थाई निरेमित यानि थाईलैंड का जादू - 7 - अंतिम भाग Neelam Kulshreshtha द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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थाई निरेमित यानि थाईलैंड का जादू - 7 - अंतिम भाग

एपीसोड - 7

काउंटर पर मृदुल जी अपने ख़रीदे सामान की बिलिंग करवा रहे है. सेल्स गर्ल मेरी दो टोकरियाँ भी वहाँ रख देती है. बड़ी टोकरी के सामान की बिलिंग हो गई है, दूसरी के लिए मृदुल जी कहतें हैं, "ये हमारी नहीं है. "

मैं पीछॆ से लपक लेती हूँ, `ये भी हमारी है. "

मृदुल जी आश्चर्य से मुझे देखते हैं, मैं हंस पड़ती हूँ, वे मुसकरा देते हैं क्योंकि जानते हैं अपनों को गिफ़्ट्स देने का मुझे बहुत शौक है. टैक्सी ड्राइवर का हमारे बिल की राशि सुनकर मुँह उतर जाता है. यदि हमने एक छोटा हीरो का हार खरीदा होता, हमारे हाथ में उसका छोटा डिब्बा होता तो उसे अधिक कमीशन मिलता.

टैक्सी में बैठते ही हमे अपनी बेवकूफ़ी नजर आती है कि इतना सामान लेकर हम कैसे महल देखेंगे क्योंकि टैक्सी पर बस यहाँ तक आने की बात तय की है. ये शहर चीटिंग के लिए बहुत मशहूर है फिर भी हम लोग ड्राइवर से पूछते हैं कि वह ये सामान होटल के रिसेप्शन पर छोड़ देगा क्योंकि वह वहीं से सवारी लेता है. वह हामी भर देता है.

रिक्लाइन बुद्धा [लेटे हुए हनुमान जी की तर्ज पर लेटे हुए बुद्धा ]के परिसर में विशाल गेट से अन्दर जाते ही दो विशाल मूँछों वाले दो द्वारपाल की मूर्तियाँ आकर्षित करतीं हैं. टिकट काउंटर पर विदेशियों की टिकट विंडो की लाइन में हम लोग लग जाते हैं. ज़ाहिर है हमारे लिए ये महँगी है. हर टिकट के साथ वॉटर बॉटल मुफ्त है. ये इस देश की संस्कृति है यानि कि पर्यटन व्यापार में` ह्यूमेन टच `देना.

ये मन्दिर है इसलिए जूते पहनकर अन्दर नहीं जा सकते. पर्यटकों को एक थैला दे दिया जाता है जिसमें अपने जूते रखकर अपने साथ ले जा सके. बाहर निकलते समय थैला वापिस कर दें. बचपन से मेरे मन में थाईलैंड की प्रतीक पत्रिकाओं में देखी बुद्ध भगवान की एक बेहद विशालकाय करवट लिए हुए गोल्डन मूर्ति बसी हुई थी जिसके सामने खड़ा व्यक्ति बौना लगता है. हॉल में जहाँ से हम प्रवेश करते हैं वहाँ से करवट लिए बुद्ध का सिर दिखाई दे रहा है. हमे गर्दन उठाकर देखना पड़तां है. उनके सिर के घुँघराले बालों को बहुत नफासत से हल्के काले पेंट से गढ़ा गया है. उनके विशाल सौम्य चेहरे पर कितनी शान्ति व स्निग्धता है --उस परार्लौकिक नूर से सराबोर हमारे हाथ स्वतः ही जुड़ जाते हैं, श्रद्धा से. उस अनाम कलाकार की कला के प्रति भी जिसने बोधित्सव को मूर्ति की आंखों में परम शान्ति के रुप में उतार दिया है, सभी पर्यटक मंत्रमुग्ध से फ़ोटो ले रहे हैं.

ग्रैंड पैलेस के काउंटर से टिकिट खरीदते समय इस भव्य महल को देखने की बहुत उत्सुकता है जिसे राजा रामा प्रथम ने सन् 1782 में बनवाया था. ये विश्व में अपने एम्ररेल्द [पन्ना के] बुद्धा के लिए प्रसिद्ध है ये 218, 000वर्ग मीटर में बना है जिसकी लम्बाई 1900 मीटर है. इस शेत्र में पहले सरकारी कार्यालय बने हुए थे जो राजा रामा प्रथम को पसंद नहीं थे इसलिए उन्होंने चाओ फ़्रायन नदी के दूसरी तरफ़ ये नया महल बनवाया, जहाँ वे सपरिवार रहते थे व प्रशासन भी चलाते थे.

विशाल द्वार से अन्दर जाते ही दो बड़े मूँछों वाले पत्थर के बड़े द्वारपाल दिखाई देते हैं. सामने ही बड़े हवन कुंड जैसे में से धुँआ उठ रहा है, वहाँ कुछ लोग प्रार्थना कर रहे हैं. ये महल रिश्तों की भी महक का घोतक है. कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर चार अलग अलग स्थापत्य की इमारतें दिखाई देती हैं. सबसे बड़ा सुनहरा स्तूप राजा रामा चतुर्थ ने बर्मीज स्थापत्य में अपने पिता को समर्पित करते हुए बनवाया था. इसके साथ है थाई व कंबोडिया के स्थापत्य से बने मंडप, जो कि बाहर से ही देखे जा सकते हैं..

भव्यता के कारण `ग्रैंड पैलेस` कहलाता है. ये प्रथम, द्वितीय व तृतीय रामा का आवास रहा था इसलिए यहाँ के द्वार की सजावट पत्थर के विशाल हाथी व शेरों से की गई है. इसका द ड्यूसित महाप्रसाद हॉल लकड़ी का था लेकिन उसमें आग लगने के कारण राजा प्रथम ने दोबारा इसे पत्थर से बनवाया था. हमने भारत के किलों या महलों में बहुत से दरबार हॉल देखें हैं लेकिन इतना भव्य दरबार हॉल कहीं देखा हो याद नहीं आ रहा, सिंहासन एक बड़ी नाव की आकृति का है, सारा हॉल सोने की पॉलिश किया हुआ है. इसमें लटकते सुनहरे झाड़ फानूस व लैंप जले हुए लैंप की पीली रोशनी के कारण सोने सी जगमगाती एक राजसी शानो शौकत आँखों को चौंधिया दे रही हैं.

इसी तरह एमरेल्ड बुद्धा की मोनेस्ट्री की भव्यता से भी आँखें चौंधिया जाती हैं. इस ऊँचे व खम्बों वाले प्रसाद की बाहर की इमारत में हल्के नीले व सुनहरे स्टोन्स यहाँ जड़ें हुए हैं. ये बहुत नफ़ासत भरी राजसी शान लिए मन मोहता है. वैसे भी ये इस महल की विशेषता है कि हर इमारत पर कर्विंग ना करके रंगीन पत्थर जड़ कर इन्हें बनाया है जो धूप की किरणों में छ्टा बिखरते बहुत सुंदर लगते हैं. एमरेल्ड बुद्धा की कहानी भी दिलचस्प है. ये सन् 1434 में चिआंग राइ के स्तूप में पाये गए थे इन पर प्लास्टर जमा हुआ था इसलिए ये महल में ऎसे ही प्रतिष्ठित थे. एक बार किसी कारण इनका प्लास्टर थोड़ी सी जगह से हट गया तो इसे साफ़ करवा कर देखा कि ये तो पन्ना के बने हुए हैं, तब इन्हें इस भव्य मोनेस्ट्री में प्रतिष्ठित किया गया,

उन्होंने द फ़्रा महा मौनियाग्रुप नामक इमारत राजकीय परिवार वालों की वर्षगाँठ त्योहारों के आयोजन के लिए बनवाया था. चकरी महाप्रसाद रामा चतुर्थ ने सन् 1800 के किसी वर्ष में बैंकॉक स्थापना की शताब्दी मनाने के उपलक्ष में बनवाया था. इन्होंने ही सन् 1903 में बोरोम फ़ियान मेंशन जिसमें रामा पाँच, छठे, सप्तम, अष्ठम से लेकर वर्तमान राजा रहते थे किन्तु अब इसे गेस्ट हाउस में बदल दिया गया है.

रॉयल मोनेस्ट्री की ग्रे रंग से पेंट की हुईं दीवारों पर जो सुनहरे रंग की चित्रकारी राजा प्रथम ने करवाई थी उसे बाद के शासकों ने संरक्षित रक्खा है. उन्हें देखकर आश्चर्य चकित राह जाना पड़ता है क्योंकि ये चित्र हैं सीता हरण के----- कुंभ कर्ण को जगाने के ------हनुमान जी के पहाड़ उठकर ले जाने के -------राम रावण युद्ध के ----- आश्चर्य होता है कि राम कथा हज़ारो मील का सफ़र तय करके अठारहवीं सदी में बैंकॉक की दीवारों पर बिखर गई थी. इसकी कम्यूनिकेट करने की शमता को सलाम !

इस परिसर में है हस्तलिखित पुस्तकों का पुस्तकालय, मुसोलियन. जिसमे राजकीय लोगों की राख रखी. रह्ती है. एक इमारत में कुछ म्यूरल्स हैं व रामा चतुर्थ के समय के प्रसिद्ध चित्रकार के चित्र.

ग्रैंड पैलेस के बागों इसकी मूर्तियों---- कहीं परी है---- कहीं नर्तकों की टोली के पास से गुज़रते हम बाहर आ रहे हैं. हम गुज़रे हुए समय में आकंठ डूबे हुए थे, अपने को आज के समय से जोड़ने में कुछ वक्त लगता है. किसी देश का हर पर्यटन स्थल एक यात्रा में देखना संभव नहीं हो पाता. ग्रैंड पैलेस को देखकर अयुथ्या सिटी के खंडार को ना देख पाने का मलाल नहीं रहा है. प्रसिद्ध पटाया आयरलैंड से अच्छा है फ़ुकेट. हम संतुष्ट है हमने जो भी देखा है वह दुर्लभ है. ये कह पाना मुमकिन नहीं कि कौन सा स्थान सर्वश्रेष्ठ है ?

अपने देश के लिए वापिसी के लिए एयरपोर्ट की तरफ जाती टैक्सी का टैक्सी ड्राइवर टूटी फूटी अंग्रेज़ी में कहता है, "मैं सारा दिन टैक्सी चलाता हूँ. रात को घर जाता हूँ तो मेरा दस ग्यारह साल का बच्चा अकसर सोता मिलता है अगर आपके पास इंडिया की करेन्सी हो तो मुझे दे दीजिये ----वह खुश हो जायेगा. "

मैं अपना पर्स टटोलती हूँ. अन्दर की जेब मे दो दस के नोट व एक बीस का नोट मिल जाता है. मै उन्हें टैक्सी ड्राइवर के हाथ में दे देती हूँ. मुझे दस ग्यारह वर्ष के एक थाई बच्चे का ख़ुशी से खिला चेहरा नज़र आने लगता है. मेरा इस देश से रिश्ता उसकी करेन्सी के संग्रह में हमेशा महकता रहेगा.

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श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffmail. com