मुझे तुम याद आएं--भाग(४) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मुझे तुम याद आएं--भाग(४)

सत्या फार्महाउस आया और काशी का इन्तज़ार करे लगा और उधर काशी ने सोचा कि ऐसा ना हो छोटे मालिक अभी भी रामाधीर के घर में बैठे हो इसलिए जा पहुँचा उन्हें खोजते रामाधीर के घर और बाहर से आवाज़ देते हुए बोला.....
रामाधीर.....रामाधीर भाई! कहाँ हो?
अरे,काशी ! आओ....आओ...भीतर आओ,बड़े दिनों बाद दर्शन दिए,रामाधीर ने कहा।।
क्या करूँ भाई? फार्महाउस से फुरसत ही नहीं मिलती,काशी ने भीतर जाके जवाब दिया।।
बिटिया! जरा अपने काका को पानी तो पिला,रामाधीर बोला।।
हाँ!बापू! अभी लाई,इतना कहकर कजरी पानी लेने चली गई।।
क्या हुआ ? लेटे क्यों हो? तबियत ठीक नहीं है क्या? काशी ने रामाधीर से पूछा।।
हाँ,भाई!कल से तबियत ज्यादा खराब है,यहाँ कोई अस्पताल भी नहीं है और ना कोई डाक्टर के तबियत दिखा ली जाए,रामाधीर बोला।।
इसलिए तो हमारे सेठ जी यहाँ आसपास ही एक नया अस्पताल बनवा रहें है,जहाँ हम गरीबों का इलाज मुफ्त किया जाएगा,काशी बोला।।
हाँ,अभी सुन्दर आया था उसने बताया,कजरी बोली।।
वो सुन्दर नहीं सत्यसुन्दर है,सेठ जी के बेटे जो अभी विलायत से डाक्टरी पास करके आएं हैं वही तो इस अस्पताल को चलाएगे,काशी बोला।।
काशी की बात सुनकर दोनों बाप बेटी दंग रह गए लेकिन काशी से कुछ ना कहा,बस कजरी इतना ही पूछ पाई....
तो क्या वो सेठ जी का बेटा है? कजरी ने पूछा।।
हाँ! अच्छा! तो मैं चलता हूँ ,वो फार्महाउस में हमारा इन्तज़ार करते होगें,काशी बोला।।
ठीक है आते रहा करो अच्छा लगता है,रामाधीर बोला।।
ठीक है भाई ! फिर कभी आता हूँ और इतना कहकर काशी चला गया।।
काशी के जाते ही रामाधीर ने कजरी से कहा.....
मैने कहा था ना कि आजकल के जमाने में किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए,देखा ना तूने काशी क्या बोला।।
हाँ! बापू तुम ठीक ही कहते थे,अब मैं तुम्हारी बात को हमेशा ध्यान रखूँगी,कजरी बोली।।
मुझे पता है कि मेरी कजरी बहुत समझदार है,रामाधीर बोला।।
और उधर फार्महाउस में सत्या काशी का इन्तज़ार कर रहा था,तभी काशी उसे आता हुआ नज़र आया....
काशी ने सत्या को देखा तो उसके पास जाकर पूछा.....
आप अब तक गए नहीं,छोटे मालिक!
बस,काका!घर जाने ही वाला था,आपका इन्तज़ार कर रहा था ,तो मैं चलता हूँ, सत्या बोला।।
अरे,छोटेमालिक! आप रामाधीर के घर गए थे और उससे बता भी दिया कि आप अस्पताल खोलने वाले हैं,काशी बोला।।
तो क्या आपने सबकुछ बता दिया?सत्या ने पूछा।।
बस यही बताया कि आप सेठ जी के बेटे हैं और विलायत से डाक्टरी पढ़कर आएं हैं और यहाँ एक अस्पताल खोलने वालें हैं,काशी बोला।।
ये आपने क्या किया काका? सत्या बोला।।
क्यों क्या हुआ ?छोटे मालिक! हमने कोई गलती कर दी क्या? काशी ने पूछा।।
कुछ नहीं काका! सब गड़बड़ हो गई,सत्या बोला।।
क्या हुआ ? हमें भी तो बताइए,काशी बोला।।
कुछ नहीं काका! बाद में बताऊँगा,अभी मैं जाता हूँ और इतना कहकर सत्या घर चला आया....
घर आकर उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था,उसे परेशान देखकर कल्याणी ने पूछा .....
क्या बात है?तू इतना उदास क्यों लग रहा है रे?
कुछ नहीं माँ! बस थोड़ा थक गया हूँ,सत्या बोला।।
ठीक है मैं तेरे लिए चाय बनाती हूँ और गरमागरम प्याज के पकौड़े भी ,इतना कहकर कल्याणी चाय बनाने चली गई।।
चाय पीकर सत्या अपने कमरे में चला आया और बिस्तर पर लेटकर सोचने लगा कि कजरी मेरे बारें क्या सोच रही होगी कि कितना झूठा हूँ मै,अब मैं कल उससे क्या कहूँगा? पता नहींअब वो मुझसे बात करेंगी भी कि नहीं।।
रात भी हो गई लेकिन सत्या अपने कमरें से बाहर ना निकला,तभी कल्याणी ने आवाज दी.....
सत्या! चल नीचे आजा बेटा! खाना तैयार है,तेरे बाबूजी बुला रहे हैं...
आया ....माँ! बस आया,सत्या ने कहा।।
सत्या चुपचाप नीचें आया,आधा अधूरा सा खाना खाया और ऊपर फिर से अपने कमरें की ओर चला गया,उसे देखकर सेठ जानकीदास जी बोले.....
कल्याणी! क्या होता जा रहा है इसको?
कूछ नहीं,मैं तो कहती हूँ कि कोई अच्छी सी लड़की ढूढ़कर इसका ब्याह रचा दो तो अपने आप सब ठीक जाएगा,कल्याणी बोली।।
जिन्द़गी में पहली बार कोई अच्छी राय दी है तुमने,सेठ जानकीदास जी बोले।।
अच्छा!मतलब मैं तो जैसे दुनियादारी जानती ही नहीं,कल्याणी बोली।।
तुम तो रूठ गई,मेरा वो मतलब नहीं था,सेठ जानकीदास जी बोले।।
मैं सब समझती हूँ कि आपका क्या मतलब था?कल्याणी बोली।।
अरे,तुम भी ना! मेरी बात सुनों,अभी कल ही मैं सेठ बद्रीनाथ जी से मिला,बहुत मिलें हैं उनकी कपड़ों की,सुना है उनकी एक बेटी है,तुम कहो तो बात चलाऊँ रिश्ते की,सेठ जानकीदास जी बोले।।
अभी रहने दो जी! अभी तो इतने सालों बाद विलायत से लौटा है,कुछ दिन मुझे भी अपने बच्चे के साथ रह लेने दीजिए,बहु के आने के बाद और अस्पताल खुलने के बाद वो कहाँ मेरे साथ समय बिता पाएगा,कल्याणी बोली।।
ये भी तुम सही कहती हो,जानकीदास जी बोले।।
समय आने पर सब हो जाएगा,ज्यादा परेशान होने की जुरूरत नहीं है,मैं उसे दूध देकर आती हूँ,ठीक से खाना भी नहीं खाया आज उसने,पता नहीं क्या सोचा करता है? कल्याणी बोलीं।।
अरे,जवान बच्चा है,रहने भी दो,इस उम्र में बहुत कुछ होता है सोचने के लिए ,सेठ जानकीदास जी बोले.....
आप शायद सही कह रहे हैं,कल्याणी बोलीं.....
और ऐसे ही उस दिन रात बीत गई,सुबह हुई लेकिन सत्या के मन की उलझनें और भी बढ़ गई थीं,वो सोच रहा था कि वो कैसे कजरी से बात करेंगा,उसका झूठ कहीं कजरी के मन में उसके लिए कड़वाहट ना भर दें,फिर भी वो सारी उलझनों को एक ओर रखकर फार्महाउस की ओर रवाना ही हो गया।।
फार्महाउस पहुँचा,उसने अपने कमरें में किताबें रखीं और बाहर बगीचे की ओर जाने लगा,काशी गौशाला में काम कर रहा था,उसने सत्या की मोटर की आवाज़ सुन तो ली थी लेकिन उस समय वो अपना काम अधूरा छोड़कर ना पाया,लेकिन जब सत्या बाहर आया उसने सत्या के पास जाकर पूछा...
छोटे मालिक! कहाँ चले?
बस,थोड़ा बगीचें की ओर जा रहा था,सोचा आज वही किसी पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई कर लूँ,सत्या बोला।।
ठीक है लेकिन कुछ देर में वापस आ जाइएगा,अभी आपकी काकी कुछ दिन और गाँव से नहीं आएगी,इसलिए कुछ खाना हो तो मैं आपके लिए बनाकर रखूँगा,काशी बोला।।
काका! जो आप खाऐगे,मैं भी वो ही खा लूँगा,सत्या बोला।।
मैने तो अपने लिए बैंगन भूने थे,सोचा भरता बना लूँ,ताजी छाछ थी तो तड़का लगा लूँगा और साथ में दो चार रोटियाँ बना लूँगा और अगर आप कुछ और खाना चाहें तो बना दूँ,काशी बोला।।
ना..ना..मैं ऐसा ही सादा खाना खाता हूँ,मेरे लिए काफी है,मेरा इन्तज़ार मत कीजिएगा आप खाना खा लीजिएगा,सत्या बोला।।
ठीक! है छोटे मालिक,काशी बोला।।
तो मैं बगीचें होकर आता हूँ और सत्या इतना कहकर बगीचे चला आया....
एक आम के पेड़ के नीचे बैठकर वो अपनी किताब पढ़ने लगा लेकिन उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था उसका ध्यान तो कजरी में था क्योंकि वो अभी तक नहीं आई थी तो सत्या को लगा कि वो शायद नाराज है,इसी उधेडबुन में बैठा वो बार बार किताब के पन्ने इधर-उधर पलट रहा था।।
तभी उसे कोई आहट सुनाई दी,उसे लगा कि शायद कजरी आ गई.....
उसने पास जाकर देखा तो गिलहरी थी जो सूखें पत्तों पर चल रही थी,वो उदास होकर फिर से पेड़ के नीचे आकर बैठ गया...
तभी फिर से आहट हुई सत्यसुन्दर ने सोचा गिलहरी ही होगी और इस बार वो अपनी जगह से नहीं उठा,लेकिन इस बार सच में कजरी ही थी....
कजरी ,सत्या के पास आकर बोलीं....
आ गए सत्यसुन्दर बाबू! मसखरी तो बहुत अच्छी कर लेते हो....
माफ कर दो कजरी! मैने तुमसे झूठ बोला ,
माँफी क्यों माँगते हो बाबू! ये तो तुम अमीरो का काम होता है,गरीब लोगन की मजबूरी का फायदा उठाना,कजरी बोली।।
ऐसा ना कहो कजरी! मैं डर गया था कि कहीं तुम मुझे अमीर समझकर बात ही ना करो,सत्या बोला।।
तो तुमने धोखा दिया,कजरी बोली।।
इसे धोखा नहीं डर कहो,सत्या बोला।।
गरीब आदमी से क्यों डरते हो बाबू! डरना तो हम गरीबन को चाहिये,कजरी बोली।।
वो सब तो ठीक है,लेकिन तुमने ये कैसे जाना कि मैं ही हूँ,सत्या ने पूछा।।
तुम्हारे इतर की खुशबू से,तुमने उस दिन भी तो यही इतर लगाया था,कजरी बोली।।
अच्छा,तो ये बात है,तुम्हारी नाक बहुत तेज है,सत्या बोला।।
भगवान ने आँखें तो दी नहीं तो कुछ काम नाक को भी करने पड़ते हैं,आँखें होतीं तो तुम धोखा कैसे दे पाते बाबू? कजरी बोली।।
कैसीं बातें करती हो कजरी? सत्या बोला।।
सच्ची तो कहतीं हूँ,कजरी बोली।।
अस्पताल खुल जाने दो,तुम्हारी आँखों की रोशनी भी आ जाएगी,सत्या बोला।।
सच बाबू! कजरी खुश होकर बोली।।
हाँ! ये बताओ! तुम्हें बचपन से ही दिखाई नहीं देता था या बाद में किसी चोट लगने के कारण ऐसा हुआ,सत्या ने पूछा।।
बाबू! बचपन में तो दिखाई देता था,लेकिन जब सात आठ साल की थी तो जो गाँव का पहाड़ हैं ना तो वहाँ बापू बकरियाँ चराने जाते थे,मैं भी एक दिन उनके साथ चली गई,बापू के मना करने पर भी ऊँचाई तक चढ़ती चली गई और फिर मेरा ऐसा पैर फिसला कि वहाँ से लुढ़क पड़ी,लुढ़कते लुढ़कते नीचे के एक छोटे पहाड़ से जा टकराई,मुझे उस पहाड़ ने नीचे लुढ़कने से तो रोक लिया लेकिन मेरा सिर उस छोटे पहाड़ से जा टकराया और मैं बेहोश हो गई,बाद में होश आने पर पता चला कि मैं अब देख नहीं सकती,तब मेरी माँ जिन्दा थी,उसने बहुत तसल्ली दी,कजरी बोली।।
ओह....तब तो तुम्हारी आँखें ठीक हो सकतीं हैं,सत्या बोला।।
सच कहते हो बाबू! कजरी बोली।।
हाँ,एकदम सच! सत्या बोला।।
तो क्या मैं देख पाऊँगीं,कजरी ने पूछा।।
और क्या सबकुछ! पूरी दुनिया,ये पंक्षी,ये आकाश,ये पेड़ ,ये फूल,सबकुछ,सत्या बोला।।
बाबू! तुम्हें भी देखना चाहूँगीं,कजरी बोली।।
लेकिन मुझे क्यों? मैं तो झूठा इन्सान हूँ,सत्या बोला।।
तुम झूठे नहीं हो नेकदिल हो,कजरी बोली।।
लेकिन अभी तो कुछ देर पहले तुम मुझसे नाराज थी,सत्या बोला।।
तुम्हारी सच्चाई पता नहीं थी ना मुझे,कजरी बोली।।
और अब पता हो गई सच्चाई,सत्या बोला।।
हाँ!बाबू! अब मैं तुम्हें कभी गलत नहीं समझूँगीं,कजरी बोली।।
तो फिर मुझसे दोस्ती करोगी,सत्या ने पूछा।।
हाँ! करूँगी दोस्ती,कजरी बोली।।
तो ठीक है,सत्या बोला।।
तो अब मैं फूल तोड़ लूँ,फिर घर भी जाना है,कजरी बोली।।
मुझसे क्या पूछ रही हो तोड़ लो फूल,सत्या बोला।।
बाबू! तुम यहाँ के मालिक हूँ इसलिए पूछ रही हूँ,कजरी बोली।।
मैने कहा ना हम अब दोस्त हैं,सत्या बोला।।
ठीक है तो मै फूल तोड़ लेती हूँ और इतना कहकर कजरी फूल तोड़ने लगी और सत्या भी उसकी मदद करने लगा।।

क्रमशः.....
सरोज वर्मा......