मुझे तुम याद आए--भाग(१) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मुझे तुम याद आए--भाग(१)

अरी,भाग्यवान! सत्या कहाँ है?नाश्ते का समय हो गया है और साहबजादे अभी तक फरार हैं,सेठ जानकी दास जी बोले.....
अरे,सुबह-सुबह निकल गया था,पता नहीं क्यों नहीं लौटा अब तक?,कल्याणी ने टेबल पर नाश्ता लगाते हुए कहा....
वैसे नाश्ते में क्या बनाया है?सेठ जानकीदास ने कल्याणी से पूछा।।
वही आपकी पसंद के गोभी-आलू के पराँठे ,प्याज वाला रायता और हरी चटनी,कल्याणी बोली।।
वाह..भाई...वाह आज तो मज़ा ही आ जाएगा नाश्ते का,लेकिन ये सत्या कहाँ?उसके आने तक पराँठे ठण्डे हो जाएंगे,सेठ जानकी दास जी बोले।।
ए..जी! उसकी चिन्ता मत कीजिए,वो कह रहा था कि नाश्ते में वो घी के पराँठे नहीं खाएगा,उसने नमकीन दलिया बनाने को कहा तो बना दिया और बोल रहा था कि कुछ फल काट देना,उसी का नाश्ता करेगा,कल्याणी बोली।।
ये क्या है जी?विलायत से डाक्टरी पढ़कर आने पर तो उसके मिजाज़ ही बदल गए,सेठ जानकीदास जी बोले....
विलायत से पढ़कर आया है तो कुछ रंग तो विलायत का चढ़ेगा ही,कह रहा था वहाँ सब ऐसा ही उबला हुआ खाते है,तले और मसालेदार खाने से तो वो कोसो दूर रहते हैं,तभी तो वो हल्के रहते हैं,कल्याणी बोली।।
अरे,कहीं दलिया और फलों से शरीर में जान आती है,ये तो बीमारों वाला खाना है,फल तो हम लोंग चलते फिरते ऐसे ही एकाध किलो खा जाते हैं,हम तो घी और पराँठे बचपन से खाते आ रहे हैं,हमें तो आज तक कुछ ना हुआ,सेठ जानकीदास जी बोले।।
अरे,वो नए जमाने का लड़का है और फिर कुछ नए तौर-तरीकें वो विलायत से भी सीखकर आया है,आप क्यों बुरा मानते है?कल्याणी बोली।।
मैं कहाँ बुरा मान रहा हूँ?अच्छी बात है कि वो नए तौर-तरीकें सीख रहा है,सेठ जानकीदास बोले।।
दोनों पति-पत्नी बातें ही कर रहे थे कि तभी बँगलें के गेट पर मोटर आकर रूकी....
लगता है सत्या आ गया,कल्याणी बोली।
तभी सत्या घर के भीतर दाखिल होते हुए बोला....
माँ! मैं नहाकर आता हूँ,मेरा नाश्ता लगा दो...
क्यों साहबजादे? सुबह सुबह कहाँ हो आए?सेठ जानकीदास ने सत्या से पूछा।।
वो बाबूजी! सोचा सुबह सुबह कुछ वर्जिश कर आऊँ,इसलिए रामदयाल बाग चला गया था सैर करने,वर्जिश करने से सेहद अच्छी रहती है,मैं तो कहता हूँ कि आप भी मेरे साथ चला कीजिए,आपकी सेहद में सुधार होगा,सत्या बोला।।
रहने दे ये चोचले! भला मेरी सेहद को क्या हुआ है?,सेठ जानकीदास बोले।।
ये जो आपकी तोंद है ना! दिनबदिन तरक्की कर रही है उसके लिए,सत्या बोला।।
अरे,ये तो खाते-पीते घर की घर की निशानी है,सेठ जानकीदास बोले।।
यही तोंद तो बिमारियों की जड़ है,आपको विलायत में कोई भी तोंद वाला नहीं दिखेगा,सत्या बोला।।
रहने दे विलायत की बातें,मुझे सब मालूम है कि गोरे लोंग कैसे होते हैं?सेठ जानकीदास जी बोले।।
बाबू जी! उनका जीवन ब्यवस्थित होता है,उनके अपने नियम कायदे है जिनका वें सख्ती से पालन करते हैं,सत्या बोला।।
ज्यादा गुणगान मत कर विलायत के ,मुझे सब मालूम है,सेठ जानकीदास बोले।।
नहीं,बाबूजी! आपको कुछ नहीं मालूम ,वो हमारी तरह रिश्तों में बँधे हुए नहीं रहते,सत्या बोला।।
जा! जाकर नहा ले,मुझे ज्ञान मत सिखा,वे क्या जाने रिश्तों के बारें में? वहाँ की मेमों का पहनावा देखा है तूने!आधा बदन खुला ही रहता है,सेठ जानकीदास जी बोले।।
लेकिन बाबूजी! वहाँ की महिलाओं को कितनी आजादी है,पढ़ने लिखने की,घूमने फिरने की,नौकरी करने की,यहाँ तक अपना जीवन साथी चुनने की भी,सत्या बोला।।
सुन मुझे तेरा विलायत-पुराण नहीं सुनना,तेरी माँ ने नहीं,मुझे उसके घरवालों ने चुना था,फिर भी वो मेरे साथ खुश है कि नहीं,सेठ जानकी दास जी बोले।।
लेकिन अगर यहाँ भी विलायत की तरह होने लगे तो कितना अच्छा हो?सत्या बोला।।
तेरा दिमाग़ फिर गया है,हमारे यहाँ जो जैसा है बहुत अच्छा है,हमारी परम्पराओं के लिए ही हमारा देश पूरे संसार में जाना जाता है,वो लोग घटिया है और उनकी परम्पराएं भी,सेठ जानकीदास जी बोले।।
वे घटिया नहीं हैं बाबूजी! उनके भीतर सच्चाई को स्वीकारने की क्षमता है जो हम में नहीं है,सत्या बोला।।
कौन सी सच्चाई? वहाँ तो महिलाएं भी खुलेआम शराब पीतीं हैं,तो क्या हम भी हमारे देश की महिलाओं को शराब पिलाना शुरू कर दें,सेठ जानकीदास जी बोले।।
मैने ऐसा तो नहीं कहा,बस वहाँ की कुछ अच्छी चीजों को अपनाने में तो कोई बुराई नहीं है,सत्या बोला।।
चुप कर नालायक! क्या विलायत से यही सीखकर आया है,लगता है ज्यादा पढ़ने से तू भ्रमित ह़ो गया है,सेठ जानकीदास जी बोले।।
बाबूजी! जिसे आप भ्रम कह रहे हैं,वो सच्चाई है,सत्या बोला।।
सुनिए! अब बहस बन्द भी कीजिए ना! सत्या भूखा होगा,कल्याणी बोली।।
मैं बहस कर रहा हूँ,अपने लाड़ले को क्यों नहीं समझाती?बाप को ज्ञान देने चला है,सेठ जानकीदास जी बोले।।
सत्या ! चल तू नहाने जा,तब तक मैं तेरा नाश्ता टेबल पर लगाती हूँ,कल्याणी बोली।।
कल्याणी की बात सुनकर सत्या नहाने चला गया....
ए..जी! क्यों उलझते हो जवान लड़के से?ये क्या आपको शोभा देता है?कल्याणी बोली।।
मैं नहीं वो उलझ रहा था मुझसे,सेठ जानकीदास जी बोले।।
अच्छा! ठीक है,अब शान्त भी हो जाइए और आज दफ्तर नहीं जाना क्या?कल्याणी बोली।।
हाँ...नाश्ता करके जाता हूँ,अरे सत्या से कुछ जुरूरी बात करनी थी,लेकिन मैं तो भूल ही गया...सेठ जानकीदास जी बोले...
मुझे बता दीजिए,मै उससे कह दूँगी,कल्याणी बोली।।
सत्या अस्पताल खोलना चाहता था ना! तो उसके लिए जमीन का इन्तजाम हो गया है,कहो तो कल ही जमीन देखने चलें,सेठ जानकीदास जी बोले।।
ठीक है,मैं उससे कह दूँगी,कल्याणी बोली।।
ठीक है तो मैं दफ्तर के लिए निकलता हूँ,रात के खाने पर इस विषय पर बात होगी,सेठ जानकीदास जी बोले।।
ठीक है,कल्याणी बोली।।

तो ये था सेठ जानकीदास जी परिवार,जानकीदास जी बहुत बड़े व्यापारी हैं,इनकी कपड़ो की कई मिलें हैं और भी छोटे मोटे व्यापार है,इनकी पत्नी कल्याणी और इनका इकलौता बेटा सत्यसुन्दर है,जो कि अभी अभी विलायत से डाक्टरी करके लौटा है और अपना खुद का अस्पताल खोलना चाहता है,जहाँ वो गरीबों को मुफ्त इलाज देगा,सेठ जानकीदास भी उसके इस नेक काम में उसकी मदद करना चाहते हैं,वो बहुत आदर्शों वाले पारम्परिक व्यक्ति हैं,अपने देश की परम्पराओं को वो सबसे अच्छा मानते हैं और इसी बात को लेकर बाप बेटे में हमेशा जंग छिड़ी रहती हैं,जब जंग ज्यादा बढ़ जाती है तो कल्याणी को उन दोनों के बीच आना पड़ता है बीच-बचाव करने,बस ऐसा ही हँसता खेलता परिवार है सेठ जानकीदास जी का।।

रात के खाने के समय....
चलिए जी! खाना लग गया है और सत्या तुझे अलग से कहना पड़ेगा क्या?कल्याणी ने दोनों को आवाज़ दी।।
अभी आया माँ! सत्या बोला।।
और सत्या खाने के टेबल पर पहुँचा.....
खाना देखकर सत्या फौरन बोला....
ये क्या माँ? कितनी बार कहा है कि मेरे लिए हल्का खाना बनाया करो,देखों तो ऐसा लग रहा है कि सब्जियाँ तेल और मसाले के तालाब में गोते लगा रही हो,सत्या बोला।।
तेरे बाबूजी को तो ऐसा ही खाना खाने की आदत है,लेकिन तू चिन्ता मत कर,जो ये दो बरतन हैं ना जरा इनका ढ़क्कन तो उठा,मैने तेरे लिए एकदम सादी लौकी की सब्जी और पतली मूँग की दाल बनाई है,कल्याणी बोली।।
ओह...मेरी अच्छी माँ! तुम कितनी प्यारी हो,सत्या बोला।।
अच्छा! अब चल बैठ ,ये तेरे बाबू जी कहाँ रह गए? कल्याणी बोली।।
आया! भाग्यवान! कुछ सबर रखो,सेठ जानकीदास जी टेबल की ओर आते हुए बोले....
चलिए बैठिए,मैं खाना परोसती हूँ,कल्याणी बोली।।
तब सत्या ने जानकीदास जी से पूछा....
अच्छा! बाबू जी! तो जमीन कहाँ मिली आपको?
अरे,शहर से बाहर अपने फार्महाउस के पास जो अपना बगीचा है ना! उसके पास एक जमीन है,वहीं पास में एक छोटा सा गाँव भी है,वो जमीन बिकाऊ है अगर तू कहे तो कल ही चलते हैं वो जमीन देखने,सेठ जानकीदास जी बोले।।
जी बिल्कुल! नेकी और पूछ पूछ,मै तो चाहता हूँ कि जल्द से जल्द अस्पताल बन जाए,सत्या बोला।।
कल्याणी! तुम भी संग चलना,कल फार्महाउस मे ही दिन बिताऐगें,सुबह कुछ नाश्ता तैयार करके पैक कर लेना,सुबह सुबह ही निकलेगें जमीन देखने ,जानकीदास जी बोले।।
जी,बहुत अच्छा! मै सब तैयार कर लूँगी,कल्याणी बोली।।

और दूसरे दिन सुबह सुबह सब जमीन देखने निकले, फार्महाउस पहुँचे तो वहाँ का नौकर काशी मोटर के पास आकर बोला....
मालकिन ! आप भी आईं हैं,इतने दिनों बाद।।
हाँ,रे आ गई और सिमकी कहाँ हैं? कल्याणी ने पूछा।।
वो तो कल ही गाँव चली गई,माई की तबियत ठीक नाहीं थी,काशी बोला।।
कोई बात नहीं,कल्याणी बोली।।
तो क्या खाएगीं नाश्ते में? हम जल्दी से तैयार किए देते हैं,काशी बोला।।
ना काशी! मै नाश्ता साथ में लाई हूँ,बाद में कुछ चाहिए होगा तो बोल दूँगी।।
तो फिर हम जाते हैं,काशी बोला।।
ठीक है काशी! कल्याणी बोली।।
फिर सबने साथ में लाया हुआ नाश्ता किया,सेठ जी बोले.......
मैं थोड़ी कमर सीधी कर लेता हूँ।।
सत्यसुन्दर बोला.,
ठीक बाबूजी! आप आराम कीजिए मैं तब तक बगीचा घूमकर आता हूँ।।
और इतना कहकर सत्यसुन्दर बगीचे में चला आया.....
सत्यसुन्दर बगीचे के भीतर घुसा ही था कि किसी लड़की की आवाज आई....
कौन है?...कौन हैं वहाँ? लगता है कि फूल चुराने आए हो....
नहीं जी! भला मैं क्यों फूल चुराऊँगा? सत्यसुन्दर बोला।।
तो यहाँ क्या कर रहो हो? उस लड़की ने सत्यसुन्दर के सामने आकर पूछा।।
उस लड़की का रूप देखकर एक पल को सत्यसुन्दर मौन रहा फिर बोला,
जी! मैं तो यहाँ घूमने चला आया था,
झूठ मत बोलो! तुम ये मत समझना कि मैं अन्धी हूँ तो मुझे मालूम नही चलेगा कि तुम वही फूल चोर हो जो रोज बगीचे के फूल चुराकर ले जाते हो,वो लड़की बोली।।
सत्यसुन्दर को जब ये पता हो गया कि वो अन्धी तो बोला...
मैं गरीब आदमी हूँ,जब खाने को नहीं होता तो फूल चुराकर बेच देता हूँ,सत्यसुन्दर बोला।।
सच में तुम बहुत गरीब हो,उस लड़की ने पूछा।।
हाँ,सच में ,कल से पेट में अन्न का एक दाना नहीं गया,सत्यसुन्दर बोला।।
तो मुझे माफ कर दो,तुम फूल तोड़ सकते हो,मैं कुछ ना कहूँगी,वो लड़की बोली।।
बहुत बहुत धन्यवाद,सत्यसुन्दर बोला।।
धन्यवाद कैसा? तुम भी गरीब ,मैं भी गरीब,मैं और मदद तो नहीं कर सकती तुम्हारी लेकिन इतना तो कर ही सकती हूँ,वो लड़की बोली।।
अच्छा! नाम क्या तुम्हारा? सत्यसुन्दर ने पूछा।
कजरी....कजरी नाम हैं मेरा,कजरी बोली।।
और तुम्हारा नाम क्या है? कजरी ने सत्यसुन्दर से पूछा।।
मेरा नाम सुन्दर है,सत्यसुन्दर बोला।।
तुम कुछ काम नहीं करते क्या? कजरी ने पूछा।।
कोई काम ही नहीं देता,सत्यसुन्दर बोला।।
अच्छा! तो ये बात है,मैं अब जाती हूँ,बापू राह देखते होगें,फिर बाजार भी तो जाना है फूल बेचने,कजरी बोली।।
तो तुम यहाँ रोज फूल तोड़ने आती हो,सत्यसुन्दर ने पूछा।।
हाँ,फूल ना तोड़ू तो गुजारा कैसे हो? बापू मिट्टी के बरतन बनाते है,उससे खर्चा नहीं चल पाता,कजरी बोली।।
लेकिन तुम तो देख नहीं सकती तो फूल कैसे तोड़ती हो? सत्यसुन्दर ने पूछा।।
खुशबू से...फूलों की खुशबू से पहचान लेती हूँ,कजरी बोली।।
अच्छा लगा तुमसे मिलकर,सत्यसुन्दर बोला।।
मुझे भी अच्छा लगा,अच्छा अब मै चलती हूँ और इतना कहकर कजरी बगीचे से चली गई....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....