हैं जरा दाल और रोटी चढ़ा दे । "
फिर उनसे बोले –" बेटा क्या है न हम सब खा चुके हैं
तुम सब तो भूखे होंगे ।"
विशाल बोला – " क्यों परेशान हो रहें हैं , हमारा पेट भरा
है ।"
बाला भी उन चारों के साल का ही था वह सुबह जाकर
गर्म कपड़े और लकड़ियों से बने कई सुंदर सामान वहां
पर्यटकों को बेचता था और उसके पिता , जो कि अब
उन चारों के काका हो चुके थे वह भी वहीं काम करते
थे उसी से उनका घर चलता , केवल वह ही नही
वहां के आसपास के सभी यही काम करते थे ।

काका बोले – " बेटा तुम सब इन पहाड़ों में क्यों इतनी
रात में रुक गए ।"
विनय बोला –" अरे काका वो ऊपर एक जंगल में एक
पुराना मंदिर देखने लगे उसी में देर हो गई । "
काका घबराकर बोले – " कौन वो जंगल वाली बड़ीकाली
माता मंदिर ।"
विनय बोला – " हाँ काका वही । "
यह बात हो ही रही थी कि नितिन धड़ाम से खटिये से
नीचे जा गिरा वह एक बार फिर न जाने क्यों बेहोश हो
गया सब उसे उठाने में लग गए , उसे उठा फिर खटिये
पर लेटाया उसका पूरा शरीर बर्फ की तरह ठंडा था
मानो उसके अंदर जान ही न हो । फिर नितिन को वहीं
एक कम्बल ओढ़ा दिया ।
विनय बोला – " शायद इसे बुखार हो गया है , शाम
से यह दूसरी बार बेहोश हुआ है । "
काका बोले – " बेटा क्या तुम सब उस मंदिर के
अंदर तो नही गए थे , वह जगह बहुत ही खतरनाक
है । "
वह हाँ में जवाब देने वाले थे पर खतरनाक वाली बात
सुन विशाल बोला – " अरे नही काका हम तो केवल
उसे देखने गए थे , देखकर चले आये । "
काका बोले – " अच्छा किया । "
शुभम बोला – " पर उस मंदिर खतरनाक क्यों है । "
काका बोले – " वह अशुभ जगह है , सब ऐसा मानतें
हैं और वहाँ कोई नही जाता । "

तभी नितिन एकाएक भयानक आवाज में चिल्ला
उठा और छटपटाने लगा , शुभम और विनय ने उसे
पकड़ा वह न जाने कैसे कैसे आवाजें निकल कर
कुछ कह रहा था फिर एकाएक ठीक हो गया
मानो उसे कुछ हुआ ही नही है ।
नितिन बोला – " तुम सब मुझे क्यों घूर रहे हो , क्या
हुआ ? "

विशाल बोला – " नौटंकी साला , अभी तो बेहोश
हुआ था और अब बोल रहा है क्या हुआ । "
नितिन फिर से एकदम ठीक था यह देख विनय ने
कुछ नही बोला पर उसे यह लग रहा था कि कुछ
तो गड़बड़ है नितिन के साथ, मंदिर में जाने के बाद
अब वह सामान्य नही था , और काका के अनुसार
वह मंदिर एक खतरनाक जगह है , पर विनय ने
ज्यादा ध्यान नही दिया ।

तब तक खाना बन कर भी आ चुका था ।
दाल और मोटी मोटी रोटी काकी ने बनाया था ,
रात के 9 से ज्यादा बज रहे थे और उन्हें भूख भी
लगी थी तो चारों खाने पर टूट पड़े , वो सामान्य
से दाल रोटी उनकी सोच से ज्यादा लजीज और
स्वादिष्ट थे ।
काका बोले – " बेटा यही रूखा सूखा है , इसी से
पेट भर लो । ईश्वर ने इतना ही दिया है । "
विनय बोला – " अरे काका यही बहुत है हमारे लिए
और ये बहुत ही स्वादिष्ट है ।"
" चलो तुम सब को अच्छा तो लगा ।"
विशाल बोला – " काका एकदम मस्त है ।"
नितिन बोला – " यहां मांस नही बनती क्या ? , पर
यह भी अच्छा है । "

यह सुन सभी हँस पड़े ।

और कुछ ही देर में खाना समाप्त हुआ फिर कुछ देर
आग तापने के बाद वहीं पास में एक जगह पर वह चारों
लेट गए ।बाला और काका भी अंदर सोने चले गए ।

विनय बोला – " शुभम कभी सोचा था कि हम यहां
ऐसे सोएंगे ।"
शुभम बोला – " ऐसे अच्छे लोग अब कहाँ भाई , इस
जालिम दुनिया में ।"
विशाल गहरी सांस लेते हुए बोला – " जिंदगी में फिर
कभी नैनीताल आऊंगा तो यहां काका से मिलने जरूर
आऊंगा ।"
"हाँ यार ।।"

पहाड़ों पर घूमने की वजह से वह सब थके हुए थे
तो लेटते ही नींद ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया ।
और शीतल रात उन्हें अपने सपने में ले गई ।

शुभम की नींद खुली , उसने मोबाइल में देखा तो
सुबह के साढ़े चार बजने वाले थे । उसे जोरों की
पेशाब लगी थी वह उठ कर बाहर आया तो एक
बार शुभम को लगा कि कोई बाहर खड़ा है पर जैसे ही उसने देखा तो वह चीज एक साया के धुंआ की तरह उसके सामने से उड़ गई , उसे लगा कि कोई वहम है । फिर वह पेशाब करने लगा पर जब उसने पीछे देखा तो फिर कोई खड़ा था
उसने हड़बड़ाहट में मोबाइल का फ्लैश जलाया तो
आगे देख उसके उसके होश उड़ गए वह नितिन था पर वह जमीन से एक हाथ ऊपर उठा हुआ था उसका सर ऊपर आसमान की तरफ था और मुँह खुला हुआ था । फिर वह गायब हो गया ।
शुभम घबराया अपने दोस्तों को यह बताने के लिए
उस ओर बढ़ा जहां सब सो रहे थे ।…………

… कहनी क्रमशः ..