अनचाहा रिश्ता - ( सच की शुरुआत_२) 30 Veena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनचाहा रिश्ता - ( सच की शुरुआत_२) 30

" डैड, आपको पता है, आपके वकील कितनी बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते थे हमारे लिए ?" मीरा का गुस्सा सातवें आसमान पर था।

" वह वहां तुम्हें छुड़ाने आए थे मीरा। वो सब जाने माने वकील है। अपनी पूरी टीम के साथ तुम्हारे लिए आए थे। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई उनके बारे में यह सब बोलने की?" मिस्टर पटेल ने भी अपनी आवाज ऊंची की।

" मेरे बॉस मुझे पहले ही मुझे छुड़ा चुके थे। आपको फिक्र करने की जरूरत ही नहीं थी और जब वह वहां पर थे और अजय भी तो था मेरे साथ।" मीरा ने मिस्टर पटेल के पास जाते हुए कहा।

" हां सही। अजय था तुम्हारे साथ, वह भी तुम्हारे साथ जेल में बंद था। और क्या कहा तुमने तुम्हारे बॉस। अगर उनमें थोड़ी सी अक्कल होती तो वह कभी तुम्हारे साथ मिलकर ऐसी बेवकूफी ना करते। हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी दूसरों के लड़कों को घर से भगा कर उनकी शादी करवा देने की? " मिस्टर पटेल ने मीरा को फिर डांटने की कोशिश की।

" डैड। आप समझते क्यों नहीं ? लक्ष्मण उस लड़की से प्यार करता है। उसने कभी मुझे पसंद नहीं किया। वह हमेशा मुझे दीदी बुलाता था।" मीरा।

" वह दीदी बुलाता था क्योंकि तुमने उसे बुलाने कहा था मीरा। तुम्हारी सारी नादानियां में माफ कर सकता हूं लेकिन इस तरह किसी और के मां बाप के सपने को रौंदा बेटा तुमने? कभी सोचा है लक्ष्मण के पिता पर क्या गुजरी होगी यह जानकर के उनके बेटे ने भाग कर शादी कर ली ? और आप ?" मिस्टर पटेल स्वप्निल की तरफ आगे बढ़े। " मुझे हमेशा से लगता था कि तुम सेंसिटिव लोगों में से हो। मुझे नहीं पता था तुम में भी इनके जितना बचकाना भरा पड़ा है।" मिस्टर पटेल की बातें सुन मीरा ने उन्हें रोकने की कोशिश की। लेकिन स्वप्निल ने मीरा को इशारे से चुप करा दिया। यह बात मिस्टर पटेल की आंखों से चुकी नहीं।

" आपसे किसने कहा कि लक्ष्मण के पिता को उसकी शादी के बारे में पता नहीं है ?" स्वप्निल ने धीमी आवाज में कहां।

" सेंसटिविटी का तो पता नहीं लेकिन थोड़े जज्बात मुझ में भी है। जानता हूं कि एक बेटे की शादी को लेकर मां-बाप की कितने अरमान होते हैं। कल शाम मैंने खुद लक्ष्मण के पिता से बात की थी। लक्ष्मण भी वहां पर था। लेकिन वो नहीं माने। अपने पैसे के गुरुर में अपने बेटे के प्यार को अनदेखा करने जा रहे थे। उस वक्त मुझे जो सही लगा मैंने किया। बस मुझे यह नहीं पता था कि इन सब में वह मीरा को फंसा देंगे। इस बात के लिए मुझे माफ कर दीजिए।"

" बातें तो काफी बड़ी बड़ी कर लेते हो तुम। क्या ऐसी बातें कर मेरी बेटी को फंसाया है ?" मिस्टर पटेल ने सोफे पर बैठते हुए कहा।

" डैड।" मीरा ने आवाज लगाई। स्वप्निल ने में फिर मेरा को चुप करा दिया।

मिस्टर पटेल ने तालियां बजाई। " वाह बेटा वाह मान गए। आज तक मेरे इतने कहने पर भी मेरी बेटी कभी चुप नहीं हुई। तुम्हारी नजरें देखकर भी चुप हो जाती है।‌ आज मुझे बता दो क्या रिश्ता है तुम दोनों का ? लक्ष्मण के पिता को समझाने गए थे ना आज मैं भी समझना चाहूंगा कि तुम किस कदर औरों के मां बाप का दुख समझ सकते हो।"

स्वप्निल और मीरा ने एक नजर एक दूसरे को देखा। शायद यही वह वक्त है। दोनों ने मानो जैसे नजरों ही नजरों में बातें की। " ठीक है मिस्टर पटेल अगर आप यही जानना चाहते हैं।"

स्वप्निल मीरा के पास गया और उसने उसके कंधे पर हाथ रखा। " आज आपके सामने जो खड़ी है, वह आपकी बेटी नहीं मेरी बीवी मीरा है।"

मिस्टर पटेल कुछ मिनटों के लिए चुप हो गए। माना गलती बहुत बड़ी थी लेकिन वह अधूरा सच जानकर निर्णय लेने वालों में से नहीं है। ऐसे ही लोग उन्हें मंजा हुआ बिजनेसमैन नहीं कहते। उन्हें पता था उनका गुस्सा उन्हें अपनी बेटी से हमेशा के लिए दूर कर सकता है। वह भी अपनी इकलौती बेटी से।

उन्होंने अपनी आंखें बंद की और पूछा, " कब हुआ यह ? कैसे बताओ मुझे ?"

स्वप्निल ने उन्हें एक-एक कर सारी बातें बताई। अंदमान पहुंचने से लेकर वापस आने तक जो जो हुआ वह सब। सिर्फ एक बात बताना उसने जरूरी नहीं समझा। शादी निभाने का वादा जो दोनों ने अनचाहे मन से किया था ? पर क्या अभी वह दोनों ही रिश्ते को खत्म करना चाहेंगे ? नहीं। रिश्ता खत्म करना यह कभी कोई पर्याय नहीं था। दोनों ने इसे निभाने के लिए हां कहा था, दोनों अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं। जिसका पहला पड़ाव है मीरा के पापा को मनाना।

" आ…......." एक आह के साथ मिस्टर पटेल ने अपना सीना पकड़ा और बैठे-बैठे ही सोफे पर बेहोश हो गए।

उन्हें जल्द से जल्द हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया।
" अंकल अंकल पापा कैसे हैं? बताइए ना मुझे? " मीरा ने रोते-रोते अपने पापा के दोस्त और हॉस्पिटल के डीन डॉक्टर चौधरी से बात की। स्वप्निल ने उसका हाथ पकड़कर उसे सहारा दिया।

" फिक्र मत करो बेटा। अभी उन्हें हार्ट अटैक का झटका लगा है। लेकिन मेरा दोस्त बहुत स्ट्रॉन्ग है। वह संभाल लेगा। जल्द ठीक हो जाएगा। क्या मैं जान सकता हूं कि हुआ क्या था ?" डॉ चौधरी की बातें सुन मीरा रोने लगी।

तभी एक नर्स भागते हुए डॉ चौधरी के केबिन में आई।
" सॉरी सर लेकिन मिस्टर पटेल के रूम में इमरजेंसी है प्लीज।" उसने अपनी सांस को संभालते हुए कहा।

डॉक्टर चौधरी और नर्स दौड़ते हुए मिस्टर पटेल के कमरे में पहुंचे एक वार्ड बॉय दरवाजे के बाहर ही खड़ा था।

" तुम यहीं रुको मीरा।" डॉ. चौधरी ने मीरा की तरफ देखते हुए कहा।

" अंकल लेकिन पापा...." मीरा की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

" उन्हें मैं संभाल लूंगा तुम यहीं रुको।" फिर डॉक्टर चौधरी ने वार्डबॉय को इशारा किया। " इन्हें अंदर आने मत देना।"

" फिक्र मत करो मीरा पापा जल्दी ठीक हो जाएंगे।" स्वप्निल ने में मीरा का सर सहलाते हुए कहा।

" सब मेरी गलती है। सब मेरी वजह से हुआ।" मीरा फिर रोने लगी।

" शू....... कुछ नहीं हुआ। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। मैंने कहा ना सब ठीक हो जाएगा।" स्वप्निलने मीरा को अपनी बाहों में छिपा लिया।

मिस्टर पटेल के कमरे के अंदर,

" मीरा बेटी बहुत रो रही है। जल्दी ठीक हो जा।" डॉ चौधरी ने मिस्टर पटेल के बिस्तर के पास खड़े होते हुए कहा।

" उसने मुझे बहुत बड़ा झटका दिया है। अपनी लगाई हुई आगसे उसे भी थोड़ा जलने दो।" मिस्टर पटेल ने आंखें खोलते हुए कहा।