Thai Niremit yani Thailend ka jaadu - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

थाई निरेमित यानि थाईलैंड का जादू - 2

एपीसोड - 2

अभिनव और नेहा को फिर पॉपकॉर्न व पेप्सी लेने बेहद अन्दर जाना पड़ता है क्योंकि भूख बहुत कुलबुला रही है. पैकेज का एक शो बाकी है समय तेज़ दौड़ चुका है, शाम की सात बजे की फ़्लाइट फ़ुकेट की है. हमें चल देना चाहिये था लेकिन मृदुल जी का आग्रह है वह शो भी देख लें. एक बड़े कक्ष में वह सिस्टम दिखाया जाता है कि किस तरह से इस विशाल ओशनवर्ल्ड में सभी एक्येरियम में साफ़ पानी रोज़ आता है किस तरह से गंदा पानी बाहर कर दिया जाता है.

हर टूरिस्ट को एक टिकिट पर सोवेनियर दिया जाता है। हम यहाँ से उपहार मिलें एक 'की लिंक 'को लेकर मॉल से बाहर निकल टैक्सी-स्टैंड की तरफ़ आतें हैं, हमें बिलकुल अनुमान नहीं था कि यहाँ हमें सवा  घंटे के इंतज़ार के बाद टैक्सी मिलेगी. वह ड्राइवर हमें मेंशन में छोड़कर चला जाता है. एयरपोर्ट जाने को तैयार नहीं होता. बड़ी मुश्किल से मेंशन से दो टैक्सीज़ मंगाई जातीं हैं क्योंकि उनका साइज़ छोटा है. बड़ी घबराहट है साढ़े पाँच बज़ चुके हैं. एक घंटा एयरपोर्ट पहुँचने के लिए लगना है. ट्रैफ़िक में फँस फँस कर हम लोग साढ़े छ : बजे एयरपोर्ट पहुँचते हैं. टैक्सी में एयरपोर्ट की तरफ़ बढ़ते हुये अभिनव अपने मोबाइल में पड़े थाई सिम कार्ड से एयरपोर्ट ऑथोरिटी को अपने लेट पहुँचने की ख़बर कर चुके है. --- चेक इन काउंटर बंद कर दिया गया है. अभिनव के प्रार्थना करने पर वहाँ की कर्मचारी प्लेन के क्रू को फ़ोन करके पूछ्ती है क्या वे सामान ले लेंगे लें. वहाँ से

'हाँ 'में उत्तर के साथ हमारी जान में जान आती है. सामान देने के बाद हम प्लेन की तरफ़ दौड़ लेते हैं. ये बेवकूफ़ी इसलिए विस्तार से लिख रहीं हूँ कि विदेश यात्रा में पर्यटन के समय. समय का ज़रूर ध्यान रख्खा जाये क्योंकि यदि हमारी ये फ़्लाइट मिस हो जाती तो कितना पैसा व्यर्थ जाता ऊपर से घूमने का प्लान बेहद गड़बड़ा जता.

फ़ुकेट एक बड़ा आईलैंड है जो कि थाईलैंड से दो पुल से जुड़ा हुआ है, यहाँ तेरह चौदह घंटे के बस के सफ़र द्वारा ही पहुँचा जा सकता है इसलिए पर्यटक विमान का ही सहारा लेना पसंद करतें हैं क्योंकि इस यात्रा में सिर्फ़ डेड घंटा लगता है.

फ़ुकेट एयरपोर्ट पर भी अलग अलग ट्रैवल एजेन्सी की स्टोल्स है जिनमें बड़े बड़े पोस्टर्स लगे हैं, व वहाँ खड़ी सजी धजी लड़कियाँ टूरिस्टस को अपने अपने ब्रोशेर्स देतीं जा रही हैं. एयरपोर्ट अथॉरिटी की टैक्सी का किराया बेहद अधिक है हम लोग एक घंटे में प्राइवेट टैक्सी से 'एब्सोल्यूट सी पर्ल रिसॉर्ट 'पहुँचते हैं जिससे कंट्री क्लब की टाय है इसके व समुद्र के बीच सिर्फ़ एक सड़क है. दूर गहरे रंग के पानी में रोशनियां जगमगा रही हैं. रिसेप्शन पर खड़ी लड़कियों को मृदुल जी बुकिंग पेपर्स दिखा रहें हैं. तब तक एक बेयरा एक ट्रे में पानी ले आता है. उसे पीते ही हम बिगड़े हुए मुँह के स्वाद को छिपाने का प्रयास करतें हैं, पूछ्ने पर पता लगता है कि इसमें किसी हर्ब को मिलाया गया है.

हम लोग अपने सुइट्स की चाबी लेकर तीसरी मंज़िल पर पहुँचते हैं. दो कमरों के सुइट्स की साज़ सज्जा पश्चमी पर्यटकों की रूचि को देखते हुए की हुई है. कंट्री क्लब की इस रिसॉर्ट से टाय है इसलिए इंडियन रेस्तरां पास ही होना निश्चित है. नीचे उतरकर दाँयी तरफ़ बने इंडियन होटल में खाने पर हम जुट गए हैं. भारत में तो ऎसे होटल में नहीं जाते जहाँ नॉनवेज खाना भी सर्व किया जाता हो लेकिन हम इस बात पर दिमाग पर यहाँ ज़ोर नहीं डाल रहे. सड़क के पार के समुद्र में रोशनियां झिल्मिला रहीं हैं. यहीं पास में बना है स्विमिंग पुल, जाँबाज़ है वे लोग जो सड़क के किनारे बने पूल में तैर रहे हैं. यदि इस सड़क के दाँयी ओर मुड जाओ तो सड़क के दूसरी तरफ़ एक लाइन में बार हैं जिनमें देशी विदेशी उन्मुक्त हो शराब पीते हुए ज़ोर ज़ोर से गपिया रहे हैं, लग रहा है हम गोवा में तो कहीं नहीं आ गए.

सुबह सूचना मिलती है कि हमारी बुक की हुई टैक्सी आ गई है. बाहर टैक्सी ड्राइवर एक मोटी लड़की, जो कि नारंगी टॉप व स्कर्ट पहने है, उसकी पोनी में प्लास्टिक का एपल व छोटे अंगूर का गुच्छा लगा रक्खा है. वह् मुसकरा कर अंग्रेज़ी में कहती है'', गुड़ मॉर्निंग !अभी गाड़ी लाती हूँ. ''

वह एक बड़ काले रंग की गाड़ी हमारे सामने लगा देती है, हमारे बैठते ही वह् स्टीयरिंग सम्भाल कर कहती है, ''आपको मैं काजू फैक्ट्री दिखाने ले चल रहीं हूँ. ''

''तुम्हारा नाम क्या है ?''

''जी जी''

हम हँस पड़ते हैं, ''हमारे यहाँ बड़ी बाहिन को जीजी कहा जाता है. ''

काजू फैक्ट्री के बाहर एक लाल रंग का विशालकाय पत्थर का काजू बना हुआ है, पास के बाग में पेड़ पर भी लाल पील काजू लटक रहें हैं. जी जी मुझसे पूछती है, ''ममा ! डु यु वाट टु टेस्ट केश्युस ?''

मैं हँस पड़ती हूँ क्योंकि ये भी पत्थर के हैं.

वहाँ हॉल में तरह तरह के नमकीन व मीठे काजू या मछली के साथ पकी हुई किसमें सजी हुई हैं, फलों के सूखे मुरब्बे हैं. पर्यटकों को आजादी है. कि वे जितना चाहे इन्हें चख लें. अन्दर के कक्ष में और भी किसमें हैं. एक कमरे में मशीन से काजू के फल से काजू निकाल कर दिखाया जा रहा है माफ करें थाई निवासी ! हमारी भारतीय जिव्हा को कोई भी स्वाद नहीं भा रहा. हम लोग कीवी व प्लम्स के सूखे मुरब्बे खरीद लेते हैं. जी जी के हाथ में भी कमीशन के कुछ पैकेट्स हैं

'' ममा ! -----बी केयरफुल. ''जी जी मेरे टैक्सी मे बैठने पर कह रही है. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. वह रास्ते में खूब बातें करती चल रही है मुझे बैंकॉक के खड़ूस ड्राइवर मिस्टर थावी व मिस्टर बुन्लोसेत [ टैक्सी में लगे आई कार्ड पर उनका नाम देखा था ]याद आ रहे हैं जिनसे हम किसी सुंदर इमारत के दिखाई देते पूछते थे तो वे कहते थे, 'नो, इंग्लिश. ''

ये तो बाद में वहां टूरिस्ट्स का जमघट देखकर समझ में आया कि क्यों वेफ़ालतू टूरिस्ट को अपना दिमाग चटाने दें ? बहाना अच्छा है, ''नो, इंग्लिश. ''

'' अब हम लोग थ्री बे 'ज[तीन समुद्री खाड़ियाँ] देखने जायेंगे. ''

टैक्सी लंबा सफ़र करके पटोंग के सर्पीले रास्ते पर चढ़ रही है. इस चढ़ाई की सुंदरता ये है कि दूर चमकती धूप से चमकता समुद्री का पानी भी दिखाई दे रहा है जो भारत के पहाड़ी स्थलों पर दुर्लभ है. रास्ते के दोनों ओर हरे भरे पेड़ों की सुंदरता है, हवा है.

लगभग डेड घंटे के सफ़र के बाद हम लोग ऊपर पहाड़ी को काट कर बनाये गार्डन में. वहाँ के पीले लाल फूलों के बीच, सर्सराती हवाओ के स्पर्श के बीच हम देख रहें हैं फ़ुकेट का मनोरम द्रश्य ---यहाँ से तीन अर्द्ध चंद्राकार बे पटोंग बे, कैरोन बे व काता बे दिखाई दे रहीं हैं, जिनके कटीले किनारों पर लहरे झूम झूम कर आ रही हैं, उछल रही हैं, ऊपर वाले की अपरिमित रचनात्मकता की गवाह अपने अलग अंदाज़ में.

''अब क्या देखना है ममा ?''जी जी गाड़ी स्टार्ट करते लहराती संगीतमय आवाज़ में पूछती है.

''बौद्ध टेम्पल ले चलो. ''रास्ते में दिखाइ दे रहें हैं छोटे बड़े पैगोडा, जिन्हें यहाँ टेम्पल कहते हैं ये पैगोडा जैसे अर्द्धचन्द्राकार नहीं है बल्कि लंबे आयताकार राजसी शान -ओ शौकत लिए हुए हैं. सभी सफ़ेद लाल व सुनहरे रंग में पेंट किए हुए हैं. सूरज की रोशनी में इनकी चमक लुभा रही है. एक बड़े टेम्पल के विशाल परिसर में टैक्सी रोक दी जाती है यहाँ दो टेम्पल हैं हम बड़े टेम्पल के आगे चप्पल उतरकर वहाँ प्रवेश करतें हैं सामने है विशाल गोल्दन बौद्ध प्रतिमा लोग हाथ में लम्बी डांडी वाले सफ़ेद बेंजनी फूल लेकर प्रार्थना कर रहें हैं. बौद्ध मंत्र पढ़ रहे हैं. एक परिवार बौद्ध मोंक से विशेष पूजा करवा रहा है वह भी बहुत से सोने के गहनों के साथ.

जी जी एक तरफ़ एक पंक्ति में बनी आठ सुनहरी बौद्ध की प्रतिमाओं को दिखाकर बताती है, ''ये सब सप्ताह के दिन की प्रतीक हैं. वेडनसडे [ बुद्ध ]की दो प्रतिमाये हैं. आप लोग अपने जन्म वाले दिन की प्रतिमा के सामने खड़े होकर प्रार्थना करिये. ''

हम अपने जन्म वाले दिन की मूर्ति के सामने खड़े होकर हाथ जोड़ें प्रार्थना करने लगतें हैं. अपने लिए प्रार्थना करना किसे अच्छा नहीं लगता. ?टेम्पल से बाहर निकल कर हम अपनी चप्पल पहन रहें हैं तभी आवाज़ आती है--'' धूम--- धड़ाम --- धूम. ''

ये आतिशबाजी एक लम्बी बनी झोपड़ी के अन्दर हो रही है. उसके ऊपर खुले मुह से धुँआ निकल रहा है. जी जी बताती है जब भी किसी की मन्नत पूरी होती है वह् यहाँ टेम्पल में आतिशबाजी करवा कर भगवान को अपना आभार प्रगत करता है. काश ! हमारी दिवाली में भी पटाखे छोड़ने में कुछ इस तरह की समझदारी दिखाई जाती तो लोग जलकर घायल तो नहीं होते.

लगभग डेड घंटे के सफ़र के बाद हम लोग ऊपर पहाड़ी को काट कर बनाये गार्डन में. वहाँ के पीले लाल फूलों के बीच सरसराती हवाओ के स्पर्श के बीच हम इस सुंदरता को महसूस कर रहे हैं।

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नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail –kneeli@rediffmail. com

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