सभी थाने के बाहर खड़े थे। भाविन ने कहा, ''पहले माशूका जेल में बंद हुई, अब उसका आशिक भी उसके पीछे-पीछे जेल में चला गया।'' रवि ने कहा, ''विशाल को ऐसे समय में अपने गुस्से पर काबू रखने की जरूरत थी।" ध्रुव ने कहा, ''अभी जो हुआ वो तो नहीं बदलेगा। चलो, अब उनको जेल से बाहर निकालने के बारे में सोचते हैं।'' रिया ने कहां, ''लेकिन उनको बाहर निकालने के लिए हवेली की जानकारी लेनी होगी, और वो कहां से मिलेगी?'' भाविन ने कहा, ''अरे हां! तुम सबको याद है, दादाजी ने उस दिन क्या कहा था!" ध्रुव बोला,"क्या कहा था?" भाविन बोला, "दादाजीने कहा था कि इस गांव में एक और घर है, जहां पर भी ऐसी भूतिया घटनाएं होती हैं। मुझे लगता है कि हवेली और उस घर के बीच कोई संबंध है।" रवि ने कहा," हाँ, ये भी हो सकता है।" ध्रुव ने कहा,"चलो वहां जाकर ही जांच करते हैं।" अवनी ने कहा, "रात होने वाली है, क्या वहा जाना सही होगा?" भाविन ने कहा, "अभी रात-दिन देखने का समय नहीं है। हमें जल्द से जल्द हवेली के बारे में पता लगाना होगा। तभी विशाल और भक्ति जेल से बाहर आ पायेंगे।'' स्नेहा बोली, ''Ok. तो मैं, रवि और भाविन उस पुराने घर जाते हैं। ध्रुव, अवनि और रिया, तुम तीनों हवेली में जाकर चेक करो। और हां, प्रोफेसर शिव, आयशा मैडम, श्रद्धा और साक्षी की मदद लें लेना। हवेली बड़ी है, जितने ज्यादा लोग होंगे, उतनी जल्दी इसकी जांच हो सकेगी।'' सब एक साथ बोले, "Ok. All the best." फिर स्नेहा, रवि और भाविन गाँव के पुराने घर में गए और ध्रुव, अवनि और रिया; प्रोफेसर शिव, आयशा मैडम, श्रद्धा और साक्षी के साथ हवेली में गए।
अमावस की रात थी। चारों ओर अंधेरा हो गया था। कुत्ते रो रहे थे। ऐसा लग रहा था की, सबसे भयानक रात आ गई हो। सभी हवेली के अलग-अलग कमरों में जाकर चेकिंग कर रहे थे। दूसरी ओर हवेली के बारे में जानकारी प्राप्त करने; रवि, स्नेहा और भाविन पुराने घर गए थे। वो लोग घर के अंदर चले गए। काफी समय से घर बंद था और कोई आने-जाने वाला नहीं था, इसलिए वहां पर चूहे, तिलचट्टे, छिपकलिया और मकड़ियों के जाले थे। उन्होंने वहां जांच शुरू की।
थोड़ी देर बाद भाविन ने कहा, "फ्रेंड्स, मुझे कुछ मिला!" रवि ने कहा, "तुझे क्या मिला?" भाविन ने कहा, "ये तो किसी की डायरी लगती है!" रवि ने कहा, "जल्दी से यहां आ जाओ, उस डायरी को पढ़ते हैं। शायद उस में से कुछ जानकारी मिल जाए।" भाविन ने डायरी ली और रवि और स्नेहा के पास गया। भावीन ने अपने हाथ में राखी टॉर्च स्नेहा को दे दी। स्नेहा ने उस टॉर्च को डायरी की ओर रखा। भाविन ने डायरी से धूल हटा दी।
भाविन ने डायरी खोली। पहले पन्ने पर लिखा था, "मेरा नाम कल्पना है। मैं एक लड़की अनाथ हूं। मेरे शादी रघुवीर से हुई थी। शादी के बाद वो नशे में धुत होकर मुझे रोज पीटता था। मैं उससे इतना परेशान हो गई थी कि मैंने उसे मार डाला। उसके बाद मैं अपना घर चलाने के लिए कई पुरुषों के साथ संबंध बनाती थी। उसमें विवाहित और अविवाहित दोनों शामिल थे। उसमें से मुझे शक्तिसिंह नाम के एक व्यक्ति से प्यार हो गया।" ये नाम सुनकर तीनों दंग रह गए।
भाविन ने आगे पढ़ना शुरू किया, "हाँ! वही शक्तिसिंह जो सरपंच महेंद्रसिंह का सबसे छोटा बेटा था। वो शादीशुदा था, लेकिन उसके बच्चे नहीं थे। उसे लगाता था कि उसकी पत्नी बच्चे देने के लिए सक्षम नहीं है, लेकिन वो खुद बच्चे देने के लिए सक्षम नहीं है। वो चाहता था की मैं उसके बच्चे की मां बनू। कुछ दिन बाद मुझे एक बच्चा भी हुआ, लेकिन मैंने उसे वो बच्चा नहीं दिया। मैं चाहती थी कि शक्तिसिंह मुझसे शादी करे और उस बच्चे को अपना नाम दे। लेकिन वो ऐसा करने को तैयार नही हुआ। फिर मैने ही उस बच्चे की परवरिश की। मैंने उसका नाम रुद्र रखा था। कुछ साल बाद मेरा रुद्र विवाह के लायक हो गया था। वो सरपंच के सबसे बड़े बेटे राजसिंह की बेटी सुरेखा से प्यार करता था और सुरेखा भी उसको चाहती थी। शक्तिसिंहने राजसिंह को हमारे रिश्ते के बारे में बता दिया था। उनको ऐसा लगता था कि रुद्र उनका वारिस है और रुद्र सुरेखा का भाई है। इस वजह से उनकी शादी नहीं हो सकती। उन्हें ये नहीं पता था कि रुद्र शक्तिसिंह का बेटा नहीं था, वो किसी ओर का खून था। मैंने ये बात उनसे इसलिए छुपाई ताकि शक्तिसिंह को दूसरों के साथ मेरे रिश्ते के बारे में पता न चले। वो लोग रुद्र और सुरेखा की शादी करवाने के लिए राजी नहीं हुए, इसलिए रूद्र और सुरेखा ने घर छोड़ दिया। शक्तिसिंह ने दोनों को ढूंढ़ लिया। उसने उन दोनों को हवेली के पीछे के कुएँ में फेंक दिया और उनकी मौत हो गई। कुछ ही दिनों में एक-एक कर परिवार के सभी सदस्य की मौत हो गई। सात सप्ताह में तो, उनके कुल का नाममोनिशान मिट गया। उस हवेली में भूतिया घटनाएं होने लगीं। वहां जाने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी। मैंने हवेली का निरीक्षण करने के लिए रुद्राचार्य नाम के एक तांत्रिक को बुलाया। उन्होंने मुझे बताया कि उस हवेली में रुद्र और सुरेखा की आत्मा भटक रही है। उन्होंने ही सभी को मार डाला था। जब मैंने उस समस्या को हल करने का अनुरोध किया, तो उन्होंने मुझसे कहा कि रुद्र और सुरेखा की आत्मा को सात भागों में विभाजित करना होगा और सात अलग-अलग स्थानों में कैद करना होगा। ऐसा करने से वो आत्माएं किसी को नुकसान नहीं पहुंचाएंगी।"
रवि ने कहा, "अब मुझे पता चला कि उस हवेली में आत्माएं भटक रही हैं।" स्नेहा बोली, "और उन्हीं आत्माने रोहन को मारा है। तुम आगे पढ़ो।" आगे पढ़ने के लिए भाविन ने पन्ना पलट दिया। दूसरे पन्ने पर सात गोल बने हुए थे और उसमें कुछ लिखा था। पहले गोले में लिखा था, "गांव के बाहर चामुंडा माता के मंदिर में मूर्तियों के बीच त्रिशूल के नीचे।" दूसरे गोले में लिखा था, "सरपंच की हवेली के पीछे कुएं के पास पड़े सफेद पत्थर के नीचे।" तीसरे गोले में लिखा था, "सरपंच की हवेली में सुरेखा की पलंग के नीचे।" चौथे गोले में लिखा था, "गाँव के पीछे बहने वाली नदी के पास पीपल के पेड़ के नीचे।" पांचवें गोले मैं लिखा था, "गाँव के जंगल में बरगद के पेड़ के नीचे।" छठे गोले में लिखा था, "गाँव की तलहटी में चबूतरे के नीचे।" सातवें गोले में लिखा था, "गाँव के स्मशान में"।
स्नेहा बोली, "ये सब किस बारे में लिखा है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।'' भाविन ने कहा, "ये शायद उन जगहों के नाम हैं, जहां आत्मा के अंश बंधे हैं।" रवि ने कहा, "हम दादाजी के घर जाकर, इन सब के बारे में बात करेंगे। फिलहाल हमे यहां से निकलना चाहिए।" भाविन ने कहा, "इस डायरी का क्या करें?" रवि ने कहा, "ये डायरी यहीं रख दो। जल्दी चलो।" वो लोग जल्दी से वहा से निकल गए।
"रात" का अंतिम भाग 15 अक्टूबर, शुक्रवार और दशहरा के दिन शाम सात बजे प्रकाशित होगा।
इस सुंदर सफर का अंत पढ़ना मत भुलना।
तो मिलते हैं "रात" के अंतिम भाग के साथ दशहरे की शाम को।
तब तक पढ़ते रहिए और जुड़े रहिए...
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