इत्तेफाक - अंतिम भाग Jagruti Joshi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इत्तेफाक - अंतिम भाग

ओर रात तीन बजे निकल गये कुलदेवी के दर्शन के लिए। छे बज गए थे सब चाय पानी के लिए कोई ढाबे पर रुके तब अचानक मासा को याद आया की वो पालना तो घर ही भुल गई। अब आधे रास्ते से सब लोग वापस जा नही सकते तो ,
बाबा सा ने कहा की शैलराज आप गाडी लेके चले जाओ ओर आराम से सुबह निकल ना तबतक हम ट्रेन से माता के द्वार पहुचते है । राज घरके लिए निकल गया।
वो आराम से गाडी चला रहा था करीब साडे नो बजे राज घर पहुंच गया , अपने रुम मे जाके फ्रेश होकर वो भाभी के कमरे गया ओर सारी बात बताई और पूछा की मा की अलमारी की चाबी कहा है , तो भाभी ने कहा कवल के पास ओर वो कपडे सुखाने छत पर गई है, वो जलदी से उपर गया ओर जेसे ही वो आवाज देने गया की उसकी नजरे वही ठहर गई क्यु की
ऊसकी पत्नी और कोई नही उसकी खुशी ही थी वही मासूम चहेरा वोही अंदाज जब कपडे झटक ते वक्त पानी की छींटे उसके चहेरे पर गीरते तो ओर भी हसीन लगने लगती।
राज की खुशी का कोई ठीकाना नही था वो उसे गले लगाना चाहता था पर वो रुक गया ओर थोडी देर तक वही खडा रहा बस खुशी को देखता रहा। फीर नीचे आ गया । खुशी जेसे ही नीचे आई तो उसने बात की अलमारी की चाबी ली और पालना लेके चला गया । पूरे रास्ते मे घुंघट ओढी खुशी ही नजर आ रही थी उसे उसने गाना चला दीया।

तेरा फ़ितूर जब से चढ़ गया रे

तेरा फ़ितूर जब से चढ़ गया रे

इश्क़ जो ज़रा सा था वो बढ़ गया रे

तेरा फ़ितूर जब से चढ़ गया रे

तू जो मेरे संग चलने लगे तो मेरी राहें धड़कने लगे देखूँ जो ना इक पल मैं तुम्हें तो मेरी बाहें तड़पने लगे

इश्क़ जो ज़रा सा था वो बढ़ गया रे
तेरा फ़ितूर जब से चढ़ गया रे तेरा फ़ितूर जब से चढ़ गया रे

हाथों से लकीरें यही कहती है के ज़िंदगी जो है मेरी तुझी में ।।।।

वो भी साथ साथ गुनगुना ने लगा।
उस ने फोन हाथ मे लीया ओर भाभी को कोल कीया और कवल का काम है तो उसको देनो को कहा।

खुशी_- हा बोलीये क्या काम था।
इतना सुना की राज का दिल जोरो से घडकने लगा खुद को संभाला ओर कहा की
राज- मासा ने हमसे वादा लीया है की हम आपको पत्नी का दर्जा दे अगर नही दीया तो वो आपको आपके पिहर और मुजे घरसे बाहर निकाल देंगी आपकी जो भी मरजी हो मुजे मंजूर हे अगर हा होतो आप उसी तरह तैयार होना जो हमारी शादी मे हुए थे, मे दो दिन बाद आने वालाहु । ओर बाय बोल कर फोन रख दीया।
खुशी भी थोडी टेंशन मे आ गई उसको अपने राज की याद आ गई वो क्या करे उसे समज नही आ रहा था अगर ना कहेती है ओर अपने मा पापा के पास जाती है तो उसकी वजह से मा को बोहोत सहेना पड़ेगा क्या करे उसे कुछ समझ नही आया। दो दिन उसके उलझन मे बीत गये सब घर आ गये थे ।
उसकी धड़कन बढ गई थी,
वो अपने कमरे मे आई बोहोत सोच ने के बाद उसने डिसीजन लीया अपना शादी का जोडा पहेना और वेसे ही तैयार हो गई जेसे शादी मे हुई थी, वो सुहाग की सेज पर बैठी रुम मे कदमो की आहट सुनाई दिल की धड़कन तेज हो गई। वो नीची नजरे कर के बैठी थी।
राज- गुस्से मे ये नाटक क्यु।
खुशी घबराहट के साथ बोली मेने क्या किया।
राज नाटक करते हुए खुशी की तरफ पीठ करते हुए खडा था। मेने आपके बारे मे सब पता कीया हे कोलेज मे किसी के साथ घुमती थी उसने मना किया तो मुझसे शादी की शर्म ना आई आपको । कीतनो के साथ घुमी हो।
खुशी खडी हुई ओर राज की बाहे पकड कर जैसे ही अपनी ओर किया उसका हाथ हवा मे ही रह गया ओर उसकी आँखो से बडे बडे आंसुओ की धारा बहेने लगी और र वो राज को मार ने लगी।
क्यु ईतने दुर रहे आप हमसे आपको पता था तो क्यो सामने नही आये और वो उसे गले से लग गई ।
राज ने उसे कब देखा उसके बारे मे बताया, दोनो घंटो एक दूसरे की बाहो मे रहे , सालो की हुई तपस्या अब जाके पूरी हुई । दोनो रो रहे थे बाहो मे बाहे डालके पर खुशी के आंसु थे।
ओर दो दिल सही मायनो मे एक हो गये आज। ।।

समाप्त