थैंक्स मम्मी-डैडी राकेश सोहम् द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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थैंक्स मम्मी-डैडी

छेड़छाड़ के बाद खुदकशी – दैनिक अखबार के मुख्य पृष्ठ पर प्राथमिकता से छपे शीर्षक को पढ़कर मिनी बेचैन हो उठी. जब भी वह ऐसे समाचार सुनती या पढ़ती है बेचैन हो जाती है. आज वह अपने माता-पिता से दूर एक महानगर में पूरे आत्मविश्वास के साथ रह रही है. वह एक कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजिनियर है. वह अकेली, पिछले चार साल से इस शहर में है.

ऐसा नहीं है कि इस पुरुषवादी समाज ने उसके आत्मविश्वास को ठेस पहुंचाने की कोशिश न की हो. किन्तु उसने अपना आत्मविश्वास गिरने नहीं दिया. हर बार वह ऐसी तथाकथित दुर्घटनाओं से सबक लेकर अपने आप को और सबल बनाती रही. इन सबके बावजूद वो दिल दहला देने वाली शाम कभी नहीं भूलती. उस दिन वह कब ... कैसे भागकर अपने कमरे में पंहुंच गई ... पता नहीं चला ! बिल्डिंग परिसर में प्रवेश के दौरान कौन-कौन मिला होगा याद नहीं. बिल्डिंग की पांचवीं मंजिल पर वह लिफ्ट से पंहुंची या सीढ़ियों से ? वह तो जैसे स्मृति शून्य हो गयी थी. इतना याद है कि रोज की तरह ऑफिस से पैदल लौट रही थी. एक मोड़ पर अचानक किसी अजनबी ने उसे छेड़ते हुए पीछे से झपट्टा मारा. और सड़क के किनारे लगी झाड़ियों की ओर खींचने लगा. वह भय के मारे चींख भी न सकी. गला जैसे रुंध गया था. फिर बचाव के लिए पूरी शक्ति लगाकर उस दरिन्दे को धक्का दे दिया. और वह लड़खड़ाकर झाड़ियों में जा गिरा. वह पुनः उठकर उसकी ओर बढ़ता तभी पीछे से एक कार आकर रुकी. कार को रुकता देख वह दरिंदा झाड़ियों में विलुप्त हो गया. कार से उतरे अधेड़ दंपत्ति स्थिति को भांप गए थे. अतः उसे सस्नेह धाडस बंधाते हुए कार में लिफ्ट दी और उसके घर की बिल्डिंग के सामने उतार दिया.

वह आ तो गयी कमरे में. किन्तु उस दरिन्दे का स्पर्श शरीर के रोम-रोम में भय बनकर कंपकपाहट पैदा कर रहा था. वह जितना भी उस भय को भुलाने की कोशिश करती वह बढ़ता ही जाता. सारे प्रयास व्यर्थ जा रहे थे. इसी उहापोह में मम्मी को मोबाईल किया और बिलख-बिलख कर सारी घटना कह डाली. जाने कितनी देर मम्मी ने समझाया. वह तो जैसे मानने को तैयार न थी. बड़ी-बड़ी आँखों में मोटे-मोटे आंसुओं का दर्द लिए अपना निर्णय सुना दिया कि अब वह इस शहर में नहीं रहेगी. बल्कि वह जॉब नहीं करेगी. यह भी कि उसे पुरुष जाति से चिढ़ हो गयी है, शादी नहीं करना चाहती.

माँ ने कहा, वह शीघ्र आएगी. चिंता न करे. लेकिन नीद तो जैसे उससे कोसों दूर भाग गयी थी. रात के अँधेरे में कमरे की दीवारें भयानक झाड़ियों सी प्रतीत होतीं थीं. हैंगर पर टंगे कपडे पंखे की हवा में झूम-झूमकर बुलाते थे. इस भीषण आपदा में उसे उस दरिन्दे का हुलिया तक ठीक ठीक याद नही. सिवा इसके कि आँखें बंद करते ही उसका अस्पष्ट और भयानक चेहरा दिखाई देने लगता.

मध्य रात्री मोबाईल बज उठा, डैडी का फोन था. वे इतनी रात फोन क्यों करने लगे ? माँ ने बता दिया होगा. उसने कंपकपाते हुए मोबाईल उठाया और बोली, ‘‘हेलो डैडी !’’ ‘’हेल्लो मिनी !.. द फाइटर !! माय ब्रेव डॉटर !!!’’, उस ओर से डैडी का जोश से भरा स्वर सुनाई दिया, ‘’माय वन मेन आर्मी... डरना नहीं. आखिर मार भगाया न उस भेड़िये को मेरी फाइटर बेटी ने. वी आर प्राउड ऑफ़ यू. हम तुम्हारे साथ हैं. चिंता मत करो. आज जिस साहस के साथ बहादुरी तुमने दिखाई है उसपे हमें नाज़ है. ग्रेट... ग्रेट... ग्रेट...’’

वह रोना चाहती थी किन्तु वह ऐसा नहीं कर पायी. बल्कि शरीर में नयी शक्ति का संचार महसूस करने लगी. अब कमरे की दीवारों से खूंखार झाड़ियाँ गायब हो चलीं थीं. सामने की दीवार पर चिपके बड़े से फ्रेम में मम्मी-डैडी मुस्कुरा रहे थे. वह गर्व से मुस्कुराई, ‘‘थैंक्स मम्मी-डैडी’’

@ राकेश सोहम्