थाई निरेमित यानि थाईलैंड का जादू - 6 Neelam Kulshreshtha द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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थाई निरेमित यानि थाईलैंड का जादू - 6

एपीसोड - 6

अभिनव नेहा बेहद थके हुये मार्किट में, ढूँढ़ते हुये एक डेढ़ घंटे भटक कर बर्गर किंग`स से बर्गर्स लेकर आते है. पैकेज में बुकिंग ना होने से ये नुकसान है कि खाने पीने की कभी दिक्कत हो जाती है लेकिन आरामदायक समय में प्लेन से चलो, ख़ूब आराम करके घूमो. -फायदें अधिक हैं. घूमने की दिनचर्या बनाने में, फ़्लाइट बुक करने के शोध में अभिनव एक महीने नेट पर मेहनत की थी, बीच बीच हम सब नेट से जानकारी जुटाते उन्हें देते जाते थे.

अगले दिन फ़्लोटिंग मार्केट देखना ही है जो कि सारी दुनिया में कहीं नहीं हैं हालाँकि भारत की डल झील में इक्का दुक्का शिकारों पर सामान बेचा जाता है. लेकिन नहर में इतनी तैरती दुकानें दुनिया के किसी मुल्क में नहीं है. होटल से बाहर निकल कर एक टैक्सी वाले से बात होती है. वह बताता है दोपहर तक ये सब बंद हो जाते हैं बस एक मार्केट खुला रहता है जहाँ पहुँचने में एक घंटा लगेगा ---लौटने में एक घंटा. हम हिसाब लगाते हैं कि शाम को शॉपिंग हो जायेगी. चौड़ी स्ड़क पर टैक्सी फिसलने लगती है, बीच के डिवाइडर में पौधे लगे हुए है. हम शहर से बाहर आ गये हैं. डेढ़ घंटा निकल गया है, मंज़िल का कोई अता पता नहीं है. ड्राइवर से कहते हैं, वह मसूमियत से कहता है, " अभी एक घंटा और बाकी है, "फिर शुरू होता है हम सबका गुस्सा और अभिनव से उसकी झिक झिक, "क्यों चीट किया कि फ़्लोटिंग मार्केट एक घंटे की दूरी पर है, "

वह उसे वापिस लौटने को बोल देते है. लेकिन भइया ! ये थाईलैंड है पच्चीस मिनट बाद जब यू टर्न आता है तो उसके टैक्सी घुमाने से पहले हम सब निर्णय लेते हैं कि जब पौने दो घंटे बर्बाद हो चुके है तो अब आगे बढ़ा जाए.. 

हम शहर से बाहर आ गए हैं सुनसान रास्ता शुरू हो गया है, जब ये ख़त्म नहीं होता तो मै अभिनव को इशारे से समझाती हूँ कि पानी पीने के बहाने से कहीं पूछा जाए कि हम सही रास्ते जा रहे हैं या नहीं. अभी हम सोच ही रहे हैं कि एक छोटा शहर आ गया है. कहाँ बैंकॉक की तेज़ी कहाँ ये अधसोया सा शहर --भारत जैसा टाउन. एक जगह बोर्ड दिखाई दे जाता है` "देमनीयेनसअदयूक`. हमारी चिंता दूर होती है इसी में फ़्लोटिंग मार्केट है. ढाई घंटे के सफ़र के बाद हम यहाँ तक पहुंचें हैं. ड्राइवर छोटे से मैदान में गाड़ी पार्क कर देता है. सामने ही फ़्लोटिंग मार्केट का बोर्ड लगा है..

हम लोग टिकिट्स लेते हैं. ड्राइवर उतरे हुए चेहरे से कोने में रक्खी मेज पर रक्खी इलेक्ट्रिकल कैटल से हमें कॉफ़ी बनाकर देता है. एक लम्बी बोट हमें बैंकॉक से एक सौ पचास किलो मीटर दूर रिकबरी प्रदेश की 32 किलो मीटर बड़ी नहर में सैर कराने ले चली है. ये नहर सीधी नहीं है, कभी दान्ये मुड़तीं है कभी बान्ये. चौदह पन्द्रह मीटर चौड़ी, पानी से लबालब भरी हुई.

बरसों पूर्व राजा रामा सिक्स्थ ने इस प्रदेश की दो नदियो मैक्लांग व टेकी नदी को जोड़ने के लिए ये नहर बनवाई थी. इन दो नदियों के संगम के कारण इस नहर की मिट्‍टी बहुत उपजाऊ हो गई थी. इसलिए लोगों ने इसके किनारे फल व सब्ज़ी उगानी आरंभ कर दी. धीरे यहाँ बाज़ार बन गया. यहाँ इतनी पैदावार होने लगी कि लोग बोट द्वारा इसे बेचने दूर दूर तक जाने लगे. इस नहर के किनारे भी दुकानें बन गई जहाँ ज़रूरत की और चीजें बेची जाने लगी थी,

नहर के दोनों ओर नारियल के पेड़ है, जाने अनजाने कितने पौधे, पेड़, ख़ूबसूरत फूल. इस हरियाली को छूती बयार के बीच ये बोटिंग अद्भुत है. मज़े की बात है ये बाज़ार बंद है, हम तब भी मुग्ध हैं क्योंकि हमारी कल्पना में भी नहीं था कि नहर के दोनों ओर पक्की दुकानें भी होंगी. आगे दो चार दुकानें खुली दिखाई देती है.

कुछ लोग नहर के किनारे मकान बनाकर रह रहे हैं. रास्ते में एक बड़े हैण्डीक्राफ़्ट्स सेंटर पर बोट मैन हमे आग्रह करके उतार देता है. अधिकतर वहां नारियल की बनी वस्तुएँ हैं. नारियल पर कार्विंग किया हुआ एक लैम्प हम लोग खरीद लेते हैं. एक स्त्री व पुरुष भारतीय मिठाई की ट्रे जैसी ट्रे में मैदे व नारियल पाउडर को मिलाकर बिस्किट बनाने में लगे हैं जिन्हें बिना बेक किए खाया जाता है. वह बहुत उत्साह से हमे चखाते हैं. अब आप सोच ही सकते हैं कि बिना बेक किए बिस्किट कैसे होंगे ?यही हाल हमारा ग्रीन टी को पीकर होता है.

नहर के दोनों ओर हरियाली के बीच सरसराती हवाओं के कारण हमारा ढाई घंटे बेवजह ही सड़क पर सफ़र करने वाला तनाव कम हो गया है. या प्रकृति का स्पर्श ही ऎसा होता है या मन प्रफुल्ल है कि दुनिया के हम ऎसे बाज़ार में घूम रहे हैं जो कहीं और नहीं है. तभी एक बोट पर एक साँवला दम्पत्ति दिखाई देता है. मैं खुश हो जाती हूँ कि हम जैसे सिरफिरे और भी हैं जो बंद फ़्लोटिंग मार्केट मै घूम रहें हैं. मैं हाथ हिलती हूँ, "इण्डियंस ?"

"नो, श्रीलन्कनस. "वे भी उत्साह से जवाब देते हैं.

ख़ैर ----आगे जाकर हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता क्योंकि कुछ हर उम्र की थाई स्त्रियाँ हैट लगाकर बोट में फल बेच रहीं हैं. मृदुल जी. नेहा व अभिनव के कैमंरे ख़ुशी से क्लिक कर उठे हैं. नेहा ख़ुशी से किलकती भरती कह रही है, "ये वाला फल लीजिये ----ये वाला. "नेहा अपने पापा के परिवार के साथ इंडोनेशिया रही है इसलिए भारत में ही उसने ऐलान कर दिया था कि वह थाईलैंड में फल खूब खायेगी क्योंकि वे बहुत टेस्टी होते हैँ. उनसे फल ख़रीद कर हम लोग खाना आरंभ कर देते हैं. चीकू जैसा लगने वाला फल अन्दर से लीची जैसा है.

आम, केले, नारियल के अलावा और भी फलों के नाम से हम परिचित होते हैँ -दुरियन, लेंग्ररोट , पोमेलो., लोगन, पौमेलो और भी न जाने क्या ? वैसे भी हर होटल में खाने के साथ तरबूज व पाईन एपल दिया ही जाता है. एक दुकान पर बैठी लड़की से हम केसर खरीद लेते है, शक़ होते हुए भी कि ये नकली है. लौटकर पता लगता है कि थाईलैंड में तो एक दर्जन छोटे बड़े फ़्लोटिंग मार्केट हैँ जिनमें प्रमुख पाँच हैँ. किस्मत हमें वहाँ के सबसे बड़े फ़्लोटिंग मार्केट में उँगली पकड़ कर ले गई थी जबकि हम आधे रास्ते से लौटना चाहते थे. 32 किलो मीटर की बोटिंग हम पहली बार ही कर रहे थे सोचते हुए भारत के सड़कों पर कैसा शोर मच रहा होगा और हम प्रकृति की गोद में हैँ, हरे भरे पेड़ पौधों की पानी में दिखाई देती परछाईं की हरीतिमा के बीच से घिरे, पानी की ठंडी हवाओं में सराबोर चलते-जो हमे आगोश में ले आध्यात्मिक सुकून पहुँचा रही है.

रात में बैंकॉक में उसी भारतीय रेस्तराँ में खाना खाने के बाद हम वहाँ के बाज़ार की दुकानों सजी धजी लड़कियों से छोटी मोटी ख़रीददारी करते हैँ. वे सब लापरवाह हैँ हम चीजें ख़रीदें या नहीं. एक बुढ़िया औरत गन्दी जींस में कोलर माइक पर गीत गाती भीख मांगती नजर आ रही है. तभी एक युवा लड़की टाइगर प्रिंट के टाईट टॉप में, बड़ी पोनी बनाए. बड़ा काजल लगाए गम बूट पहने लंबे लंबे डग भरती निकल जाती है. अनेक तरह के चेहरे दिखाई दे रहे हैँ, कितनी कहानियाँ ---लेकिन जानना मुमकिन नहीं है.

घूमने के लिए अन्तिम दिन ही बचा है, नेहा अभिनव शॉपिंग के मूड में हैं, हम दोनों को ग्रैंड पैलेस देखना है. अभिनव बाथरूम से कहते हैँ, "उसके पीछॆ रिक्लाइंग बुद्ध है, वह भी देख लीजिये. "

होटल के सामने से ले हुई टैक्सी का ड्राइवर थोड़ी दूर जाकर हमे एक शो रूम के सामने खड़ा कर देता है टूटी फूटी अंग्रेज़ी में बताता है कि ये हीरो मोती की ज्वैलरी का शो रूम है. हम ज़िद करते हैं कि हमे हीरे नहीं खरीदने. लेकिन वह ज़िद कर हमे अन्दर दस मिनट जाने को कहता है.

शो रूम में जाते ही दो सूटेड बूटेड दो सेल्स मेन हमे शो रूम दिखाने ले चलते हैं. गहनों की कारीगरी थाई परम्परा की है लेकिन भारतीय परंपरा से कुछ गहने मिलते जुलते हैं. उनकी कीमत सुनकर हम बाहर निकलना चाहते है लेकिन साथ लगे हॉल में छोड़ दिए जाते है जो हैंडी क्राफ्ट सेक्शन है. मुझे एक छोटी प्लास्टिक की टोकरी दे दी गई है. मैं कपड़ों पर हाथी बने पर्स लकड़ी के कलमदान, विज़िटिंग होल्डरस, टाई केस देखकर मैं खुश हो रही हूँ. जल्दी जल्दी पसंद कर उन्हें टोकरी में रखती वह टोकरी छोटी पड़ गई है. तभी मृदुल जी बेचैन से आ जाते हैं, "यदि यहाँ इतनी देर लगओगी तो पैलेस क्या देखोगी ?"

मैं उन्हें व्यस्त कर देती हूँ, "आप बच्चों के लिए कुछ सिलेक्ट कर लीजिये. "सेल्स गर्ल मुझे दूसरी टोकरी पकड़ा देती है मै उसमें बेहद सुंदर फ़्रूट बास्केट व नैपकिन होल्डर से उसे भरने में लग गई हूँ. कुछ पैकेट्स मॆं मुड़े टु ड़े नग के हार दिखाई दे रहे है. मैं उन्हें ऎसे ही उठा लेती हूँ, मुझे पता नहीं था कि भारत मे मेरी अज़ीज़ इन्हें पाकर इतनी खुश हो जाएंगी.

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श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffmail. com