अनोखी दुल्हन - ( एक घर ऐसा भी_२) 35 Veena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनोखी दुल्हन - ( एक घर ऐसा भी_२) 35

यमदूत के कमरे के दरवाजे के बाहर वीर प्रताप हाथ में तकिए लिए खड़ा था।

" मैंने कभी तुम्हें यहां रहने की इजाजत नहीं दी।" यमदूत ने अपने हाथ अपने सीने पर मोड़ते हुए कहा।

" तुमसे इजाजत मांगी किसने है ? मैं इस घर का मालिक हूं। यह मेरा घर है मैं आज रात यही सोऊंगा।" वीर प्रताप ने ज़बाब तैयार रखा।

" नहीं यह नहीं होगा ‌" यमदूत अपनी जिद पर अड़ा हुआ था।

" समझने की कोशिश करो वह जवान लड़की है। ऊपर से मेरी अनोखी दुल्हन। हम दोनों एक कमरे में एक साथ रात नहीं बिता सकते।" वीर प्रताप ने उसे अपनी मजबूरी समझाने की कोशिश की।

" तुम भी जानते हो वह तुम्हारी अनोखी दुल्हन है। कोई सचमुच वाली दुल्हन नहीं। इसलिए तुम्हें उसके साथ एक कमरे में एक रात बिताने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।" यमदूत।

" मैं जानता हूं कि वह अनोखी दुल्हन है और उसका क्या मतलब है। लेकिन वह नहीं समझती। वो एक नादान बच्ची है। सोचो अगर उसने रात को ........मेरे साथ ..........कुछ करने की...... कोशिश" वीर प्रताप ने हर शब्द पर जोर देते हुए कहा।

" मुझे नहीं लगता‌ वह गुमशुदा आत्मा ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करेगी।" यमदूत को वीर प्रताप की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था।

" तुम्हें पता नहीं है। मैंने कहा ना वो मेरे प्यार में पागल है। उसने मुझसे पहली बार मिलते ही आई लव यू कह दिया था।" वीर प्रताप का जवाब फिर से तैयार था।

यमदूत रात के इस वक्त उससे और ज्यादा बहस करने के मूड में नहीं था। उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला। " तुम सोफे पर सोऔगे।"

" बिल्कुल नहीं मैं मालिक हूं। तुम सोफे सोऔगे।" वीर प्रताप ने कमरे के अंदर आते हुए कहा।

यमदूत उसे बिना कुछ बताया बाहर जाने लगा फिर प्रताप ने उसका हाथ पकड़ कर उसे पीछे खींचा। " इस वक्त कहां जा रहे हो ?"

" गुमशुदा आत्मा को बताने कि, उसे आज की रात घर के बाहर ठंड, में उस बेंच पर गुजारनी है। कल सुबह जब वह मर जाएगी मैं उसकी आत्मा निकाल लूंगा।" यमदूत ने बिना रुके सारी बात बता दी।

" ठीक है मैं सोफे पर सोऊंगा तुम बेड पर सोओगे।" वीर प्रताप की बात सुन यमदूत ने तुरंत कमरे का दरवाजा बंद किया और जाकर बेड पर सो गया।

जूही को उस घर में वीर प्रताप के कमरे में उसके बिस्तर पर काफी सुहानी नींद आई। पहली बार उसे किसी भी चीज की फिक्र करने की जरूरत नहीं थी। दूसरे दिन सुबह स्कूल जाना था। इसलिए वह तुरंत तैयार हो गई। जब वह बाहर आइ तब वीर प्रताप और यमदूत अपना-अपना नाश्ता तैयार कर रहे थे।

"वाह !!!! मेरे लिए नाश्ता तैयार कर रहे हो। कितनी अच्छी खुशबू आ रही है इसमें से।" जूही ने मुंह से लार टपकाते हुए कहा।

" यह तुम्हारा नहीं हमारा नाश्ता है। इस घर में हर किसी को अपना नाश्ता खुद बनाना पड़ता है।" वीर प्रताप ने जूही को जवाब दिया।

" ओहो! यह बात तो मुझे पता नहीं थी। कोई बात नहीं आज बिना नाश्ता किए चली जाती हूं। कल से खुद उठकर बना लिया करूंगी।" उसने अपना सर नीचे करते हुए धीमी सी आवाज में कहा।

यमदूत और वीर प्रताप ने एक-दूसरे को देखा। इतने पत्थर दिल भला कैसे हो सकते हैं दोनों ? एक बच्ची को नाश्ता ना दे पाए। दूसरे ही पल तीनों डाइनिंग टेबल पर बैठे थे। दोनों ने अपने नाश्ते में से आधा-आधा नाश्ता जूही को दिया।

" नाश्ते के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। घर के कामों की फिक्र मत कीजिए, अब मैं आ गई हूं ना। मैं सब संभाल लूंगी। अब मुझे जाना होगा आपका दिन शुभ रहे।" इतना कहते हुए जुही टेबल पर से उठी। " लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा है। इतने बड़े घर में तुम सर्वेंट क्यों नहीं रखते ?" अपने हाथ धोकर जैसे ही वह पीछे मुड़ी। उसने देखा टेबल पर बैठे हुए यमदूत और वीर प्रताप ने छुरी हवा में एक दूसरे की तरफ उड़ाई और फिर टेबल के सारे चम्मच हवा में उड़े और दोनों में कांटे चमचों की लड़ाई शुरू हो गई। " अब मुझे पता चला कि तुम यहां पर नौकर क्यों नहीं रखते ।" जूही ने एक सांस छोड़ी।

जूही अपने कमरे में गई और कुछ देर बाद वापस आई।
" ठीक है अब मेरा स्कूल जाने का वक्त हो रहा है। क्योंकि मैं यहां तुम दोनों के साथ रहने वाली है। मैं चाहूंगी कि हम तीनों इन नियमों का पालन करें।" उसने अपने जेब में से एक पर्ची निकाली।

" पहला नियम बीच-बीच में होने वाली बारिश बंद की जाए। मैं जानती हूं कि आप उदास होने की वजह से ऐसा होता है। लेकिन जब तक मैं यहां हूं। मैं चाहूंगी कि आप खुश रहें। क्योंकि बिन बुलाई बारिश की वजह से बाहरी लोगों को अक्सर काफी तकलीफ होती है।
दूसरा नियम आपको जो भी कहना है। आप सीधे अपने मुंह से कहिए। बार-बार मैं तुम्हें यहां ले जाऊंगा, वहां ले जाऊंगा यह कर दूंगा वह कर दूंगा यह सारी धमकियां देने की कोई जरूरत नहीं है। लोगों को सीधे से की हुई बातें ज्यादा अच्छे तरीके से समझ में आती है।
तीसरा और आखिरी नियम (जूही-10 1234 1234) यह मेरा मोबाइल नंबर है। आपको कोई भी जरूरत हो। काम कितना ही जरूरी क्यों ना हो। मुझे फोन करिए सीधे सीधे वहां आने की कोई जरूरत नहीं है। इससे लोग अक्सर डर जाते हैं। मेरा मोबाइल क्लास में साइलेंट पर होता है और जब मैं लाइब्रेरी में होती हूं तब बंद होता है। बाकी किसी भी समय आप मुझे आराम से फोन कर सकते हैं।
मैं यकीन करती हूं कि हम लोग यहां पर नियमों का पालन करेंगे आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।" इतना कहके उसने उस नियमों की पर्ची फ्रिज पर लगा दी और स्कूल चली गई।

यमदूत और वीर प्रताप एक दूसरे को देख रहे थे।

"क्या इस ने ए जानबूझकर किया ?" यमदूत ने कहा।

" शायद उसे पता नहीं होगा कि, हमारे पास फोन नहीं है।" वीर प्रताप ने पूछा।

" उसने जानबूझकर किया।" यमदूत ने अपने बाल पकड़े।

कुछ ही देर बाद राज दोनों के सामने फोन लेकर तैयार खड़ा था। एक काले रंग का फोन और एक नीले रंग का फोन। उसने दोनों स्मार्टफोन दोनों की तरफ आगे बढ़ाएं। बच्चे की तरह यमदूत ने तुरंत काला फोन उठाया और अपने कपड़ों से मिलाजुला देख कर वह खुश हो गया। वीर प्रताप उसे देख रहा था।

" इसे स्मार्टफोन कहते हैं।" राज ने बताने की शुरुआत की।

" मुझे पता है। इसे बताओ। यह नया है।" वीर प्रताप ने फोन लेते हुए गर्व से कहा।

" आपको यकीन है आपको फोन चलाना आता है?" राज ने वीर प्रताप की ओर देखते हुए पूछा।

" जो हजार साल तक जिंदा रहा हो। क्या उसे फोन चलाना नहीं आएगा।" वीर प्रताप का गुरूर अभी भी वैसे का वैसा था।

" हां हां। उसे जरूर नहीं है। उसे मत सिखाओ। मुझे बताओ मैं सीखूंगा।" यमदूत ने उत्साह से राज को कहा।

" ठीक है। तो पहले प्ले स्टोर में जाइए।" राज की बात सुन वीर प्रताप अपनी जगह पर से उठा और अपना कोट पहनने लगा। " यह क्या कर रहे हैं आप ?" राज ने अचंभित होते हुए पूछा।

" तुम ही ने तो कहा ना प्ले स्टोर चलना है। तैयार हो रहा हूं मैं।" फिर वीर प्रताप यमदूत की ओर मुड़ा " तुम्हें नहीं आना ?"

यमदूत अपनी जगह पर खड़ा हो गया। " हां हां मुझे भी आना है।"

राज ने अपने सर पर हाथ मारा।
काफी मशक्कत के बाद राज ने उन दोनों को सिंपल कॉल और वीडियो कॉल करना सिखा दिया।


दूसरी तरफ यहां लाइब्रेरी में बैठे हुए जूही गूगल पर वीर प्रताप के बारे में पढ़ रही थी।

" वीर प्रताप, हो तो वह सदियों पुराना जनरल है। जनरल मतलब वह राजा के आर्मी में था। वाओ गवर्नमेंट जॉब। भविष्य अच्छा है।" जूही ने खुश होते हुए कहा। " लेकिन यह क्या ज्यादा इंफॉर्मेशन नहीं दी गई है उसके बारे में।" जब वह अपनी रिसर्च पूरी करके लाइब्रेरी से बाहर आई उसका फोन बजा। " यह क्या प्राइवेट नंबर ? हेलो।" उसने फोन उठाते हुए पूछा।



घर पर आखिरकार यमदूत ने सनी को फोन किया। " हेलो।"

" हेलो कौन बोल रहा है ?" सनी ने सामने से पूछा लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला लंबी सी खामोशी के बाद सनी ने फिर पूछा "हे तुम हो क्या अंगूठी वाले हैंडसम ? "

" तुम्हें अंगूठी लौटा नी थी।" यमदूत।

" ठीक है। ठीक है। मुझे 4:00 बजे कॉफी शॉप में मिलो।" सनी ने एड्रेस देते हुए फोन रख दिया।


तैयार होकर वह दोनों 4:00 बजे कॉफी शॉप में मिले। आधा घंटा हो गया था लेकिन फिर भी यमदूत बस उसे घूरे जा रहा था।

" कुछ बात करोगे या फिर बस ऐसे ही बैठना है ?" सनी ने पूछा।

यमदूत ने अंगूठी सनी की तरफ बढ़ाइ। " इसे रख लो।"

सनी ने अंगूठी अपनी उंगली में पहन ली और उसे दिखाई। " कितनी खूबसूरत दिखती है नहीं ?"

" मानो तुम्हारे लिए ही बनी हो।" यमदूत ने जवाब दिया।

" शुक्रिया।" सनी शर्मा गई।

" तो अब मैं चलूं।" यमदूत अपनी जगह पर से उठा।

" नहीं रुको तो। तुम्हें मुझसे बात नहीं करनी ?" सनी ने उसे रोका।

" क्या बात करनी है बताओ ?" यमदूत फिर अपनी जगह पर बैठ गया।

सनी ने अपना हाथ टेबल पर रखा और पूछा। " अच्छा बताओ तुम्हारा नाम क्या है ?"