Raat - 12 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

रात - 12 - अंतिम भाग





वो लोग दादा के घर पहुंचे। वहां जाकर उन्होंने देखा तो दादा के घर का दरवाजा बंद था। रवि ने कहा, "अरे! हम जल्दी जल्दी मे यहां आ गए। हमने सभी से कहा था कि हवेली में जाकर जाँच करे, तो सब वही होंगे। चलो वहाँ चलते हैं!" रवि और स्नेहा ने कहा, "चलो!" फिर वो लोग हवेली की ओर चले गए।

हवेली सुनसान थी। बहुत अंधेरा था। तीनों ने अपने फोन की टॉर्च चालू कर ली। वो तीनों हवेली के अंदर जाने लगे। अचानक भाविन के पैर में कुछ टकराया और वो गिर पड़ा। रवि ने उसे उठाया। रवि ने नीचे देखा तो देखा कि एक आदमी जमीन पर पड़ा था, लेकिन उसका चेहरा अंधेरे में दिखाई नहीं दे रहा था। रवि उसके पास गया और उसके मुँह पर टॉर्च लगा कर देखा, वो कोई और नहीं बल्कि ध्रुव था।

उन्होंने ध्रुव को होश में लाया। भाविन ने कहा, "ध्रुव! तुम यहां नीचे कैसे गिर गए थे?" ध्रुव ने कहा, "हम सब हवेली में चेकिंग कर रहे थे। अचानक घर की लाइटें बंध-चालू होने लगीं। कुछ देर बाद लाइटे बंध हो गईं, इसलिए सभी लोग हॉल में आ गए। अचानक ऊपर के कमरे से एक चीख सुनाई दी। सभी जल्दी से उस कमरे में गये, जो काफी समय से बंद था। जब हम उस कमरे के पास गए, तब उस कमरे का दरवाजा टूटकर नीचे पड़ा हुआ था। जब हम कमरे में गए तो आयशा मैडम जमीन पर बेहोश पड़ी थी। सब उनके पास गए और मैं उनके लिए पानी लाने के लिए नीचे किचन में गया। थोड़ी देर बाद जब मैं पानी लेकर हॉल में पहुंचा, तो किसी ने मेरे सिर में कुछ मारा, सिर में लगाने से मैं बेहोश हो गया।" रवि ने कहा, "लेकीन बाकी सब कहाँ गए?" भाविन ने कहा, "मैडम आयशा सुरेखा के कमरे में चेकिंग करने गई और भूल से उन्होंने आत्मा के एक हिस्से को मुक्त कर दिया, इसलिए वो बेहोश हो गई। आत्मा का एक हिस्सा मुक्त हो गया है। अब एक-एक करके आत्मा के सभी हिस्से मुक्त हो जाएंगे।" रवि ने कहा, "अब हम क्या करेंगे?" भाविन ने कहा, "कुछ सोचते हैं।"

वो बातें कर ही रहे थे कि कोई दौड़ता हुआ हवेली में आया। अंधेरा था इसलिए उसका चेहरा दूर से दिखाई नहीं दे रहा था। वो आदमी पास पहुँचा तो भाविन ने उसकी ओर देखा और कहा, "पंडितजी! इतनी रात को आपको यहाँ क्यों आना पड़ा?" पंडित जी घबरा गए थे और वे हांफ रहे थे। रवि ने कहा, "आप पहले सांस लो। आप दौड़ते हुए आए हो इसलिए आपकी सांस फूल गई है।" पंडितजी ने गहरी सांस ली और कहा, "अनर्थ हो गया।" स्नेहा बोली, "क्या अनर्थ हुआ?" पंडितजी ने कहा, "मैं अपने घर में सो रहा था। अचानक मुझे मंदिर में किसी के चलने की आवाज सुनाई दी, तो मैं मंदिर में चला गया। वहा एक लड़कीने चामुंडा माता की मूर्ति के बीच रखी त्रिशूल को निकल कर नीचे फेंक दिया और मूर्ति के बीच में से एक धागा निकाला और उसकी गाँठ खोल दी। जैसे उसने गाँठ खोल दी, तब अचानक बहुत तेज हवा चलने लगी। धूल के गोले उड़ने लगे। थोड़ी देर के लिए सब कुछ दिखना बंध हो गया। थोड़ी देर बाद माहौल शांत हो गया। मैंने देखा तो वो लड़की जमीन पर पड़ी थीं। जब मैने उसका चेहरा देखा तो मैं हैरान रह गया। वो लड़की और कोई नहीं बल्कि आपकी दोस्त साक्षी थी।" भाविन ने कहा, "आत्मा का दूसरा हिस्सा भी मुक्त हो गया है।" पंडितजी ने कहा, "ये तुम किस बारे में बात कर रहे हो?" भाविन ने पंडित जी को सारी बात बताई।

सब कुछ जानकर पंडित जी ने कहा, "हमें इस हवेली में हवन करना होगा। ताकि आत्मा यहाँ आये और हम ऊसे मुक्त कर सकें।" भाविन ने कहा, "पंडित जी, आप हवन की तैयारी शुरू कीजिए। ध्रुव और स्नेहा यहां आपकी मदद करेंगे। मैं और रवि सभी को यहां लेकर आते हैं। सभी ने आत्मा को मुक्त कर दिया होगा, फिर बेहोश हो गए होंगे।" पंडितजी ने भाविन को एक बोतल देते हुए कहा, "उन्हें छूने से पहले उन सभी पर गंगा जल छिड़क देना।" भाविन बोला, "जी पंडितजी।" इतना कहकर भाविन और रवि चले गए। पंडित जी, ध्रुव और स्नेहा हवन की तैयारी करने लगे।

कुछ देर बाद भाविन और रवि सभी को हवेली में ले आए। वो भक्ति और विशाल के साथ पुलिस को भी वहां ले आए, ताकि वो भक्ति को निर्दोष साबित कर सकें।

पंडितजी ने हवेली के हॉल के बीच में रखे हवनकुंड में आग जलाई। बाकी सभी हवनकुंड के आसपास बैठे थे। पंडितजी ने कहा, "अब मैं हवन शुरू करने जा रहा हूं। आत्मा के सभी हिस्से मुक्त हो गए हैं, आत्माएं दो हैं, इसलिए आत्माएं शक्तिशाली हो गई होंगी। हवन शुरू होने के बाद कोई भी अपना स्थान नहीं छोड़ेगा। हो सकता है कि आत्माएं आपको डराने कि कोशिश करे, लेकीन आपको डरने की जरूरत नहीं है। मैं आप सभी को एक-एक नींबू देता हूं। आप इसे अपने हाथ में रखिए, ताकि आत्माएं आपको नुकसान न पहुंचाएं।" इतना कहकर पंडित जी ने सबको एक-एक नींबू दे दिया।

हवनकुंड में आहुति देते हुए पंडित जी मन्त्रों का जाप करने लगे, "ॐ ऐं हीं क्लीं चामुण्डायै विच्ये।" कुछ देर बाद हवेली में तेज हवा चलने लगी। खिड़कियां और दरवाजे खुलने और बंद होने लगे। अचानक सारी लाइटे बंध हो गई। हवेली के मुख्य द्वार से दो भयानक काली कृतियाँ हवेली में दाखिल हुईं। उस नजारे को देखकर सब डर गए। वो दो आत्माएं सबके आसपास गोल गोल घूमने लगीं और जोर-जोर से हंसने लगीं। जैसे-जैसे उनकी हँसी तेज़ होती गई, वैसे-वैसे पंडित जी के मंत्र जाप भी तेज होते गए।

कुछ देर बाद पंडित जी के मंत्रों की शक्ति से वो आत्माएं कमजोर पड़ने लगीं और उनकी हंसी थम गई। पंडितजी ने उनसे पूछा, "तुम कौन हो? और तुम यहाँ क्यों आई हो?" उन आत्माओं में से एक ने कहा, "आप तो हमारे बारे में सब कुछ जानते हैं। लेकिन फिर भी मैं आपको बता देता हूं कि मैं रुद्र हूं और ये मेरी प्रेमिका सुरेखा है।" पंडितजी ने कहा, "तुम्हारा बदला तो पूरा हो गया, फिर भी तुम्हारी आत्माए क्यों भटक रही है?" रुद्र की आत्मा बोली, "हमारा सिर्फ़ बदला पूरा हुआ है, अंतिम इच्छा नहीं।" पंडितजी ने कहा, "तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या थी?" सुरेखा की आत्मा बोली, "हम एक दूसरे से शादी करना चाहते थे।" पंडित जी ने कहा, "क्या तुम जानते हो कि शकितसिंह ने तुम दोनों की शादी क्यों नहीं होने दी?" सुरेखा की आत्मा बोली, "हाँ। क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि एक गरीब परिवार का लड़का उनका दामाद बनें।" पंडितजी ने कहा, "नहीं, ऐसा नहीं है। शक्तिसिंह का नज़ायज रिश्ता कल्पना के साथ था। इसलिए शक्तिसिंह को लगता था कि रुद्र उनके रिश्ते का परिणाम है, रुद्र उनका बेटा है। लेकिन ऐसा नहीं था। कल्पना के अन्य पुरुषों के साथ भी संबंध थे, रुद्र उनमें से किसी एक का बेटा था। शकितसिंह को इस बात की जानकारी नहीं थी। उसको लगा कि रुद्र और सुरेखा भाई-बहन हैं, इसलिए उनकी शादी नहीं हो सकती। यही कारण है कि तुम दोनों की शादी नहीं हो पाई थी।" रुद्र की आत्मा गुस्से से बोली, "आप मेरी माँ पर ऐसा आरोप नहीं लगा सकते।" पंडितजी ने उसे डायरी दिखाई और कहा, "इस डायरी को देख लो। ये तुम्हारी मां, कल्पना की हैं।"

रुद्र की आत्मा ने डायरी ली और उसे पढ़ने लगी। उस डायरी को पढ़कर रुद्र की आत्मा रोने लगी। रुद्र की आत्मा बोली, "सुरेखा! हमने बहुत बड़ी गलती की है। तुम्हारे परिवार में किसी का दोष नहीं था। गलती मेरी मां की थी।" कुछ देर बाद सुरेखा की आत्मा बोली, "क्या अब हम शादी कर सकते हैं?" रुद्र की आत्मा बोली, "हाँ, क्यों नहीं! हमें शादी करने के लिए किसी के शरीर में प्रवेश करना होगा।" सुरेखा की आत्मा बोली, "तो चलो रवि और स्नेहा के शरीर में प्रवेश करते हैं। वो दोनों तो एक दूसरे से भी प्यार करते हैं।" ये सुनकर रवि और स्नेहा थोड़े डर गए।

स्नेहा ने कहा, "लेकीन तुम तो हमें अलग करना चाहते थे!" सुरेखा की आत्मा ने कहा, "हम सिर्फ़ तुम दोनों को ही नहीं, बल्कि हर प्यार करने वालों को अलग करना चाहते थे, क्योंकि हमारा प्यार पूरा नहीं हुआ था, इसलिए हम नहीं चाहते थे कि किसी और का प्यार भी पूरा हो। अब हम दोनों एक होने जा रहे हैं, इसलिए हम चाहते हैं कि तुम दोनों भी एक हो जाओ।" ये सुनकर रवि और स्नेहा एक दूसरे की ओर देखने लगे। दोनों ने चेहरे पर मुस्कान के आखों की पलकें झुका कर एकदूसरे को शादी की इज़ाजत दी।

रुद्र की आत्मा रवि में और सुरेखा की आत्मा स्नेहा में प्रवेश कर गई। अवनिने अपने बैग से लाल चुनरी लाकर स्नेह को पहेना दी। पंडित जी ने विधि विधान से दोनों का विवाह करवाया। विवाह होते ही रुद्र और सुरेखा की आत्माएं मुक्त हो गईं। सभी रवि और स्नेहा को शुभकामनाएं देने लगे। पुलिस ने सब कुछ देखा, फिर केस बंद कर दिया और भक्ति और विशाल को जेल से रिहा कर दिया।

सभी ने उस हवेली की जगह पर एक स्कूल बनाने का फैसला किया। अगले दिन हवेली से स्कूल बनाने की जिम्मेदारी और पैसे दादाजी को सौंपकर वो लोग वहा से अपने घर चले गए।



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तो कैसी लगी आपको ये कहानी ...? अगर इस कहानी में कोई भाषा त्रुटि या कोई अन्य त्रुटि है तो मुझे माफ कर देना। ये कहानी, पात्र, स्थान, विषय आदि काल्पनिक हैं। अगर आप आपने सुझाव, प्रतिभाव देंगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा....

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समाप्त


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