Thai Niremit yani Thailend ka jaadu - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

थाई निरेमित यानि थाईलैंड का जादू - 1

[नीलम कुलश्रेष्ठ]

एपीसोड - 1

अहमदाबाद से दिल्ली, दिल्ली से बैंकॉक यात्रा समाप्ति पर है, नीचे ज़मीन पर दिखायी दे रहा हैं पीली रोशनियों के बीच रेगती लाल बत्तियां. -एक के पीछे एक. बस लग रहा है कि केलिडो स्कोप की तरह खूबसूरत रोशनियों का जाल बिछा हुआ है. रोशनियों के ये पीले लाल मादक गुच्छे और पास आ रहें हैं---- और पास. एयरपोर्ट से आरक्षित किए मेंशन की तरफ़ टैक्सी में जाते हुए समझ में आता है कि यहाँ ओवर ब्रिज बहुत हैं जिनके दोनों ओर सोडियम लाइट लगी हुई है. उनपर चलती हुई गाड़ियों में लगी लाल बत्तियाँ ऊपर से देखने में समा बाँध रहीं थीं.

एयरपोर्ट पर 'वीज़ा ऑन अराइवल 'लेते हुए या बाहर निकलते हुए अश्चर्य होता ही कि कहीं कोई रोक टोक या चेकिंग नहीं है. एक्सलेटर पर चढ़ती उतरती खुशनुमा भीड़ 'बिना रोक टोक यहाँ वहाँ विचर रही है. एयरपोर्ट पर एक घंटा इंतज़ार करने के बाद टैक्सी के लिए हमारा नंबर आता है हम से मतलब है कि मेरे पति मृदुल जी, बेटा अभिनव, बहु नेहा व चार वर्षीय पोतु उपांशु. सड़क पर टैक्सी दौड़ रही है ऐसा लग रहा है हम भारत के किसी महानगर में चल रहे हैं लेकिन वहाँ दौड़ती महँगी व बड़ी कारें देखकर थाईलैंड की समृद्धि का अनुमान हो रहा है मन में एक उथल पुथल है कि ये कितने रह्स्य व पर्यटन स्थल अपने आप में समेटे हुए है जिनका रह्स्य हमारे सामने खुलेगा. हमे यहाँ के शहर के बीच के एक मेंशन में एक रात रुकना है, कल शाम को सात बजे फ़ुकेट के लिए हमारी उड़ान है.

एक घंटे चलने के बाद बहुमंजली मेंशन के रिसेप्शन पर एक बूढ़ा थाई चौकीदार बड़ी मुश्किल से 'इंडिया 'व 'रूम्स' 'शब्द समझकर अभिनव द्वारा आरक्षित दो कमरे खोल देता है. पेट में भूख अलार्म दे रही है, सब समान रख कर मुख्य. सड़क पर जाने के लिए तैयार हैं. मैं तो 'तीन एयरपोर्ट के लंबे रास्तों पर चलकर थक कर बेहद चूर हो चुकीं हूँ इसलिए ऐलान कर देतीं हूँ, ''मैं तो इतनी दूर खाने के लिए नहीं जा सकती. ''

अभिनव चिढ़ाते हैं कि कोई आपके लिए खाना नहीं लयेगा, ''

''चलेगा.''मैं दरवाज़ा बंद करके फ्रेश होकर 'चाय 'तलाशती हूँ व चौकीदार से 'चाय'व 'टी 'के लिए पूछ्ने लगतीं हूँ. नाटे कद का वह मिच मिची आंखों में आश्चर्यभर स पूछता है 'चाय ? थी? ''

पाँच मिनट तक में उसे समझती रहतीं हूँ उसे कुछ समझ में नहीं आता तो वहाँ से गुज़रते एक युवा जोड़े से वह पूछता है. मैं उन्हें कप से चाय पीने का अभिनय करके समझाती स हूँ. वह्युवक बहुत समझदारी से सिर'हाँ ' में हिलाता, ''छ्हाय. ''

मैं खुश हूँ, ''हाँ---हाँ. ''

वह टूटी फूटी अंग्रेज़ी में बताता है कि मुझे मुख्य सड़क पर जाना होगा तब मैं छ्हाय खा पाऊँगी. ''

मेरा सिर पीटने को मन करता है. अब वह चौकीदार एक साधना कट बालों वाली सूखी सी एक लड़की को बुला लाता है. वह मुझे अन्दर के रिसेप्शन रूम में ले जाकर कॉफ़ी पाउच दिखती है, दूसरे पाउच पर लिखा है 'कॉफ़ी मैट '' नॉन डेरी प्रॉडक्ट 'मैं 'ना 'में सिर हिलाती जा रही हूँ व उसका नाम पूछतीं हूँ,

वह अपने बड़े दाँत दिखाकर कहती है, ''फॉन. '

वह अलमारी से एक पाउच निकाल कर पूछती है, ''लिपटन ?'' मतलब वह लिपटन है लेकिन 'टी 'नहीं।

मै उसके हाथ में से पाउच लगभग झपट लेतीं हूँ व बिजली की केतली से चाय बनाकर पीती हूँ. मैंने सोचा भी ना था कि किसी एशिया के देश में चाय के लिए ऎसे तड़पना होगा. बाद में समझ में आता है कि शहर की गलियों के जाल समय से कुछ तो पीछे होते हैं।

दूसरा झटका लगता है क्योंकि ये सब हारे सिपाही की तरह लौट आयें हैं तो सड़क के सभी खुले होटल में लोग 'नॉन वैज़ 'ही खा रहे थे ? ख़ैर, ये लोग ब्रेड बटर खरीद लाये हैं. मैं सबको तसल्ली देतीं हूँ, '' फ़ुकेट से लौटकर तो कंट्री क्लब के होटल मोनेको में ठहरना है. वहाँ आस पास ज़रूर भारतीय होटल होगा. ''

हमें पहली सुबह' ओशन वर्ल्ड 'देखना है. टैक्सी बार बार ट्रैफ़िक के कारण रुक रही है. लेकिन ट्रैफ़िक सभ्य इतना है कि गाड़ियाँ एक दूसरे से कुछ दूरी बनाए चल रहीं हैं. किसी इमरात को देखकर हम ड्राइवर से कुछ पूछते हैं तो वह कहता है, 'नो इंग्लिश. ''

चौड़ी सड़कों पर चार वाहन एक साथ चल सकतें हैं. सड़क पर दूर दूर पर बने ब्रिज पर चार इंडीकेटर बने हुए हैं जोकि ट्रैफ़िक के हिसाब से चारों पंक्ति में जाते आने वाले वाहनों की दिशा बदल सकतें हैं. ट्रैफ़िक में बार फँसने के उबाऊ इंतज़ार के बाद हम 'सियाम मॉल ' पहुँचते हैं. आज शनिवार है ऑफ़िसों में छुट्टी का दिन इसलिए यहाँ बहुत चहल पहल है. टिकिट की लम्बी लाइन में देर तक खड़े रहकर अभिनव घड़ी देखकर कहतें हैं, ''ओशनवर्ल्ड बहुत बड़ा है, बारह तो अभी बज गये, ये शाम पांच बजे बंद हो जाता है। आज हम इसे नहीं देखते कुछ और देख लेतें है. ''

मैं जल्दी से कहतीं हूँ, ''तुमने ट्रैफ़िक की हालत देख ली है., आज इसे देख ही लेतें हैं. ''

ओशन वर्ल्ड का रास्ता नीचे जाने वाले एक्सलेटर से है. एक पैकेज टिकट खरीद कर हम लोग खाना खाने उपर आ जते हैं. थाइ. चाइनीज, जापानी रेस्तराँ [ जिसमें अधिकतर बेहद हल्के रंग की या सफ़ेद पोशाकें पहने जापानी लोग बैठे हुए हैं ] व अन्य देशों के नाम की कतार में एक वेजेटेरिअन होटल दिखाई देता है. सारे मॉल में व्याप्त निरामिष गंध के बीच गले में खाना उतारना ही है.

एक्सलेटर से नीचे उतरकर हमें भी नहीं पता था कि हम इस सुंदर समुद्री दुनिया में खो जायेंगे.. अन्दर छोटे छोटे एक्येरिअम को देखते कारपेट पर चलते हुए हम ऎसे कक्ष में पहुँच गए है जहाँ एक दायी तरफ़ अर्ध्चंदाकार दोमंज़ली काँच क कमरे का विशालकाय एक्येरिअम है. एक्येरियम में लगी रोशनी में ऊपर से नीचे तक तैरती मछलियाँ ही. नीली, पीली. सुनहरी, गुलाबी, भूरी रंग बिरंगी मछलियों व उनके बीच शार्क मछली तैरती दिखाई दे रही है. अलग अलग कक्षों में छोटे छोटे एक्येरियम में अलग अलग रंगों के शू हॉर्स फ़िश है या काइट फ़िश या स्नेक फ़िश या  सफ़ेद, पीली. सुनहरी, गुलाबी हल्के अलग अलग रंगों वली पारदर्शी स्टार फ़िश सुमधुर धीमे संगीत पर काँच के उस पार पानी में नृत्य करती लग रहीं हैं. हमने कभी इन मछलियों की इतनी विविधता नहीं देखी.

ये देश समुद्र से घिरा हुआ है तो यहाँ के समुद्री शोध संस्थान समुद्री जीवों पर शोध कर उन्हें अपनी आय का साधन बना रहे हैं. उसके बाद लगता है हम काँच की गुफ़ा में निकल आये हैं. साथ की दीवारों में एक्येरियम ऊपर भी काँच की छत पर पौंड दिखाई दे रहा है जिसमें लोग लाइफ़ जैकेट पहने बोटिंग कर रहे हैं. अदभुत है ये द्रश्य ऊपर र्नीचे आजु बाजु सब तरफ़ काँच के पार तैरती मछलियाँ.

थोड़ी देर बाद हम लोग उस कक्ष के सामने लाइफ़ जैकेट पहनकर, उस कक्ष के अन्दर जाकर उसी काँच के तालाब की चार पाँच सीढ़ियाँ उतरकर नाव में बैठकर बोटिंग कर कर रहे हैं. बोटमेन शार्क से बचाकर नाव चला रहे हैं. नीचे की गुफ़ा में चलते हुए पर्यटक सिर उठा कर हमें आश्चर्य से देख रहे हैं जैसे हम ऊपर की काँच की छत से दिखाई देती चलती बोट को नीचे से देख रहे थे. हमें पौंड के काँच के फर्श से नीचे दिखा देती चहल पहल किलकते बच्चे, मछलियाँ बहुत लुभा रही है.

अब हम लोग एक खुले स्थान पर निकल आयें हैं जोकि कुछ कृत्रिम पेड़ों, पौधों. पेंगुइंस, व बड़ी सुंदर सीपी से सजाया हुआ है. बाई तरफ़ एक कृत्रिम झरना है जिसकी फुहारे हम तक आ रहीं हैं. हर जगह नमी फैली हुई है. नीम अन्धेरे को चीरती सोडियम लाइट भली लग रही है. दाँयी तरफ़ पॉपकॉर्न व पेप्सी मिल रही है. सामने की तरफ़ एक सफ़ेद पत्थर का पौंड बना है जिसमें लोग अपने पैर डाले हुए हैं., तैरती छोटी काली मछलियाँ उनके पैर साफ़ कर रहीं हैं. जी हाँ, थाईलैंड इस तरह की पैर की सफाई के लिए प्रसिद्ध है. दो महिला कर्मचारी हमारे पैर एक प्लास्टिक के टब में धुलवा कर हमें उस सफ़ेद पत्थर के टब में पैर डालने को कहतीं हैं. पानी में पैर डालते ही ढेर सी काली आधे इंच से लेकर डेड इंच की मछलियाँ हमारे पैरों से चिपक गईँ हैं. मेरे मुँह से 'उई -----. 'निकल जाता है. हमारे चेहरों पर इस अनुभव से अजीब सी ख़ुशी है. हम अपने पैरों पर उन मछलियों की सरसराहट महसूस कर रहें हैं. एक कर्मचारी महिला पन्द्रह बीस मिनट बाद हमें इशारा करती है कि हमारा समय समाप्त हो गया है. हमारे बाहर आने पर वे दोनों हमारे पैर बहुत नफ़ासत से पोंछती हैं.

आगे भी बड़े बड़े एक्येरिअम हैं सब मछलियों के नाम याद रखना मुश्किल है. एक एक्येरिअम के सामने भीड़ इकठ्ठी हो गई है क्योंकि वहाँ का कर्मचारी मछलियों का खाना उन्हें खिला रहा है. मछलियाँ तेज़ी से पानी में खाने की ओर भाग रहीं हैं. .

पानी व समुद्री जीवों की सुंदरता से बाहर हम लोग 6 डी थिएटर के सामने खड़े हैं. लोग जेकिचंद के पुतले व प्लास्टिक के ऑक्टोपस व जानवर बने लोगों के साथ बच्चे फ़ोटो लेने में लग गए हैं. थिएटर में एक एनीमेटेड फ़िल्म में हिलती हुई हमारी कुर्सी, ऊपर पड़ती हुई फुहार, पैरों पर घूमते कीड़े के सेंसेशन के अनुभव नए हैं, अब हमें पता लगता है कि भाषा की समस्या क्या होती है क्योंकि किसी से पता लगता है कि पैकेज टिकट के साथ पॉपकॉर्न व पेप्सी मुफ़्त थी.

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नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffmail. com

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