संजय ऑफिस से आया तो घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। उसकी मां माथा पकड़े बैठी थी तो पत्नी माला सुबक रही थी। संजय उन दोनों का यह हाल देख घबरा गया और मां से बोला "सब ठीक है ना! क्या हुआ, माला रो क्यों रही है और आप!"
"रोने की तो बात ही है। कर्म फूट गए हमारे। दूसरी भी बेटी है इसके पेट में!"
सुनकर पहले तो उसे झटका लगा और फिर उसे अपनी मां व पत्नी पर बहुत बहुत गुस्सा आया। गुस्से से में वह अपनी मां से बोला "मां, मेरे मना करने के बाद भी आप इसकी जांच करा कर लाए हो?"
"हां जरूरी था । पहले ही एक बेटी है, दूसरी भी बेटी हो जाती तो!"
"तो क्या! अब आप क्या सोच रही हो!" संजय गुस्से होते हुए बोला।
"वह भी मैं बताऊंगी। तुझे नहीं पता ! अनचाहा बच्चा और वो भी लड़की अगर नहीं चाहिए हो तो क्या करना होता है !"
"किसने कहा मुझे बच्ची नहीं चाहिए? मुझे यह बेटी चाहिए। मुझे नहीं करानी है अपनी बच्ची की हत्या।"
"तो क्या तू इसे पैदा होने देगा। इतनी कमाई है तेरी ! तू दो दो बेटियों का खर्चा उठा पाएगा! अरे, अभी इतनी मंहगाई है। इनके समय तक तो पता नहीं लोग कितना मुंह फाड़ेंगे!"
"मां, मैं इतनी आगे तक की नहीं, अब की सोच रहा हूं। और मैंने फैसला कर लिया है, मेरी बेटी इस दुनिया में आएगी।"
"लेकिन सुन तो!"
"लेकिन वेकिन कुछ नहीं। आज के बाद मैं इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता और आज की तरह मेरे पीछे से अगर आपने कुछ भी गलत किया तो आप अपने बेटे को खो दोगी।"
सुनकर संजय की मां का मुंह उतर गया। वही अपने पति का फैसला सुन माला ने राहत की सांस ली।
9 महीने बाद माला ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। संजय व माला अपनी बेटी को देख बहुत खुश थे लेकिन संजय जी मां ने कोई खुशी ना दिखाई। संजय उसे अपनी मां की गोद में देते हुए बोला
लो मां, उदासी छोड़ो और आशीर्वाद दो अपनी नई पोती को। देखना बड़ी किस्मत वाली होगी आपकी पोती।
उसकी मां यह सुन मुंह बनाते हुए बोली इतनी ही किस्मत वाली होती तो बेटा बन जन्म ना लेती!
संजय कुछ ना बोला बस अपनी बेटी को प्यार भरी नजरों से निहारता रहा। मानो कह रहा हो_ 'मैं तुम्हारे साथ हूं , मेरी बेटी।'
अपने बेटी के सवा महीने का होने पर संजय ने छोटा सा फंक्शन करने की इच्छा अपनी मां को बताई तो वह गुस्सा होते हुए बोली
"पागल हो गया है तू ! लड़की के होने पर कौन समारोह करता है। सब लोग हसेंगे तुझ पर। पार्टी अगली बार कर लेना जब बेटा हो।"
"क्यों मां, लड़कियों के होने पर फंक्शन क्यों नहीं कर सकते! मेरे लिए मेरी दोनों बेटियां, बेटों के बराबर है और आप क्या कह रही हैं कि बेटा होगा। मां मेरी दोनों बेटियां ही मेरे लिए सब कुछ है और यही मेरा परिवार और आप ही तो कहते हो ना मेरी कमाई ज्यादा नहीं तो एक और प्राणी का पेट में कहां से पालूंगा मैं।"
"क्या कह रहा है तू! अरे, कल को ये दोनों शादी करके ससुराल चली जाएगी तो बुढ़ापे में कौन सहारा देगा ! कौन सेवा करेगा तेरी। वंश कैसे बढ़ेगा आगे!"
"मां, क्या गारंटी है कि बेटा मेरे साथ ही रहेगा। आजकल तो बच्चे पढ़ाई करते हुए ही अलग रहने लग जाते हैं। मेरी दोनों बेटियां ही मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगी और मैं कोई राजा महाराजा तो हूं नहीं ,जो बेटा पैदा ना होने से हमारा वंश आगे नहीं बढ़ेगा और यह किसने कहा कि बेटियों से वंश आगे नहीं बढ़ता । देखना यह बेटियां ही हमारे वंश का नाम रोशन करेगी।"
"ज्यादा पढ़ लिख कर पागल हो गया है तू देखना बाद में पछताएगा।" संजय की मां ने कहा।
"यह तो समय ही बताएगा मां!"
अपनी नौकरी के साथ-साथ, संजय ने अपना एक छोटा सा एक्सपोर्ट का बिजनेस शुरू कर दिया और उस की रात दिन की मेहनत की बदौलत उसका काम चल निकला।
उसकी दोनों ही बेटियां पढ़ने लिखने में बहुत होशियार थी। साथ ही साथ स्कूल की हर एक्टिविटी में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती । स्कूल का कोई कंपटीशन ऐसा ना था, इसमें दोनों बेटियां जीतती ना हो।
संजय , माला के साथ-साथ अपनी मां को भी स्कूल के हर फंक्शन में लेकर जाता। स्टेज पर अपनी पोतियों को इनाम लेता देख, संजय की मां भी खूब तालियां बजाती।
समय के साथ वह भी अपनी पोतियों की कायल होती जा रही थी।
स्कूली पढ़ाई पूरी कर बड़ी बेटी नूपुर ने मेडिकल लाइन चुनी और छोटी बेटी सुनैना ने अपने पापा के बिजनेस में मदद करने के लिए बिजनेस मैनेजमेंट का कोर्स करने लगी थी।
दोनों ही बेटियों समय के साथ साथ अपने अपने कार्यों में दक्ष हो गई थी। नूपुर ने अपना क्लीनिक खोल लिया था। जिसमें वह गरीबों का मुफ्त इलाज करती और वही छोटी सुनैना अपने पापा के काम को संभालने के साथ-साथ सामाज सेवी संस्थाओं के साथ जुड़ , कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ, असहाय लोगों के लिए अनेक कार्य कर रही थी।
छोटी सी उम्र में इतना कुछ करने के कारण उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके थे। संजय को आज उनकी बेटियों के पिता के रूप में हर कोई गर्वभरी नजरों से देखता था।
समाज में अपने पोतियों का इतना मान व सम्मान देख संजय की मां को अपनी मानसिकता बदलने पर मजबूर होना पड़ा। आज वह भी अपने पोतियों की तरक्की देख गर्व से फूली ना समाती थी
पिता के रूप में संजय द्वारा लिए सही निर्णय व उन दोनों की अपनी दोनों बेटियों को दी गई एक अच्छी परवरिश व प्रोत्साहन के कारण उनकी दोनों बेटियों ने अपने कार्यों द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि बेटे व बेटी में कोई फर्क नहीं। आज बेटियों से पिता की पहचान होती है और आज की बेटियां किसी भी रूप में बेटों से कम नहीं।
सरोज✍️