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जीवन के उजाले - भविष्य में भूतकाल

भविष्य में भूतकाल


पलब्ध साधनों के जरिए ही आपदाओं से निपटना पड़ता है । कई बार इनसे निपटने को साधन कम पड़ जाते हैं । कोरोना की दूसरी लहर के दौरान पूरी दुनिया ने यह देखा । संसाधनों की कमी का खामियाजा लोगों को अपनी जान से चुकाना पड़ा । हालांकि जब चुनौती नई हो, तो साधन खिलौने जान पड़ते हैं । उपलब्ध साधनों की सीमित तादाद के अलावा काम करने वाले हाथ ही कम पड़ जाएं, तब मुसीबत से निपटना आसान नहीं होता । क्या यह संभव है कि वर्तमान की आपदाओं से निपटने के लिए साधनों की आपूर्ति भूतकाल में उपलब्ध साधनों से हो सके ? अमूमन साधनों का अविष्कार, उनका विकास और संग्रहण भविष्य के लिए होता है । यानी अगर वर्तमान ठीक रखा जा सके तो सुनहरे भविष्य का निर्माण और उसे सुरक्षित रख पाना संभव है । मगर यही साधन भविष्य में भी कम पड़ जाए तो भूतकाल से नहीं मांगे जा सकते !

हम जो देख पा रहे या जो दिखाई देता है, वह वर्तमान है । जो हमारी दृष्टि से परे है वह भविष्य है । जो भूत, वर्तमान और भविष्यकाल को देख सके वह त्रिकालदर्शी होता है । व्यक्ति में भूत या भविष्य काल को देखने की सामर्थ्य नहीं होती । वह सदा वर्तमान में जीता है । ओशो ने सामान्य मनुष्य के त्रिकालदर्शी हो सकने की संभावना के बारे में तर्क दिया था कि व्यक्ति अगर थोड़ा-सा ऊपर उठ जाए तो वह त्रिकालदर्शी हो सकता है । व्यक्ति जितना ऊपर उठता जाता है, उसकी यह क्षमता विस्तारित होती जाती है । वे दो राहगीरों का उदाहरण देते हैं । दोनों जंगल में एक रास्ते के किनारे बैलगाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे हैं । एक राहगीर वृक्ष की छाया में नीचे खड़ा है, जबकि दूसरा वृक्ष की सबसे ऊंची शाखा पर बैठा है । बहुत दूर से एक बैलगाड़ी आ रही है । वृक्ष के ऊपर बैठा राहगीर उसे देख पा रहा है कि बैलगाड़ी आ रही है । यह घटना उसका वर्तमान है, जबकि नीचे खड़ा राहगीर बैलगाड़ी को नहीं देख पा रहा है । बैलगाड़ी का आना उसके लिए भविष्य है । वह कहेगा कि बैलगाड़ी आएगी । वृक्ष के ऊपर बैठा राहगीर वृक्ष के नीचे बैठे व्यक्ति का भविष्य देख पा रहा है । जब बैलगाड़ी गुजर जाएगी तब नीचे खड़ा राहगीर कहेगा बैलगाड़ी चली गई । पर वृक्ष के ऊपर बैठा राहगीर अब भी कहेगा, बैलगाड़ी जा रही है । वह नीचे वाले व्यक्ति का भूतकाल भी देख पा रहा है । इस प्रकार वह त्रिकालदर्शी हो जाता है ।

आज विज्ञान तेज गति से आगे बढ़ रहा है । विज्ञान की मानें तो भूत एवं भविष्य में विचरण और बदलाव संभव प्रतीत होता है । हॉलीवुड की एक बहुत खूबसूरत फिल्म है- 'द टुमारो वार', जिसमें यह संभव होते दिखाया गया है । वर्ष दो-हज़ार-इक्यावन में दुनिया की कुल आबादी पांच लाख से भी कम रह गई है । पृथ्वी पर दूसरे ग्रह से आए प्राणी यानी एलियंस ने कब्जा कर लिया है । वे इतनी बड़ी संख्या में विकसित हो चुके हैं कि उन्होंने बहुतायत मानव आबादी को अपना शिकार बना लिया है । सुरक्षा के साधन नष्ट कर दिए हैं । ऐसी स्थिति में एलियंस से लड़ने के लिए न केवल साधन सीमित और कम पड़ रहे हैं, बल्कि मनुष्यों की संख्या भी कम पड़ रही है । तब तात्कालीन वैज्ञानिक सैनिकों की भर्ती का एक अभूतपूर्व तरीका निकालते हैं । 'टाइम ट्रेवल' द्वारा कई वर्ष पीछे सन् दो-हज़ार-इक्कीस में जाकर जांबाज सैनिकों को चुनकर लाते हैं, ताकि वर्ष दो-हज़ार-इक्यावन में एलियंस के खिलाफ़ लड़ कर अपनी बहादुरी का लोहा मनवा सकें । ये जांबाज़ सैनिक एलियंस से बहादुरी से लड़ते हैं, लेकिन मिशन विफल हो जाता है । जांबाजों को निश्चित अवधि के बाद वर्ष दो-हज़ार-इक्कीस में वापस आना पड़ता है । इस विफलता से जांबाजों को एक दिशा मिलती है । वर्तमान को सुधारने और सुरक्षित रखने की जरूरत है । पृथ्वी के किसी कोने में पनप रहे मुट्ठी भर परग्रही एलियंस का सफाया करना होगा, ताकि ये विकसित होकर भविष्य को खतरे में न डाल सकें । वर्ष दो-हजार-इक्यावन की भयावह स्थिति का ज़िम्मेदार दो-हज़ार-इक्कीस में की गई अनदेखी है । अगर आज मुठ्ठी भर एलियंस का सफाया कर दिया जाए, तो दो-हज़ार-इक्यावन की स्थिति ही निर्मित नहीं होगी !

बहरहाल, भले ही यह एक विज्ञान सम्मत कल्पना हो, लेकिन यह इस यथार्थ को पुख्ता करती है कि जिस वर्तमान को हम देख पा रहे हैं, समझ पा रहे हैं, उसे सुरक्षित रखा जाए । तभी स्वस्थ और उन्नत भविष्य सुनिश्चित होगा । ग्लोबल-वार्मिंग, ऋतु-चक्र का बिगड़ना, बाढ़, सूखा और कोरोना जैसी विश्विक महामारी मानव की पर्यावरण के प्रति उदासीनता को दर्शाते हैं । आधुनिक आपाधापी, टीवी और मोबाइल की आभासी छवियों के कारण वर्तमान के प्रति निश्चेतना का भाव बढ़ता जा रहा है । इसलिए जरूरत है, प्रकृति के प्रति सचेत और जागरूक होने की । आभासी दुनिया की बजाय वर्तमान में जीने की जरूरत है ।

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